डॉ. भूपेन्द्र कुमार सुल्लेरे
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास केवल 1857 की पहली क्रांति तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें अनेक ऐसे शहीदों का बलिदान जुड़ा है, जिनकी गाथा को इतिहासकारों ने उतना स्थान नहीं दिया, जितना वे वास्तव में प्राप्त करने के योग्य थे। गोंडवाना के राजा शंकर शाह और उनके वीर पुत्र रघुनाथ शाह का बलिदान उन्हीं अमर गाथाओं में से एक है। 18 सितम्बर 1857 को जबलपुर में अंग्रेजों द्वारा तोप से उड़ाकर उनकी हत्या कर दी गई, लेकिन इस बलिदान ने स्वतंत्रता की ज्वाला को और प्रज्वलित कर दिया।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और गोंडवाना का गौरव
गढ़ कटंगा (गोंडवाना) क्षेत्र, जिसे आज महाकौशल और मध्य भारत कहा जाता है, प्राचीनकाल से ही पराक्रम और संस्कृति का केंद्र रहा है। यहाँ गोंड राजाओं ने शौर्य और संगठन के बल पर अपने राज्य को स्वाभिमान से संचालित किया। अंग्रेजों के आगमन के साथ ही यह क्षेत्र भी उनके अत्याचार का शिकार हुआ। गोंडवाना के शासक वर्ग और प्रजा में स्वराज्य की चेतना जागृत होने लगी। इसी पृष्ठभूमि में राजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह का व्यक्तित्व सामने आता है।
शंकर शाह का जीवन और राष्ट्रप्रेम
शंकर शाह गोंडवाना के वैभवशाली राजा थे। वे केवल शासक ही नहीं, बल्कि कवि और जननेता भी थे। उनकी कविताएँ और गीत राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत थे। वे जनता को संगठित करते और उन्हें बताते कि विदेशी शासन दासता और अपमान का प्रतीक है। वे स्वदेशी परंपरा, स्वराज्य और आत्मगौरव के समर्थक थे। उनके जीवन का ध्येय था – भारत माता की स्वतंत्रता।
रघुनाथ शाह की वीरता और युवा जोश
रघुनाथ शाह अपने पिता की ही तरह पराक्रमी और निर्भीक थे। वे युवाओं के बीच स्वतंत्रता संग्राम का संदेश फैलाते थे। उनकी संगठन क्षमता और सैन्य कौशल अंग्रेजों के लिए चुनौती बन चुके थे। पिता–पुत्र दोनों मिलकर गुप्त सभाओं में सैनिकों, किसानों और जनता को संगठित करते, उन्हें हथियार उठाने और स्वतंत्रता का संकल्प लेने के लिए प्रेरित करते।
1857 की क्रांति और गोंडवाना की भूमिका
1857 की क्रांति में जबलपुर और आसपास के क्षेत्र में विद्रोह की लहर उठी। शंकर शाह और रघुनाथ शाह इस क्रांति की आत्मा बन गए। उनकी कविताएँ, जैसे –
“उठो जवानो, तोड़ो बेड़ियाँ, भारत माता पुकार रही है”
जनता में जोश भर देती थीं। वे गीतों के माध्यम से जनता को बताते कि मातृभूमि की सेवा ही सर्वोच्च धर्म है। अंग्रेजों ने समझ लिया कि यदि इन दोनों को नहीं रोका गया तो पूरा गोंडवाना क्षेत्र स्वतंत्रता आंदोलन का गढ़ बन जाएगा।
षड्यंत्र और अमानवीय हत्या
अंग्रेजों ने उन पर षड्यंत्र रचकर "देशद्रोह" का आरोप लगाया। अंग्रेज अफसर उनकी कविताओं और गीतों को "विद्रोही साहित्य" मानते थे। 18 सितम्बर 1857 को जबलपुर में अंग्रेजों ने शंकर शाह और रघुनाथ शाह को तोप के मुख से बाँधकर उड़ा दिया। यह केवल हत्या नहीं थी, बल्कि अमानवीय अत्याचार था। किंतु अंग्रेज यह भूल गए कि वीरों का रक्त कभी व्यर्थ नहीं जाता।
बलिदान का प्रभाव और राष्ट्र की चेतना
उनकी शहादत ने पूरे गोंडवाना और महाकौशल क्षेत्र को झकझोर दिया। जनता में आक्रोश फैल गया। अंग्रेजों ने सोचा था कि इस हत्या से विद्रोह दब जाएगा, लेकिन हुआ इसका उलटा। क्रांतिकारियों में नया जोश आया। उनके बलिदान ने यह सिद्ध कर दिया कि भारत माता के सपूत भले ही शरीर खो दें, किंतु उनके विचार और आदर्श अमर रहते हैं।
अमर सपूतों की विरासत
आज शंकर शाह और रघुनाथ शाह का बलिदान दिवस केवल एक ऐतिहासिक तिथि नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति का पर्व है। वे हमें यह सिखाते हैं कि मातृभूमि के लिए त्याग और बलिदान ही सच्ची पूजा है। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर आज की पीढ़ी को यह संकल्प लेना चाहिए कि स्वतंत्रता केवल प्राप्त की गई धरोहर नहीं, बल्कि उसकी रक्षा करना और उसे नई ऊर्जा देना हमारी जिम्मेदारी है।
अंतिम संदेश
शंकर शाह और रघुनाथ शाह भारत माता के अमर सपूत थे। उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का स्वर्णिम अध्याय है। जब भी राष्ट्रभक्ति, स्वदेशप्रेम और बलिदान की बात होगी, गोंडवाना के इन वीरों का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा।