नागरिक कर्तव्य : अधिकार और जिम्मेदारी का संतुलन

25 Sep 2025 14:31:04

nagarik ke kartvay
डॉ. भूपेन्द्र कुमार सुल्लेरे
 
भारतीय लोकतंत्र की सफलता केवल संविधान प्रदत्त अधिकारों पर नहीं, बल्कि नागरिकों द्वारा निभाए जाने वाले कर्तव्यों पर भी निर्भर करती है। यदि नागरिक केवल अधिकारों की अपेक्षा करें और कर्तव्यों से विमुख हों, तो समाज और राष्ट्र का संतुलन बिगड़ सकता है। कर्तव्य नागरिक जीवन में अनुशासन, नैतिकता और जिम्मेदारी का बोध कराते हैं।

संवैधानिक कर्तव्य : ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारतीय संविधान के प्रारंभिक मसौदे में कर्तव्यों का स्पष्ट उल्लेख नहीं था, लेकिन समय के साथ यह महसूस किया गया कि अधिकार और कर्तव्य दोनों समान रूप से आवश्यक हैं।
- 42वाँ संविधान संशोधन (1976) द्वारा संविधान में भाग IV–A जोड़ा गया।
- अनुच्छेद 51(क) में नागरिकों के 10 मौलिक कर्तव्य सम्मिलित किए गए।

- 86वें संशोधन (2002) द्वारा एक और कर्तव्य जोड़ा गया, जिससे इनकी संख्या 11 हो गई।
 
संवैधानिक कर्तव्यों की सूची
अनुच्छेद 51(क) के अनुसार प्रत्येक नागरिक के प्रमुख कर्तव्य इस प्रकार हैं-
- संविधान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना।
- स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों को आदर देना।
- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करना।
- आह्वान होने पर देश की रक्षा करना और राष्ट्रीय सेवा देना।
- भ्रातृत्व, समानता और राष्ट्रीय सद्भाव को बढ़ावा देना।
- स्त्रियों की गरिमा का अपमान न करना और समान अधिकारों का समर्थन करना।
- सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण करना।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद और ज्ञान की भावना का विकास करना।
- पर्यावरण, वन, नदियाँ, झीलें और वन्यजीवों की रक्षा करना।
- सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा से दूर रहना।
- 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा दिलाना।

नागरिकों के व्यावहारिक कर्तव्य
संवैधानिक कर्तव्यों के अतिरिक्त कुछ ऐसे व्यावहारिक कर्तव्य भी हैं, जिन्हें निभाना हर नागरिक का दायित्व है-
- करों (टैक्स) का भुगतान: राष्ट्र की आर्थिक संरचना को मजबूत करना।
- मतदान करना: लोकतंत्र को सशक्त बनाने का प्रमुख साधन।
- कानून का पालन करना: व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखना।
- यातायात नियमों का पालन: सड़क दुर्घटनाओं और अराजकता से बचाव।
- भ्रष्टाचार विरोध: रिश्वत, धोखाधड़ी और अपराध के विरुद्ध सजग रहना।
- सामाजिक सेवा: शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, रक्तदान और आपदा प्रबंधन में सहयोग देना।
- पर्यावरण संरक्षण: जल, ऊर्जा और प्लास्टिक उपयोग में सजग रहना।
- समाज में सौहार्द: जाति, धर्म और भाषा के आधार पर विभाजन न फैलाना।

कर्तव्यों की अवहेलना के परिणाम
हालाँकि संवैधानिक कर्तव्य प्रत्यक्ष रूप से न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं हैं, पर कई कानून इनके उल्लंघन पर दंड का प्रावधान करते हैं-
- राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का अपमान : अपराध अधिनियम 1971 के अंतर्गत दंडनीय।
- कर चोरी : आयकर अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय।
- सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान : भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत सजा।
- बच्चों को शिक्षा से वंचित करना : शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत दंडनीय।
- पर्यावरण को हानि पहुँचाना : पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत सख्त सजा।

कर्तव्य पालन की सामाजिक अपेक्षाएँ
नागरिक जब अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, तो-
- लोकतंत्र अधिक सशक्त होता है।
- सामाजिक न्याय और समानता स्थापित होती है।
- राष्ट्रीय एकता और अखंडता मजबूत होती है।
- भ्रष्टाचार और अपराध पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
- देश की वैश्विक छवि और सम्मान बढ़ता है।
 
शिक्षा और जनजागरूकता की भूमिका
कर्तव्यों की वास्तविकता तभी सिद्ध होगी जब शिक्षा प्रणाली और मीडिया नागरिकों को इनके महत्व से अवगत कराएँ।
- विद्यालय स्तर पर नागरिक शास्त्र और नैतिक शिक्षा।
- जनमाध्यमों द्वारा कर्तव्यों पर जागरूकता अभियान।
- सामाजिक संगठनों द्वारा सेवा-भाव और अनुशासन का प्रशिक्षण।

भारतीय संविधान ने नागरिकों को अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का भी बोध कराया है। अधिकार नागरिक को शक्ति देते हैं, जबकि कर्तव्य उस शक्ति को दिशा देते हैं। यदि हर नागरिक संवैधानिक और व्यावहारिक दोनों कर्तव्यों का पालन करेगा, तो भारत न केवल एक मजबूत लोकतंत्र बनेगा बल्कि विकसित, आत्मनिर्भर और विश्वगुरु बनने की दिशा में आगे बढ़ेगा।
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