अखंड भारत दिवस: 14 अगस्त का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

14 Aug 2025 15:22:04

akhand bharat


डॉ. भूपेन्द्र कुमार सुल्लेरे
14 अगस्त 1947 की रात, जब भारत का विभाजन हुआ, तो एक ओर स्वतंत्रता का स्वप्न साकार हुआ, वहीं दूसरी ओर करोड़ों हृदय बिखर गए।
घाव: पंजाब, बंगाल, सिंध, बलूचिस्तान और उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में हिंसा, लूटपाट और सामूहिक पलायन।
संकल्प: सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से एक बार पुनः भारत को उसके मूल स्वरूप में लाने का।
यह वही दिन है जब पाकिस्तान ने अस्तित्व ग्रहण किया। संघ के लिए यह दिन केवल दुख का स्मरण नहीं, बल्कि अखंड भारत के संकल्प को सुदृढ़ करने का अवसर है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दृष्टि
संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने 1930 के दशक में ही कहा था—
"भारत का स्वरूप भौगोलिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक है। इसे तोड़ा नहीं जा सकता।"
संघ के सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरुजी) ने विभाजन के तुरंत बाद स्पष्ट कहा
"आज जो विभाजन हुआ है, वह स्थायी नहीं। समय आने पर यह पुनः जुड़ेगा, क्योंकि यह राष्ट्र एक ही आत्मा का अवतार है।"
विभाजन: कारण और परिणाम


कारण:
ब्रिटिश शासन की Divide and Rule नीति।
मुस्लिम लीग की अलगाववादी राजनीति।
1946 का प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस (Direct Action Day) और दंगे।
परिणाम:
लगभग 1.4 करोड़ लोगों का विस्थापन।
10 लाख से अधिक मौतें।
सिंध, लाहौर, ढाका, कराची जैसी सांस्कृतिक-शैक्षिक नगरी भारत से अलग हो गईं।
अखंड भारत दिवस: संघ की पहल
संघ ने 1950 के दशक से 14 अगस्त को ‘अखंड भारत दिवस’ के रूप में मनाना शुरू किया।
गतिविधियां:
शाखाओं में अखंड भारत का ऐतिहासिक मानचित्र (जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका आदि शामिल हों) लगाया जाता है।

 
स्वयंसेवक प्राचीन भारत की सांस्कृतिक सीमाओं और गौरवगाथाओं का वाचन करते हैं।
अखंड भारत के लिए बलिदान देने वाले वीरों (गुरु तेग बहादुर, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, नेताजी सुभाष आदि) का स्मरण।
ऐतिहासिक उदाहरण
1965 का भारत-पाक युद्ध: संघ ने 14 अगस्त को अखंड भारत का संकल्प दिवस बनाकर सीमा पर तैनात सैनिकों के लिए सहयोग अभियान चलाया।
1971 का बांग्लादेश मुक्ति संग्राम: संघ शाखाओं में बांग्लादेश को भारत का सांस्कृतिक अंग बताकर शरणार्थियों की मदद की गई।
1992: अयोध्या आंदोलन के समय अखंड भारत का विचार जन-जन में व्यापक हुआ।
2019: अनुच्छेद 370 हटने पर संघ ने इसे "अखंड भारत की दिशा में ऐतिहासिक कदम" कहा।
 
अखंड भारत की अवधारणा
RSS की दृष्टि में अखंड भारत में केवल वर्तमान भारत नहीं, बल्कि प्राचीन भारत के ये भाग भी शामिल हैं:
 
उत्तर-पश्चिम: अफगानिस्तान (गंधार), पाकिस्तान (सिंध-पंजाब), बलूचिस्तान।
पूर्व: बांग्लादेश, म्यांमार।
दक्षिण: श्रीलंका, मालदीव।
उत्तर: नेपाल, भूटान, तिब्बत।
ये सभी भौगोलिक इकाइयां वेद-पुराण, महाकाव्यों और ऐतिहासिक यात्रा-पथों से भारत की सांस्कृतिक चेतना में रची-बसी हैं।
वर्तमान संदर्भ
2025 में जब वैश्विक परिदृश्य एशिया की ओर केंद्रित है, तब भारत की सुरक्षा और सांस्कृतिक एकता का प्रश्न और प्रासंगिक हो गया है।
 
पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार।
अफगानिस्तान में तालिबान की पुनः सत्ता और हिंदू-बौद्ध धरोहरों का विनाश।
श्रीलंका, नेपाल और भूटान में बढ़ती चीनी दखलंदाजी।
इन परिस्थितियों में संघ का संदेश है—
"अखंड भारत केवल स्मृति नहीं, बल्कि भारत की स्थायी सुरक्षा और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की आवश्यकता है।"
 
संकल्प का दिवस
14 अगस्त हमें तीन बातें याद दिलाता है—
1. विभाजन के घाव को भूलना नहीं।
2. सांस्कृतिक एकता की शक्ति में विश्वास रखना।
3. अखंड भारत के लक्ष्य के लिए पीढ़ी दर पीढ़ी कार्य करते रहना।
यह दिन शोक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण और अखंड राष्ट्र की दिशा में शपथ लेने का अवसर है।
Powered By Sangraha 9.0