बाघों की संख्या और संरक्षण में मध्यप्रदेश की साख पूरे संसार में बढ़ी

07 Aug 2025 10:51:21

बाघ


-रमेश शर्मा

विरासत के साथ विकास की अपनी यात्रा में अग्रणी मध्यप्रदेश में गौरव के विभिन्न आयामों में अब बाघ संरक्षण भी जुड़ गया है। बाघों की संख्या की दृष्टि से यदि भारत का नाम संसार में सबसे ऊपर है और मध्यप्रदेश का नाम देश के सभी प्राँतों में अग्रणी है। बाघ संरक्षण में मध्यप्रदेश अब विश्व स्तर पर भी प्रतिष्ठित हुआ और अभ्यारण्य देखने केलिये पर्यटकों की संख्या भी बढ़ी।
"बाघ" शब्द संस्कृत के "व्याघ्र" शब्द से बना है। इसे सामान्य बोल-चाल की भाषा में "बब्बर शेर" अथवा "टायगर" भी कहते हैं। जबकि वैज्ञानिक भाषा में इसका नाम "पेंथेराटिग्रिस"(Panthera tigris) है। भारत में बाघ को "राष्ट्रीय पशु" भी घोषित किया गया है। इसकी मुख्य रूप से दो प्रजाति और नौ उप प्रजाति खोजी गई हैं इन नौ में से तीन उपप्रजातियों को विलुप्त मान लिया गया है। यद्यपि शोध कर्ताओं ने बाघ की उत्पत्ति चीन से होना माना है। वहाँ बाघ के सबसे प्राचीन जीवाश्म मिले हैं लेकिन प्राकृतिक रूप बाघों और अन्य वन्य जीवों केलिये भारत की धरती सबसे उपयुक्त मानी गई है। इसीलिए भारत में बाघों की संख्या सर्वाधिक है। इसके अतिरिक्त सफेद रंग का "श्वेत बाघ" अर्थात "व्हाईट टायगर" केवल भारत में ही पाया गया है। मध्यप्रदेश केलिये यह अतिरिक्त गर्व की बात है कि इस "व्हाईट टायगर" की जन्म भूमि मध्यप्रदेश का विन्ध्य क्षेत्र है। गोविन्दगढ़ में इसके लिये विशिष्ट अभ्यारण्य तैयार किया गया है। इसे देखने केलिये भी दुनियाँ भर से पर्यटक यहाँ आते हैं। हालाँकि बीच में व्हाईट टायगर के अस्तित्व पर संकट आ गया था। लेकिन अब इनकी संख्या बढ़कर चार हो गई है।

एक ओर भारत में व्हाईट टायगर सहित सभी बाघों की संख्या में वृद्धि संतोषजनक है वहीं पूरी दुनियाँ बाघों की घटती संख्या से चिंतित है। बाघ संरक्षण केलिये नित नये उपाय किये जा रहे हैं। समाज चेतना केलिये विश्व स्तर पर बाघ संरक्षण दिवस का आयोजन की परंपरा भी आरंभ हूई है। इससे चेतना तो आई है लेकिन दुनियाँ के अन्य देशों में बाघों की संख्या में अनुकूल वृद्धि नहीं आँकी जा रही। कुछ देश तो ऐसे हैं जहाँ अभी भी बाघों संख्या घट रही है। इनमें दक्षिण पूर्वी ऐशियाई देश हैं। लेकिन बाघ संरक्षण की दिशा में भारत का संसार में अलग है। यहाँ सामाजिक चेतना भी जागी है। और सरकारों ने भी विशेष उपाय किये हैं। इसीलिए भारत में बाघों की संख्या निरंतर बढ़ रही है।

बाघ संख्या वृद्धि में भारत का हृदय प्राँत माना जाने वाला मध्यप्रदेश देश के सभी प्राँतों में अग्रणी है। मध्यप्रदेश में बाघों की संख्या भी बढ़ी है और बाघ अभ्यारण्य भी बढ़े। इसके लिये मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव सरकार ने बाघ संरक्षण की दिशा में अतिरिक्त प्रयास किये और कुछ नवाचार भी किये। ये प्रयास चारों दिशाओं में किये गये। बाघ अभ्यारण्यों की संख्या बढ़ाई गई, दूसरा सभी बाघ अभ्यारण्य का विस्तार भी किया गया, वन्य जीवों की रुचि एवं शैली के अनुरूप अभ्यारण्यों का वातावरण बनाया गया। और अभ्यारण्य के आसपास लगभग दो सौ गांवों को विस्थापित भी किया गया। ताकि मानवीय उपस्थिति से धरती का प्राकृतिक स्वरूप न बदले और प्रदूषण न बढ़े। मध्यप्रदेश में किये गये इन नवाचारों को प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने भी प्रशंसा की है।
बाघों की संख्या में विशिष्ट स्थान

ग्लोबल टाइगर फोरम के वर्ष 2022 के अनुसार पूरे संसार में लगभग 5,574 से 6000 के बीच कुल बाघ हैं। इनमें लगभग 65% बाघ केवल भारत में हैं। भारत के 18 राज्यों में कुल 58 बाघ अभ्यारण्य हैं। भारत में बाघों की कुल 3682 से 4000 के बीच आँकी गई है। भारत में बाघों की इस कुल संख्या में मध्यप्रदेश का योगदान 785 से 900 के बीच की संख्या है। मध्यप्रदेश में 785, देश में 3682 और दुनियाँ 5574 बाघ संख्या का वह आँकड़ा है जो गिनती में आया है। यह माना जाता है कि कुछ बाघ गिनती में आई इस संख्या के अतिरिक्त भी होंगे है। कुछ संख्या अतिरिक्त अनुमानित की जाती है। मध्यप्रदेश में 785 बाघ संख्या तो गिनती में आई है लेकिन इसे अधिकतम नौ सौ तक अनुमानित माना गया है। मध्यप्रदेश की भूमि की प्राकृतिक विशेषता बाघों के अनुकूल है। उसी के अनुरूप यहाँ अभ्यारण्य विकसित किये गये हैं। मध्यप्रदेश में बाघ विकास अभियान पूरे भारत में सर्वश्रेष्ठ है । इसलिए मध्यप्रदेश को "टायगर स्टेट" का सम्मान मिला। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के नवाचारों से मध्यप्रदेश का नाम पूरे संसार में जाना गया।

मध्यप्रदेश में कुल नौ बाघ अभ्यारण्य हैं। ये कान्हा किसली, बांधवगढ़, पेंच, पन्ना, सतपुड़ा, संजय दुबरी सीधी, नौरादेही, माधव नेशनल पार्क और डॉ. विष्णु वाकणकर टाइगर रिजर्व रातापानी नाम से जाने जाते हैं। इनमें बांधवगढ़ अभ्यारण्य में सबसे अधिक बाघ हैं। यह मध्यप्रदेश का सबसे प्रसिद्ध बाघ अभ्यारण्य है। मध्यप्रदेश के वन विभाग ने अभ्यारण्य प्रबंधन में वन्यजीवों के व्यवहारिक रुचियों के अनुरूप प्राकृतिक वातावरण बनाया तथा स्थानीय निवासियों की सहभागिता को भी प्रोत्साहित किया। मध्यप्रदेश के सभी अभ्यारण्यों में वन्यजीवों की चिकित्सा के लिये भी समुचित प्रबंध की गई हैं। इसके लिये चिकित्सालय, चलित चिकित्सालय के साथ विशिष्ट वन्य जीव परिवहन वाहनों की भी व्यवस्था की गई है। इन बेहतर प्रबंधों के चलते ही मध्यप्रदेश को "टाइगर स्टेट" का गौरव मिला है। अधिक बाघ संख्या के साथ राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्र के प्रबंधन में भी मध्यप्रदेश शीर्ष स्थान पर है। मध्यप्रदेश के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। वहीं केन्द्र सरकार की बाघ अभ्यारण्य प्रबंधन की प्रभावशीलता के मूल्यांकन में पेंच टाइगर रिजर्व ने देश में सर्वोच्च स्थान दिया है। केन्द्र सरकार की इस रिपोर्ट में बांधवगढ़, कान्हा, संजय और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व का प्रबंधन को भी सराहनीय माना है।

बाघ संरक्षण में नवाचार मध्यप्रदेश के नवाचार

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी भी बाघ सहित सभी वन्यजीवों के संरक्षण में रूचि ले रहे हैं। उनका मानना है कि वन में प्राणियों का विविध स्वरूप एक दूसरे के अस्तित्व में संतुलन बनाता है और विकास भी करता है। इसीलिए मोदीजी ने भारतीय वनों चीतों की गिरती संख्या में संतुलन बनाने केलिये चीतों के पुनर्स्थापन का अभियान चलाया है। प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी की इस पहल के अनुरुप मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने भी मध्यप्रदेश में चीतों के पुनर्स्थापन योजना हाथ में ली। इसके अंतर्गत उज्जैन और जबलपुर के चिड़ियाघर में चीता और अन्य वन्य जीवों का पुनर्स्थापन किया। उज्जैन और जबलपुर को पुनर्स्थापन केन्द्र के रूप में भी विकसित करने की दिशा में काम आरंभ हुआ । मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने जिस प्रकार विरासत के साथ विकास के मोदीमंत्र के अनुरुप मध्यप्रदेश के साँस्कृतिक स्वरूप के साथ औद्योगिकीकरण में नवाचार किये हैं ठीक उसी प्रकार बाघ एवं वन्यजीवों के संरक्षण केलिये अभ्यारण्यों के विकास में भी नवाचार किये हैं। इन नवाचारों के कारण ही वन्य जीव संरक्षण में मध्यप्रदेश देश में अग्रणी बना और भारत को बाघ संरक्षण में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिली। कान्हा अभ्यारण्य में विशिष्ट आवास प्रबंधन प्रथाओं को लागू किया गया है। इसमें चरागाहों का रखरखाव, जल निकास, खरपतवार की सफाई आदि बातें शामिल हैं। गांवों विस्थापन से खाली भूमि में वन्य प्राणियों का विचरण आरंभ हुआ है। वन के कितने ही प्राणी हैं जो मनुष्य से भयभीत रहते हैं। वनक्षेत्र के गावों को विस्थापित करने से प्राणियों भय समाप्त होकर निश्चिंतता आई है। लगभग सभी अभ्यारण्य क्षेत्रों वन्यजीवों की निगरानी के लिये विशिष्ट मोबाइल ऐप का उपयोग किया जा रहा है। कान्हा अभ्यारण्य मंडला जिले में है।

बाघ संरक्षण में भारत को ख्याति में कान्हा टाइगर रिजर्व के साथ सतपुड़ा टाइगर रिजर्व की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व नर्मदापुरम जिले के अंतर्गत नर्मदा नदी के किनारे है। यह मध्य प्रदेश का पहला बायोस्फीयर रिजर्व भी है
और इसी के कारण मध्यप्रदेश को विश्व स्तर पर "टाईगर स्टेट" के रूप में पहचान मिली। मध्य प्रदेश केवल बाघ ही नहीं चीता, गिद्ध, भेड़िया आदि वन्यजीवों की संख्या में प्रथम स्थान पर है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के निर्देशन में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए किये गये नवाचारों में सबसे पहला अभ्यारण्यों का वातावरण वन्य जीवों की प्रकृति के अनुरूप पर्यावरण विकसित करने का किया। वन्य प्राणियों और बाघों की संख्या वृद्धि में अभ्यारण्य के पर्यावरणीय स्वरूप की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। मध्यप्रदेश सरकार ने अपने अभ्यारण्यों को बाघों के रहवास क्षेत्रों का प्रबंधन उनके अनुकूल प्राकृतिक स्वरूप में विकसित किया जा रहा है इसी से बाघों की संख्या में वृद्धि में अनुकूलता का वातावरण मिला। मध्यप्रदेश के कॉरिडोर उत्तर एवं दक्षिण भारत के बाघ रिजर्व से आपस में जुड़े हुए हैं। इससे वन्यजीवों के परिवहन में सुविधा होती है। राज्य शासन ने अभ्यारण्य और वनक्षेत्र से लगे लगभग दो सौ गांवों का भी विस्थापन किया ताकि मानवीय उपस्थिति और इससे वनक्षेत्र का भूभाग जैविक दवाब से मुक्त हुआ और वन्य प्राणियों के रहवास क्षेत्र का विस्तार हुआ है। कान्हा, पेंच और कूनो पालपुर के कोर क्षेत्र में आसपास के सभी गांवों को विस्थापित किये जा चुके हैं। जबकि सतपुड़ा बाघ अभ्यारण्य का भी नब्बे प्रतिशत से अधिक कोर क्षेत्र भी जैविक दबाव से मुक्त हो चुका है। अनुकूल वातावरण बताने के साथ जीन्स टेस्टिंग से बाघों की विशिष्ट पहचान की। मध्यप्रदेश के वन विभाग ने गुजरात के बनतारा जू और रेस्क्यू सेंटर की भाँति उज्जैन और जबलपुर में रेस्क्यू सेंटर बनाने का कार्य प्रारंभ कर दिया है । व्हाईट टायगर केलिये रीवा जिला अंतर्गत गोविंदगढ़ अभ्यारण्य में "व्हाइट टाइगर ब्रीडिंग सेंटर" की स्थापना की जा रही है। केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की एक्सपर्ट कमेटी की सिफारिश के बाद इसे केंद्र सरकार की स्वीकृति भी मिल गई है।

 
पूरे संसार के पर्यटकों का का आकर्षण बने मध्यप्रदेश के बाघ अभ्यारण्य

बाघ अभ्यारण्य एवं वन्य जीवों के संरक्षण की दिशा में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा किये जा रहे नवाचारों केलिये प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी द्वारा तो प्रशंसा की ही गई है, इसके साथ पूरे संसार के पर्यटकों के लिये भी मध्यप्रदेश आकर्षण का केन्द्र बना है। मध्यप्रदेश की धरती दुनियाँ के प्रागैतिहासिक एवं प्राचीनतम भूभागों में से एक है। इस कारण ऐतिहासिक, साँस्कृतिक और धार्मिक तीन प्रकार के पर्यटक मध्यप्रदेश आते रहे हैं। लेकिन अब पूरी दुनियाँ से बाघ अभ्यारण्य देखने केलिये मध्यप्रदेश आने वाले पर्यटकों की संख्या भी बढ़ी है।

वन्य जीव पर्यटन में मध्यप्रदेश विशेष आकर्षण का केन्द्र बनकर उभरा है। वर्ष 2023-24 की तुलना में वर्ष 2024-25 मे मध्यप्रदेश के विभिन्न बाघ अभ्यारण्य में आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या में पच्चीस से तीस प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2023-24 में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 25894, कान्हा टाइगर रिजर्व में 18179, पन्ना टाइगर रिजर्व में 12538, पेंच टाइगर रिजर्व में 9856 और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में 6876 विदेशी पर्यटक आये थे। वहीं 2024-25 में 32528 कान्हा बाघ अभ्यारण्य, 23059 पन्ना बाघ अभ्यारण्य, 15201 पेंच अभ्यारण्य 13127 और सतपुड़ा बाघ अभ्यारण्य घूमने केलिये 10038 विदेशी पर्यटक आये। जबकि भारतीय पर्यटकों की संख्या इससे अलग है। पिछले पाँच वर्षो में मध्यप्रदेश के बाघ अभ्यारण्य देखने आने वाले पर्यटकों की कुल संख्या 824379 रही। इनमें भारतीय पर्यटकों की संख्या 738637 और विदेशी पर्यटकों की 85742 संख्या रही।
मध्यप्रदेश में इस प्राकृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने केलिये भी मध्यप्रदेश सरकार ने कयी नवाचार किये है। सुरक्षित पर्यटन वाहनों में घूमते हुये बाघ को को समीप से देखने के साथ इन अभ्यारण्य के अन्य वन्यजीवों के बारे में पर्यटकों को अवगत कराने वाले विशिष्ट गाइड भी रहते हैं। मध्यप्रदेश में अभ्यारण्य पर्यटन में वृद्धि का कारण अभ्यारण्य के वन्यजीवों की विविधता एवं पर्यटकों केलिये बढ़ाई गई सुविधाएँ भी हैं।
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