
भोपाल। विश्वगुरु भारत की ज्ञान-परम्परा एवं अक्षुण्ण संस्कृति का आधार गुरु- शिष्य परम्परा रही है। गुरु के प्रति कृतज्ञता एवं पूज्य भाव समर्पित करने के लिए गुरु-पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। यह बात चिरायु विश्वविद्यालय के मुख्य सभागार में शुक्रवार को व्यास पूजा के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि भारतीय शिक्षण मण्डल के अखिल भारतीय महामंत्री डॉ. भरतशरण सिंह ने कही।
उन्होंने गुरु-शिष्य के पारस्परिक सम्बन्धों पर प्रकाश डालते हुए शिक्षकों और गुरुओं के निरन्तर ज्ञानार्जन एवं विद्यार्थियों को ज्ञान वितरण को जीवन का तप बताया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. हरिहर बसन्त गुप्ता ने गुरुपूर्णिमा के इतिहास एवं वर्तमान में उसके महत्व पर अपने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. अजय गोयनका ने भारत की गुरु शिष्य परंपरा को सभी क्षेत्रों में श्रेष्ठ बताते हुए सराहना की। उन्होंने भविष्य में चिरायु विश्वविद्यालय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की बात कही।
इससे पूर्व विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ. सुदेश सोहनी ने स्वागत वक्तव्य दिया।
भारतीय शिक्षण मंडल एवं चिरायु विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन किया। सरस्वती वन्दना, संगठन श्लोक एवं ध्येय वाक्य वाचन भी किया गया। श्री शेखर कड़हारकर जी ने संगठन गीत से सभी को मन्त्रमुग्ध किया।