शिकागो धर्म सम्मेलन: स्वामी विवेकानंद ने विश्वबंधुत्व का दिया संदेश

11 Sep 2025 12:05:44


vivekanand ji  

 
आयुष शर्मा
 

"अमेरिका निवासी बहनों और भाइयों..."

 

भारत के एक युवा ने शिकागो में मंच से इतना ही कहा था कि श्रोताओं की करतल-ध्वनि से सभागार गूंज उठा।

 

12 जनवरी 1863 (पौष कृष्ण सप्तमी, विक्रम संवत् 1919, युगाब्द 4965) को कोलकाता में विश्वनाथ दत्त एवं भुवनेश्वरी देवी के घर नरेन्द्रनाथ दत्त का जन्म हुआ, जिन्हें विश्व स्वामी विवेकानंद के नाम से जानता है।

 

विभिन्न कठिनाइयों और “नीग्रो, काला कुत्ता” जैसे अपमानजनक शब्दों का सामना करते हुए स्वामी विवेकानंद शिकागो पहुँचे। 11 सितंबर 1893 (भाद्रपद शुक्ल द्वितीया, विक्रम संवत् 1949, युगाब्द 4995) को धर्म सम्मेलन प्रारंभ हुआ। आर्ट इंस्टिट्यूट का विशाल सभागार लगभग 7,000 श्रोताओं से खचाखच भरा था, जिसमें विभिन्न देशों के श्रेष्ठतम प्रतिनिधि उपस्थित थे। स्वामी विवेकानंद ने इससे पहले कभी इतने विशाल और विशिष्ट जनसमूह को संबोधित नहीं किया था। उन्हें घबराहट का अनुभव हुआ, किंतु उन्होंने मन ही मन वाणी की देवी माँ सरस्वती को नमन कर अपना भाषण आत्मीयता से भरे इन शब्दों से आरंभ किया अमेरिका निवासी बहनों और भाइयों”।

 

यह सुनते ही श्रोताओं की करतल-ध्वनि की गड़गड़ाहट लगभग दो मिनट तक गूँजती रही। सभी उपस्थितजन किसी असामान्य व्यक्तित्व का सम्मान करने के लिए खड़े हो गए।

 

स्वामी विवेकानंद के आदर्श व्यक्तित्व और ओजस्वी वचनों ने जनमानस पर गहरा प्रभाव डाला। अगले दिन के समाचार पत्रों ने उन्हें धर्म संसद की महानतम विभूति बताया। उनके भाषण ने उन्हें वैश्विक मंच पर स्थापित किया और विश्व स्तर पर भारत की “वसुधैव कुटुंबकम्” की अवधारणा को चरितार्थ किया।

 

स्वामी विवेकानंद को लेकर सर्वधर्म महासभा के वैज्ञानिक सत्र के सभापति मरविन मेरी स्नैल ने लिखा

"कुछ भी हो, हिन्दुत्व के सबसे बड़े, महत्वपूर्ण और अनूठे प्रतिनिधि तो स्वामी विवेकानंद थे, जो वास्तव में निर्विवाद संसद में सबसे अधिक लोकप्रिय व्यक्ति रहे। और समस्त अवसरों पर अन्य वक्ताओं की तुलना में उन्हें ही सबसे उत्साहपूर्ण रीति से ग्रहण किया गया, चाहे वह ईसाई हो या गैर ईसाई। वे जहाँ भी जाते, लोग उनके पीछे चल पड़ते और उनके एक-एक शब्द से बड़ी उत्सुकता से जुड़ जाते। अमेरिका उन्हें यहाँ भेजने के लिए भारत का कृतज्ञ है और आग्रह करता है कि ऐसी और विभूतियाँ भेजे।"

 

श्री अरविन्द ने कहा

 

"विवेकानंद का (पश्चिम में) जाना विश्व के सामने पहला जीता-जागता संकेत था कि भारत जाग उठा है... न केवल जीवित रहने के लिए, बल्कि विजयी होने के लिए।"

 

शिकागो धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद की उपस्थिति न केवल भारत के पुनरुत्थान के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी, बल्कि इसने वैश्विक पटल पर भारत की संस्कृति और एकता की पहचान को भी उजागर किया।

 

शिकागो धर्म सम्मेलन स्मृति दिवस भारत के सांस्कृतिक गौरव, आध्यात्मिक दर्शन और स्वामी विवेकानंद के ओजस्वी वचनों की याद दिलाता है।
 
 
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