सनातन समाज में जातीय वैमनस्य बढ़ाने और मुस्लिम तुष्टीकरण अब एक ही कानून में

07 Aug 2025 09:39:17

rohit bemula


- रमेश शर्मा

काँग्रेस ने अपने शासनकाल में सनातन समाज में जातीय विभाजन रेखा गहरी करने और मुस्लिम तुष्टीकरण के लिये तो कई कानून बनाये हैं लेकिन अब काँग्रेस शासित राज्य एक ही कानून ऐसा बनाने जा रहे हैं जिसमें सनातन समाज मे जातीय वैमनस्य बढ़ाने और मुस्लिम तुष्टीकरण दोनों काम साथ-साथ होंगे। जिसका नाम "रोहित वेमूला एक्ट" होगा। कर्नाटक सरकार ने तो इसका प्रारूप भी तैयार कर लिया है।

प्रस्तावित "रोहित वेमूला एक्ट" में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग को शामिल किया है। यह कानून शिक्षण संस्थानों में लागू होगा। एक्ट में वर्णित इन वर्गों के किसी विद्यार्थी द्वारा सामान्य वर्ग के किसी विद्यार्थी, शिक्षक, या संस्थान से संबंधित किसी व्यक्ति के विरुद्ध की जाने वाली शिकायत को संज्ञेय और गैर जमानती माना गया है। जिसमें अधिकतम तीन वर्ष की कैद का प्रावधान किया गया है। ऐसी शिकायतों पर उचित कार्रवाई न करने वाले शिक्षण संस्थाओं पर भी कार्रवाई होगी। ऐसे संस्थान को राज्य सरकार कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलेगी। यदि किसी संस्थान के बारे में बार-बार उल्लंघन करने की शिकायत आती है तो ऐसे संस्थान की मान्यता भी समाप्त की जा सकती है। ऐसे संस्थान प्रभारी को एक वर्ष के कारावास एवं दस हजार रुपये जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है। न्यायालय में आरोपी को सजा घोषित होने के बाद राज्य सरकार द्वारा शिकायतकर्ता को आर्थिक सहायता भी दी जायेगी जो एक लाख रुपये तक हो सकती है।

भारत में अनुसूचित जाति और जनजाति के संरक्षण के कानून पहले से हैं। लेकिन ये इन कानून तभी प्रभावशाली होते हैं जब जातीय आधारित अपशब्द या प्रताड़ना हो। यदि अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति का शिकायतकर्ता सामान्य विवाद की शिकायत करता है और जाति आधारित अपमान की बात नहीं कहता तो आरोपी पर विशेष कानून लागू नहीं होता। ऐसे उदाहरण भी हैं जब किसी अनुसूचित जाति, जनजाति के व्यक्ति ने पहले गुस्से में शिकायत बढ़ा-चढ़ा कर लिखा दी और बाद में उसने न्यायालय में बयान अलग दिये तो आरोपी को लाभ मिल जाता था। लेकिन काँग्रेस शासित राज्यों में बनाये जा रहे इस रोहित वेमूला एक्ट में दो बातें विशिष्ट हैं। एक तो इस एक्ट में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग के साथ वर्गों के साथ मुस्लिम समाज को भी जोड़ा जा रहा है। अब इस एक्ट के अंतर्गत कोई मुस्लिम समाज का छात्र सनातन समाज के किसी सामान्य वर्ग से संबंधित किसी छात्र शिक्षक या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध रिपोर्ट करता है तो भी संज्ञेय और गैर-जमानती धारा लगेगी। इस एक्ट में एक और विशेष प्रावधान है। शिकायतकर्ता को शासन से आर्थिक सहायता तब मिलेगी जब न्यायालय से आरोपी को सजा मिल जायें। इस प्रावधान के चलते शिकायतकर्ता आर्थिक लाभ हेतु अपनी शिकायत पर अंत तक अड़ा रहेगा।

काँग्रेस अपनी तुष्टीकरण की नीति के अंतर्गत मुसलमानों को ओबीसी में शामिल करने का अभियान लंबे समय से चला रही है। ताकि उन्हें आरक्षण का लाभ मिल सके। इससे भले सनातन ओबीसी का कोटा कम हो जाए लेकिन काँग्रेस मुस्लिम वर्ग को आरक्षण का लाभ देने के लिये कटिबद्ध है। लेकिन अब काँग्रेस "रोहित वेमूला एक्ट" बनाकर मुस्लिम वर्ग को वह कानूनी विशेषाधिकार देने की तैयारी कर रही है जो अनुसूचित जाति और जनजाति को हैं। वह भी इसका नाम "रोहित वेमूला एक्ट" रख रही है।

झूठ बोलकर अनुसूचित जाति की छात्रवृत्ति ली थी रोहित वेमूला ने

किसी भी राष्ट्र की प्रगति उसके निवासियों की समरसता और एकजुटता में होती है। प्रत्येक देश अपनी योजनाओं अथवा अधिनियम के नाम उन महापुरुषों के नाम पर रखते हैं, जिनका व्यक्तित्व और कृतित्व समाज के लिये आदर्श होते हैं। लेकिन काँग्रेस नेता राहुल गाँधी के पत्र के आधार पर बनाये जा रहे इस एक्ट से सनातन समाज में वैमनस्य तो बढ़ेगा ही साथ ही इस कानून का नाम ऐसे नौजवान के नाम पर रखने का निर्णय लिया है, जो था तो पिछड़े का, लेकिन उसने अनुसूचित जाति होने का झूठा प्रमाण पत्र प्रस्तुत करके छात्रवृत्ति ली, फिर स्वयं को दलित होने के कारण पीड़ित बताकर विश्वविद्यालय परिसर में जातीय वैमनस्य फैलाने की राजनीति की। जब दलित न होने की पोल खुलने लगी तो उसने आत्महत्या कर ली। वह नौजवान हैदराबाद विश्वविद्यालय का छात्र रोहित वेमूला था। इस एक्ट का नाम "रोहित वेमूला एक्ट" रखने का सुझाव भी श्री राहुल गाँधी ने अपने पत्र में दिया है।

रोहित वेमूला मूलतः आन्ध्रप्रदेश के गुंटूर जिले का रहने वाला था। वह वड्डेरा समुदाय से था। यह समुदाय पिछड़े वर्ग में आता है। लेकिन रोहित वेमूला ने अपने लिये अनुसूचित जाति होने का प्रमाण-पत्र बनवाया और हैदराबाद विश्वविद्यालय में पढने आ गया। अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र के आधार पर उसे छात्रवृत्ति मिलने लगी जो पच्चीस हजार रुपये प्रतिमाह तक हो गई थी। वह यहाँ "अम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन" से जुड़ गया। अंबेडकर स्टूडेंट्स यूनियन बाबा साहब अंबेडकर को अपना आदर्श बताती है। लेकिन इस संस्था की गतिविधियाँ मार्क्सवादी विचार के आसपास होतीं हैं। बाबा साहब अंबेडकर मुस्लिम वर्ग और इस्लाम को लेकर बहुत अलग विचार रखते थे। जो समय-समय पर उनके लेखन में व्यक्त हुये हैं। इसीलिये उन्होंने इस्लाम धर्म के बजाय बौद्धमत अपनाया।

जबकि अंबेडकर स्टूडेंट्स यूनियन ने अपनी राजनीति में सनातन समाज से संबंधित सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों की बजाय मुस्लिम समाज के विद्यार्थियों को प्राथमिकता दी। रोहित वेमूला के भाषणों में सामान्य वर्ग सदैव ही निशाने पर होता था। इसके चलते रोहित वेमूला की पहचान एक आक्रामक दलित छात्र नेता के रूप में बन गई। यह संस्था और रोहित वेमूला उस समय पूरे देश की चर्चा में आये जब अगस्त 2015 में याकूब मेमन को फाँसी दिये जाने के विरोध में सेमिनार आयोजित किया गया और विश्वविद्यालय परिसर में जुलूस भी निकाला।

याकूब मेमन 1993 में मुम्बई के सीरियल ब्लास्ट आतंकी घटना का मास्टर माइंड माना गया था और उसे 30 जुलाई 2015 को फाँसी दी गई थी। भारत में एक समूह ऐसा है जो आतंकवादियों का समर्थन करने सदैव तत्पर रहता है। इन समूहों को कुछ राजनीतिक दलों का समर्थन भी मिल जाता है। याकूब मेमन की फांसी रोकने के लिये कुछ मानवतावादी संगठन भी सामने आये। संभवतः इन मानवाधिकार संगठनों की दृष्टि में सीरियल ब्लास्ट में मारे गये 257 नागरिकों और उनके पीड़ित परिवारों के मानवीय अधिकार उतने नहीं थे, जितने याकूब मेमन के थे। इसलिये वे याकूब मेमन के मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिये सड़क पर निकले। इस सीरियल ब्लास्ट में मरने वालों में अनुसूचित जाति, जनजाति के भी लोग थे। फिर भी अंबेडकर स्टूडेंट्स यूनियन और रोहित वेमूला मरने वालों के समर्थन के बजाय याकूब मेमन का समर्थन करने मैदान में आये। याकूब मेनन के समर्थन में हुए इस सेमिनार की चर्चा सड़क से संसद तक हुई।

हैदराबाद विश्वविद्यालय में विद्यार्थी परिषद की शाखा थी। विद्यार्थी परिषद ने याकूब मेमन के समर्थन में हुए इस आयोजन का विरोध किया। केन्द्र और राज्य सरकार को ज्ञापन भी भेजा और आतंकवादियों के समर्थकों पर कार्रवाई की मांग की। विद्यार्थी परिषद के इस विरोध को रोहित वेमूला और उनकी टीम ने दलित विरोधी को जातिवादी एवं मनुवादी मानसिकता बताकर लोगों का ध्यान भटकाने का प्रयास किया। तभी एक शिकायत यह भी सामने आयी कि रोहित वेमूला अनुसूचित जाति का नहीं है। चूँकि उनके परिवार के अन्य व्यक्तियों ने कुछ शासकीय दस्तावेजों में पिछड़ा वर्ग लिखा था। प्रारंभिक जांच में यह शिकायत सही पाई गई कि रोहित वेमूला तो अनुसूचित जाति का नहीं बल्कि वड्डेरा समुदाय से है। फिर भी वह अनुसूचित जाति के नाम पर छात्रवृत्ति ले रहा है। उस पर आतंकवादियों के समर्थन का मुद्दा गरमा ही रहा था।

दोनों बातें सामने आने पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने रोहित वेमूला सहित चार लोगों को निलंबित कर दिया। रोहित वेमूला की छात्रवृत्ति भी बंद कर दी गई। और दोनों प्रकरणों की विस्तृत जांच के आदेश भी दिये गये। जांच के आदेश होने के बाद रोहित वेमूला ने 17 जनवरी 2016 को आत्महत्या कर ली। अपनी आत्महत्या से पहले रोहित वेमूला ने एक पत्र भी लिखा था जिसमें अपनी आत्महत्या के लिये किसी को भी जिम्मेदार नहीं माना और स्वयं का निर्णय लिखा था। लेकिन देश के तथाकथित दलित हितैषियों और मानवता वादियों इस आत्महत्या को एक दलित उत्पीड़न का प्रकरण बनाकर राष्ट्रव्यापी मुद्दा बनाया। देशभर में प्रदर्शन हुए और यह कुप्रचार किया गया है कि दलित रोहित वेमूला को इतना उत्पीड़ित किया गया कि उसने विवश होकर आत्महत्या कर ली। जबकि माना यह जा रहा था कि रोहित वेमूला ने भविष्य में होने वाली संभावित कानूनी कार्रवाई से बचने के लिये आत्महत्या का कदम उठाया। चूँकि अनुसूचित जाति का न होने पर भी अनुसूचित जाति की सुविधा लेना गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। प्रमाणित होने के बाद सजा का प्रावधान है। यह माना गया कि इसी भय से रोहित वेमूला ने आत्महत्या की थी। बाद की जांच में तेलंगाना पुलिस ने भी यही निष्कर्ष निकाला। तेलंगाना पुलिस ने अपनी जो "क्लोजर रिपोर्ट" न्यायालय में प्रस्तुत की थी, उसमें उसमें तर्क दिया था कि रोहित वेमूला जानता था कि वह अनुसूचित जाति का नहीं है, सच्चाई उजागर होने के भय से ही उसने आत्महत्या की। पुलिस द्वारा यह क्लोजर रिपोर्ट जब न्यायालय में प्रस्तुत की गई तब संयोग से तेलंगाना में काँग्रेस के नेतृत्व वाली ही सरकार ही थी। यदि तब भाजपा समर्थित सरकार होती तो यह भी एक बड़ा विवाद खड़ा होता। रोहित वेमूला द्वारा स्वयं को अनुसूचित जाति का बताकर छात्र वृत्ति लेने के झूठ को काँग्रेस नेतृत्व वाली तेलंगाना राज्य सरकार ने प्रमाणित किया। रोहित वेमूला के मन मानस का अनुमान उसके अनुयायियों से भी समझा जा सकता है।

पिछले दिनों जेएनयू दिल्ली के छात्र नेता रहे कन्हैया कुमार ने अपने कुछ आदर्श व्यक्तित्वों के नाम गिनाये थे। इनमें एक नाम रोहित वेमूला का भी था। ये वही कन्हैया कुमार हैं जिनपर आतंकवाद संगठन "जैश-ए-मोहम्मद" से जुड़ाव था। अफजल को वर्ष 2001 में संसद पर हुए आतंकी हमले का मास्टरमाइंड माना गया था। अफजल को 2013 में फांसी हुई थी। इस अफजल गुरु की फांसी की दूसरी बरसी पर जेएनयू में श्रद्धांजलि सभा हुई थी और राष्ट्र विरोधी नारे लगे थे। श्रद्धांजलि सभा रखने और राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के आरोपियों में एक नाम कन्हैया कुमार का भी था।

कन्हैया कुमार ने पहले कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में बिहार की बेगूसराय लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। कन्हैया कुमार इन दिनों कांग्रेस में हैं। कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को अपने दल की सदस्यता देकर दिल्ली विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार भी बनाया था। कन्हैया कुमार को अपनी पार्टी में सम्मानित स्थान देकर कांग्रेस अब "रोहित वेमूला एक्ट" बनाकर रोहित वेमूला को एक महानायक बनाने जा रही है। दिल्ली जेएनयू में अफजल गुरु की बरसी पर कार्यक्रम रखना और हैदराबाद में रोहित वेमूला द्वारा याकूब मेमन की श्रद्धांजलि सभा दोनों घटनाएँ एक ही वर्ष 2015 की हैं। यह तथ्य भी विचारणीय है कि ऐसी घटनाओं के पीछे देश व्यापी "स्लीपर सेल" कौन है। चूँकि हैदराबाद और दिल्ली दोनों में बहुत दूरियाँ हैं फिर भी एक ही वर्ष दोनों विश्वविद्यालयों में कार्यक्रम आयोजित हुए। और अब कांग्रेस शिक्षण संस्थानों के लिए यह रोहित वेमूला एक्ट का फार्मूला लेकर आयी।

जेएनयू दिल्ली और हैदराबाद विश्वविद्यालय दोनों स्थानों पर आतंकवादियों के समर्थन में होने वाले इन आयोजनों को देश के सामने वहीं के कुछ छात्र सामने लाये थे जो विद्यार्थी परिषद से जुड़े थे। लेकिन इन दोनों स्थानों पर आतंकवादियों के समर्थन में हुए आयोजनों को कुछ लोगों ने धर्म और कुछ ने जाति से। धर्म और जाति की बात आते ही कांग्रेस सहित कुछ राजनीतिक दल आयोजकों के समर्थन में सामने आ गये। इससे राष्ट्रहित पीछे छूट गया और राजनीतिक हित आगे आ गया। इसके चलते पूरे देश का ध्यान हट गया और उन "स्लीपर सेल" पर किसी ने विचार ही नहीं किया जो युवाओं में आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न करने का कुचक्र चला रहे थे।

वस्तुतः कांग्रेस अपने खिसकते जनाधार को पुनः प्राप्त करने के लिये कांग्रेस नए-नए "फार्मूले" खोज रही है। वह राष्ट्रनीति से दूर होकर केवल राजनीति पर सिमट गयी है। वह भी ऐसी राजनीति जो केवल अपना वोट जुटाने तक सीमित है। इनमें एक फार्मूला जातिवाद का है। जातीय आधारित जनगणना और ओबीसी आरक्षण, मुस्लिम समाज को ओबीसी में शामिल करने जैसे मुद्दे कांग्रेस ने उठाए हैं। यह माना जा रहा है कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जातिवाद का ही लाभ मिला था। इससे लोकसभा में उसकी संख्या बढ़कर 99 हो गई। इसी से उत्साहित होकर कांग्रेस ने अब यह एक नया फार्मूला "रोहित वेमूला एक्ट" लेकर आई है। श्री राहुल गाँधी के पत्र के बाद हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक सरकारें इस दिशा में तेजी से काम कर रहीं हैं।

कर्नाटक में रोहित वेमूला एक्ट के अंतर्गत 94 प्रतिशत जनसंख्या आती है। इस प्रदेश में सामान्य वर्ग की जनसंख्या केवल छह प्रतिशत ही है। कांग्रेस इन तीन प्रांतों में प्रयोग करके पूरे देश में भी यह अभियान चला सकती है। कांग्रेस सहित कुछ राजनीतिक दल मानों भारत राष्ट्र का सांस्कृतिक गौरव की पुनर्प्रतिष्ठा का लक्ष्य तो मानो भूल ही गये हैं। जिस प्रकार विदेशी आक्रमणकारियों ने पहले भारतीय सनातन समाज का दमन किया फिर विभाजन के षड्यंत्र करके आपस में लड़ाया। उनकी सत्ता सूत्र ही "डिवाइड एण्ड रूल" था। उनकी सत्ता मजबूत हुई थी। वही सूत्र अब कुछ राजनीतिक दल अपना रहे हैं और उसी की झलक इस "रोहित वेमूला एक्ट" में दिख रही है।
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