
प्रज्ञा प्रवाह भोपाल विभाग द्वारा अध्ययन मंडल की बैठक का आयोजन दिनांक 20 जुलाई 2025 को समाज सेवा न्यास में किया गया,जिसमे भारतीय इतिहासकार डॉ सतीश चंद्र मित्तल की चर्चित पुस्तक "आधुनिक भारतीय इतिहास की प्रमुख भ्रांतियां" पर परिचर्चा की गयी, जिसमें प्रज्ञा प्रवाह के द्वि क्षेत्र संजोयक श्री विनय जी दीक्षित, प्रांत सह संयोजक श्री लाजपत जी आहूजा एवं अन्य प्रबुद्ध सदस्य उपस्थित रहे ।
इस परिचर्चा का उद्देश्य आधुनिक भारतीय इतिहास में यूरोपीय एवं यूरो-केन्द्रित भारतीय इतिहासकारों द्वारा प्रचलित भ्रांतिपूर्ण कथाओं की पहचान तथा उनके तथ्यपरक प्रतिवाद को प्रस्तुत करना था। डॉ. सतीशचंद्र मित्तल की पुस्तक में ऐसे अनेक ऐतिहासिक मिथकों का खंडन किया गया है, जिन्हें तथ्यों के आधार पर उलट दिया गया है।श्री अभिषेक शर्मा प्रांत युवा प्रमुख द्वारा पुस्तक का सारांश प्रस्तुत किया गया ।
पुस्तक का सारांश रखते हुए वक्ता ने बताया कि जेम्स मिल का है जिसने history of morden india और articles on Hindu नामक दो पुस्तकों के माध्यम से यूरोसेट्रिक इतिहास लिखने का कार्य प्रारंभ किया वह अपने पूरे जीवन काल में कभी भारत नहीं आया किसी भारतीय से नहीं मिला और न किसी भारतीय भाषा का ज्ञाता था!
एक अत्यंत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक भ्रांति को स्पष्ट करते हुए वक्ता ने कहा कि हमें जो इतिहास पढ़ाया गया है, उसमें यह बताया गया कि वास्को डी गामा ने 1498 में भारत के समुद्री मार्ग की "खोज" की। परंतु यह कथन आधा‑अधूरा ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक रूप से भ्रामक भी है। भारत, विशेषकर केरल और गुजरात के बंदरगाहों, पहले से ही अंतरराष्ट्रीय व्यापार में शामिल थे। अरब, फारस, चीन और पूर्वी अफ्रीका के व्यापारी सदियों से भारतीय तटों से परिचित थे।
वास्को डी गामा को केरल के कालीकट (वर्तमान कोझिकोड) तक पहुंचाने वाला एक "भारतीय पायलट" था, जिसे मलिंदी से बुलाया गया था। यह पायलट एक गुजराती नाविक था, जिसे हिंद महासागर और अरब सागर के समुद्री मार्गों की गहरी जानकारी थी।
डॉ. सतीशचंद्र मित्तल की पुस्तक में The Beautiful Tree का विशेष संदर्भ लिया गया है, जो धर्मपाल द्वारा रचित है। यह विश्लेषन ब्रिटिश प्रशासन द्वारा 18 वीं और 19वीं सदी के आरंभिक वर्षों में किए गए सर्वेक्षणों पर आधारित है, जो तत्कालीन भारतीय शिक्षा प्रणाली की गहराई, पहुँच और सामाजिक समावेशिता को उजागर करती है। *
पुस्तक के आधार पर, इस भ्रम को सशक्तता से खंडित किया क्या कि 1857 का विद्रोह केवल कुछ क्षेत्रों तक सीमित या केवल सैनिकों का असंतोष था। उन्होंने बताया कि यह संग्राम राष्ट्रीय स्वरूप का एक सुसंगठित स्वतंत्रता आंदोलन था, जिसमें *भारत के विविध भू-भागों, जातियों, धर्मों और सामाजिक वर्गों की सक्रिय भागीदारी रही।
डॉ सतीश चंद्र मित्तल जी द्वारा लिखी इस पुस्तक के विभिन्नआयामों के सारांश पर चर्चा के उपरांत *उपस्थित सदस्यों द्वारा पुस्तक पर केंद्रित एवं पुस्तक से इतरविषयों पर परिचर्चा हुई जिसमें अधिकांश सदस्यों ने सहभागिता
परिचर्चा के पश्चात श्री विनय जी दीक्षित का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। अंत में युवा आयाम प्रांत प्रमुख श्री अभिषेक शर्मा द्वारा अगली पुस्तक परिचर्चा के विषय और स्थान के संबंध में जानकारी साझा की गई तथा सभी का आभार व्यक्त किया ।