डॉ. भूपेंद्र कुमार सुल्लेरे
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भारत के संविधान निर्माताओं ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया और संविधान के अनुच्छेद 343 में यह स्पष्ट किया गया कि हिंदी देवनागरी लिपि में भारत की राजभाषा होगी। इसी ऐतिहासिक निर्णय की स्मृति में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। यह दिवस केवल भाषा का उत्सव नहीं है, बल्कि हमारी राष्ट्रीय चेतना, सांस्कृतिक धरोहर और भारतीय पहचान का प्रतीक भी है। आज जब विश्व में अंग्रेज़ी, फ्रेंच, स्पेनिश और चीनी जैसी भाषाएँ शक्ति का आधार बन रही हैं, हिंदी भी विश्व मंच पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रही है।
विश्व स्तर पर हिंदी बोलने वालों की संख्या लगभग 60 करोड़ है, जो इसे चीन की मंदारिन और अंग्रेज़ी के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी भाषा बनाती है। प्रवासी भारतीय समुदाय ने हिंदी को जीवित और सक्रिय बनाए रखने में उल्लेखनीय योगदान दिया है। मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, त्रिनिदाद और गुयाना जैसे देशों के साथ-साथ अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, खाड़ी देशों, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में बसे भारतीयों ने समाचार-पत्र, रेडियो और सांस्कृतिक संस्थाओं के माध्यम से हिंदी की जड़ों को मजबूत किया है। यही कारण है कि आज अमेरिका, रूस, जापान, यूरोप और अफ्रीकी देशों के विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है और विश्व हिंदी सम्मेलन जैसे आयोजन इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान प्रदान कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के प्रयास भी इसी दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं।
तकनीकी युग में हिंदी का विस्तार और भी तीव्र हुआ है। 2011 से 2021 के बीच इंटरनेट पर हिंदी कंटेंट की वृद्धि दस गुना से अधिक दर्ज की गई। गूगल के अनुसार आने वाले वर्षों में हिंदी उपभोक्ताओं की संख्या अंग्रेज़ी से आगे निकल जाएगी। फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हिंदी सबसे तेजी से बढ़ती भाषाओं में है। करोड़ों सब्सक्राइबर वाले हिंदी यूट्यूब चैनल और हिंदी ब्लॉगिंग ने युवा उद्यमियों और क्रिएटिव प्रोफेशनल्स को नए अवसर दिए हैं। गूगल ट्रांसलेट और माइक्रोसॉफ्ट ट्रांसलेटर जैसे उपकरण हिंदी को प्राथमिकता दे रहे हैं। वॉयस रिकग्निशन, चैटबॉट और एआई तकनीक ने बैंकिंग, शिक्षा और सरकारी सेवाओं में हिंदी के उपयोग को सरल बनाया है।
पत्रकारिता के क्षेत्र में भी हिंदी की स्थिति सबसे सशक्त है। भारत में दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, अमर उजाला और हिन्दुस्तान जैसे अख़बार करोड़ों पाठकों तक पहुँचते हैं और ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर छोटे कस्बों तक का दायरा समेटे हुए हैं। हिंदी समाचार चैनल दर्शकों की संख्या में अंग्रेज़ी चैनलों से कहीं आगे हैं, जबकि डिजिटल पोर्टल और यूट्यूब आधारित पत्रकारिता ने स्वतंत्र पत्रकारों के लिए नए करियर विकल्प खोले हैं।
इसी तरह पर्यटन, फिल्म और ओटीटी उद्योग, शिक्षा और अनुवाद के क्षेत्र में भी हिंदी ने रोजगार की संभावनाएँ बढ़ाई हैं। विदेशी पर्यटक हिंदी बोलने वाले गाइडों को प्राथमिकता देते हैं। बॉलीवुड की हिंदी फ़िल्में और नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, हॉटस्टार जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर हिंदी कंटेंट का वैश्विक प्रभाव साफ़ दिखाई देता है। विदेशों में हिंदी अध्यापन तथा भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) के माध्यम से भेजे गए शिक्षक हिंदी के प्रसार को आगे बढ़ा रहे हैं। साथ ही, अनुवादकों, प्रूफ़रीडरों और कंटेंट विशेषज्ञों की मांग निरंतर बढ़ रही है।
हिंदी केवल संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और जीवन मूल्यों की संवाहिका भी है। तुलसी, सूर, कबीर, प्रेमचंद और दिनकर जैसे रचनाकारों ने हिंदी साहित्य को भारतीय आत्मा से जोड़ा और उसे नैतिकता व राष्ट्रीय चेतना का स्वर दिया। हिंदी के मुहावरे, कहावतें और लोकोक्तियाँ भारतीय समाज की गहराई और उसकी सोच को व्यक्त करती हैं। यही कारण है कि हिंदी आज भी "वसुधैव कुटुम्बकम्" की भावना को जीवंत बनाए हुए है।
संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक हिंदी के प्रयोग, विकास और प्रोत्साहन के स्पष्ट प्रावधान हैं। भारत सरकार का राजभाषा विभाग, राजभाषा पुरस्कार, विश्व हिंदी सम्मेलन और अंतरराष्ट्रीय हिंदी दिवस जैसे आयोजन इसके प्रचार-प्रसार को निरंतर गति दे रहे हैं। ई-गवर्नेंस, रेलवे, पासपोर्ट सेवा, आधार और न्यायपालिका में भी हिंदी का उपयोग लगातार बढ़ रहा है।
आज हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि रोजगार, तकनीक, पत्रकारिता और संस्कृति की नई संभावनाओं का द्वार बन चुकी है। यह भारतीय पहचान को वैश्विक मंच पर स्थापित कर रही है और तकनीकी प्रगति से इसका भविष्य और भी उज्ज्वल दिखता है। हिंदी दिवस हमें स्मरण कराता है कि भाषा केवल शब्दों का समूह नहीं होती, बल्कि यह हमारी आत्मा, संस्कृति और राष्ट्र की पहचान होती है। हिंदी का संरक्षण और संवर्धन करना हर भारतीय का कर्तव्य है।