फिल्‍म 'उदयपुर फाइल्स' : उन्‍हें तो फिल्‍म में सत्‍य दिखाने पर साम्‍प्रदायिकता की गंध आ रही है!

25 Jul 2025 14:10:57

udaipur files


- डॉ. मयंक चतुर्वेदी
उच्‍चतम न्‍यायालय में आज सत्‍य घटना पर आधारित फिल्‍म 'उदयपुर फाइल्स' अपने प्रसारण के लिए संघर्ष करती दिख रही है। सभी के सामने है, केस- मोहम्मद जावेद बनाम यूओआई और जानी फ़ायरफ़ॉक्स मीडिया बनाम मौलाना अरशद मदनी, जिसकी सुनवाई 24 जुलाई, 2025 को भी जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच में हुई। जिन्‍हें इस फिल्‍म से परेशानी है, वे सांप्रदायिकता का आधार लेकर यही चाहते हैं कि ये फिल्‍म कभी प्रदर्श‍ित ही न हो। इस फिल्म के प्रदर्शन को रोकने के लिए बड़े-बड़े वकील लगे हुए हैं। ये लोग सर्वोच्च न्यायालय में फिल्म को ‘भड़काने वाला’ बता रहे हैं।
कभी-कभी अभिव्‍यक्‍ति की बात करने वालों, उसके नाम पर प्रदर्शन करेनवालों और कोर्ट में इस फिल्‍म के प्रदर्शन को रोकने के लिए जो केस लड़ रहे हैं, उनकी सोच पर आश्‍चर्य होता है। यह कि क्‍या अभिव्‍यक्‍ति का अर्थ सिर्फ भारत में बहुसंख्‍यक हिन्‍दू समाज पर ही लागू है? जब हम सेक्‍युलर शब्‍द का इस्‍तेमाल अपने देश के लिए करते हैं, तो यह सेकुलरिज्म को बनाए रखने की जिम्‍मेदारी सिर्फ इस देश के हिन्‍दू समाज के ऊपर ही है या इसे लेकर सभी को गंभीर रहने की आवश्‍यकता है?
घटना जिहादी मानसिकता का परिचय; से सत्‍य कैसे झुठलाया जा सकता है ?
इस प्रकरण में जब राष्‍ट्रीय फिल्‍म प्रमाणन बोर्ड ने इसके प्रदर्शन को लेकर अपनी सहमति दे दी। विवाद से जुड़े सभी दृष्‍य हटा दिए गए हैं। तब फिर क्‍यों सर्वोच्‍च न्‍यायालय में यह सिद्ध करने का प्रयास हो रहा है कि यह मूवी दिखाई ही नहीं जानी चाहिए। इससे (हिन्‍दू-मुस्‍लिम) सांप्रदायिक तनाव होने का खतरा है। क्‍या इस सच को झुठलाया जा सकता है कि 28 जून, 2022 को उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल तेली की हत्या दो इस्‍लामिक जिहादियों-रियाज अत्तारी और गौस मोहम्मद ने धारदार हथियार से गला काटकर कर दी थी! एक अन्य इस्‍लामिक जिहादी ने तो उस हत्या का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया तक में साझा किया था। आरोपियों ने दावा किया कि यह कृत्य पूर्व बीजेपी नेता नूपुर शर्मा के समर्थन में कन्हैयालाल द्वारा सोशल मीडिया पर की गई एक पोस्ट का बदला लेने के लिए किया गया है। इस हत्याकांड के बाद पूरी दुनिया में बर्बर इस्‍लामिक जिहादी सोच पर चिंता जताई गई थी।
देखा जाए तो इसी जिहादी सोच के प्रति जागरुक करने के लिए फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ लोगों के सामने प्रस्‍तुत करने का प्रयास फिल्म निर्देशक भरत एस. श्रीनेत के द्वारा किया गया। फिर भी यह समझ से परे है कि आखिर इस फिल्‍म को मोहम्मद जावेद और मौलाना अरशद मदनी एवं कुछ अन्‍य इस फिल्‍म को क्‍यों नहीं प्रदर्श‍ित होने देना चाहते? जबकि सर्वोच्‍च न्‍यायालय में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा बताया गया है कि फिल्म 'उदयपुर फाइल्स' में 55 कट लगाए गए हैं। भड़काऊ सामग्री हटाई गई है। डिस्क्लेमर जोड़े गए हैं; फिल्म की कहानी पूरी तरह से संतुलित है।
वस्‍तुत: यहां सभी को तुषार मेहता के शब्‍दों में यह समझना होगा कि "आतंकवाद एक वैश्विक मुद्दा है। फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे विदेशी संबंधों को खतरा हो या किसी समुदाय को ठेस पहुँचे। कहानी संतुलित है, इसमें सकारात्मक किरदार हैं, और इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह वास्तविक घटनाओं से प्रेरित एक काल्पनिक कहानी है।"
न्‍यायालय को राष्‍ट्रीय फिल्‍म प्रमाणन मानदंडों द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है, यहां तक कि विदेश मंत्रालय तक से भी इस फिल्‍म पर परामर्श किया गया है। फिल्‍म से 13 मिनट का फुटेज काट दिया गया है। पूरी फ़िल्म में सामान्य भाषा का इस्तेमाल किया गया है। सुनवाई के दौरान, निर्माताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव भाटिया ने भी इसी तरह की अपनी जानकारी से कोर्ट को अवगत कराया। फिल्‍म के प्रसारण के पूर्व जो छह प्रमुख बदलाव लागू करने का निर्देश दिया गया था, वे सभी हो चुके हैं। फिर भी आश्‍चर्य है कि इतने अधिक परिवर्तन करने के बाद भी कोर्ट में मोहम्मद जावेद और मौलाना अरशद मदनी की ओर से खड़े वकील अब भी फिल्‍म 'उदयपुर फाइल्स' को सिनेमा घरों में प्रदर्श‍ित होने देना नहीं चाहते!
फिल्‍म पर सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने का लगाया जा रहा आरोप
इस फिल्‍म रिलीज का विरोध करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल (जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से) और मेनका गुरुस्वामी (आरोपी मोहम्मद जावेद की ओर से) का तर्क कि फिल्म आरोपपत्र की नकल करती है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काती है। वास्‍तव में समझ से परे है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि फिल्‍म समाज के जागरण के लिए है। वास्‍तविकता में इस घटना ने देश के करोड़ों देशवासियों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर भारत के स्‍वस्‍थ लोकतंत्र के लिए मजहबी नफरत को कैसे रोका जा सकता है। वास्‍तव में आज इस बात की सबसे ज्‍यादा जरूरत है कि जो लोग न्‍यायालय में इस फिल्‍म के विरोध में खड़े हैं, वे भी कन्हैयालाल के परिवार के दर्द को समझें।
तीन साल से इस केस में किसी भी अपराधी को सजा नहीं मिली
बेटे यश का दर्द भी यही है, ‘फिल्म के खिलाफ जो याचिका लगी है, वह शायद तीन या चार दिन पहले लगी थी। लेकिन एक याचिका जो मैंने पिताजी के घटना के समय आज से करीब तीन साल पहले लगाई थी, उस केस का कोई निष्कर्ष नहीं निकला। आज तक वह केस जैसे का तैसा ही है। उस केस में डेढ़ सौ से अधिक गवाह थे। उसमें शायद 15 या 16 की पेशियां भी नहीं हुईं। न उसमें फास्ट ट्रैक लगा। सबूत वगैरह सब कुछ होने के बावजूद तीन साल से इस केस में किसी भी अपराधी को सजा नहीं मिली।’
यश कहते हैं, ‘जब कोई फिल्म के जरिए देश को हकीकत दिखाना चाहता है, तो इसके लिए पूरा सिस्टम खड़ा हो जाता है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद, मौलाना मदनी आ जाते हैं कि नहीं; इस फिल्म पर रोक लगनी चाहिए। और सिर्फ तीन दिन के अंदर हमें पता चल रहा है कि फिल्म पर रोक भी लग गई। यह योजना कितनी तेज है! वहीं जब किसी केस में अपराधियों को सजा देनी होती है, तो वह नहीं हो रही है। यह गंभीरता से सोचने वाली बात है।हमारे देश में जो नफरत हो रही है, वह नहीं होनी चाहिए। उस समय मेरे पिताजी को बहुत बेरहमी से मार दिया गया। उसके बाद उन्हें अभी तक न्याय नहीं मिला। जब इस विषय पर कोई फिल्म आ रही है जो पूरे देश को संप्रदायिकता और जिहाद के प्रति जगाने का काम करेगी तो उसे प्रदर्श‍ित होने से रोका जा रहा है। ये किस तरह की सोच है? जिस तरह से आतंकवादियों ने साजिश करके मेरे पिताजी को मारा। वह सच आज सभी के सामने है। लेकिन दूसरी तरफ ऐसे भी संगठन हैं जो सत्‍य के साथ नहीं इन राष्‍ट्र विरोधियों के साथ खड़े दिखते हैं। पता नहीं उनको आतंकवादियों से क्या सहानुभूति है?’
कन्हैयालाल की हत्‍या इस्‍लामिक जिहाद के कारण हुई, यही सत्‍य है
विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल कहते हैं, “उदयपुर में कन्हैयालाल के हत्यारों के विरुद्ध एनआईए ने छह माह में ही चार्जशीट दाखिल कर दी थी। किंतु, दुर्भाग्य से मानवता के उन शत्रुओं को तीन वर्षों में भी फांसी नहीं दी जा सकी। वहीं दूसरी ओर फिल्‍म ‘उदयपुर फाइल्स’ पर मात्र तीन घंटे में, बिना फिल्म देखे, उच्च न्यायालय का स्थगन आदेश आना तथा उस ऑर्डर की कॉपी, सम्बंधित पक्षकारों को 21 घंटे बाद तक भी न मिल पाना, बहुत कुछ कहता है? उस फिल्म में आखिर गलत क्या है? क्या हत्या नहीं हुई?”
वे पूछते हैं, “कन्हैयालाल के बेटे को न्याय न दिला कर, क्या कभी उसके लम्बे केश कट पायेंगे और उसके नंगे पैरों को क्या कभी पद वेश मिल पाएंगे ? क्या कभी हत्यारों को फांसी होगी? न्याय की आस में कन्हैयालाल की अस्थियां भी क्या कभी विसर्जित हो पाएंगी!”
देश से बाहर होनी चाहिए जिहादी मानसिकता और कट्टरवादी सोच
कहना होगा कि देश में आज स्‍व. कन्‍हैयालाल के पुत्र, पत्नि एवं परिवारजन या विहिप जैसे संगठन के पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता ही नहीं हैं जो आज इस बर्बर हत्‍याकांड को लेकर सवाल उठा रहे हैं, या फिर अन्‍य इस तरह के मामलों पर अपनी गहरी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। देश भर में करोड़ों जन हैं जो हर हाल में जिहादी मानसिकता, किसी भी तरह के कट्टरवाद, नस्‍लवाद या देश विरोधी गतिविधि को रोक देना चाहते हैं।
ये फिल्‍म सही अर्थों में भारत के आमजन को जगानेवाली एवं तमाम विषयों पर गहराई से सोचने एवं उस पर विमर्श खड़ा करने का सामर्थ्‍य रखती है। अच्‍छा हो कि जो आज इस फिल्‍म के प्रसारण को रोकने के लिए सक्रिय हैं, वे भी भारत की लोकतांत्रिक संवेदना के सशक्‍तिकरण के लिए आगे आएं और फिल्‍म के प्रसारण का समर्थन कर इसे अतिशीघ्र सिनेमाघरों में प्रदर्शित करवाने में अपना सहयोग प्रदान करें।
(लेखक फिल्‍म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्‍य एवं पत्रकार हैं)
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