डॉ. मयंक चतुर्वेदी -
चेहरा हमारे भावों को अभिव्यक्त करता है, अपने व्यक्तित्व को प्रदर्शित करता है और यही चेहरा किसी के लिए भी उसकी मूल पहचान होता है, लेकिन जब इसे ढकने की, न दिखा पाने की शर्त रख दी जाती है, तो ये चेहरा ही फिर कहीं गुम हो जाता है। अब तक न जाने कितने चेहरे बिना कुछ प्रतिक्रिया दिए इस दुनिया से सिर्फ एक मजहबी जिद के चलते गायब हो चुके हैं, इसका आंकड़ा भी यदि निकाला जाएगा तो वह करोड़ों में है, पर अब इस्लामिक देश कजाखस्तान अपनी आधी आबादी को चेहरा ढकने से मुक्ति देने आगे आया है। आगे से यहां की नारी जनसंख्या खुले में खिलखिलाते हुए सांस ले सकेगी। उसकी मुस्कुराहत हो या उसके चेहरे पर आए दर्द के भाव, वे सभी अब सीधे हर कोई महसूस करेगा। हिजाब अब कजाखस्तान के लिए कल की बात हो चुकी है।
सार्वजनिक स्थान पर चेहरा ढकने पर पांबदी -
दरअसल, प्रधानमंत्री कासिम जोमार्ट तोकायेव ने उस कानून पर मुहर लगा दी है, जिसके तहत कजाखस्तान में कोई भी अपना चेहरा नहीं ढक सकेगा। कानून के अनुसार, सार्वजनिक स्थान पर चेहरा ढकने पर पांबदी लग गई है। अब ऐसे किसी भी तरह के कपड़े यहां नहीं पहने जाएँगे, जिससे चेहरे की पहचान नहीं की जा सके। हालाँकि, इसमें कुछ रियायत भी दी गई है। जहाँ मेडिकल कारणों और खराब मौसम में चेहरा ढकने पर रोक नहीं है। वहीं स्पोर्ट्स और सांस्कृतिक कार्यक्रम में पहने जाने वाले कपड़ों में आवश्यकता के अनुसार चेहरा ढका जा सकता है। प्रधानमंत्री कासिम जोमार्ट तोकायेव का कहना है कि चेहरे को ढकने वाले काले कपड़े पहनने से बेहतर यह होगा कि हमारी कजाख शैली के कपड़े पहने जाएं। हमें अपनी संस्कृति और परिधानों को बढ़ावा देना चाहिए।
कजाखस्तान का अपनी पुरानी सांस्कृतिक पहचान से दुनिया को अवगत कराने पर जोर -
आखिर इस देश ने यह निर्णय क्यों लिया, तब गहराई से पड़ताल करने पर ज्ञात होता है कि अब ये देश अपनी पुरानी सांस्कृतिक पहचान से दुनिया को अवगत कराने पर जोर दे रहा है। कजाखस्तान के शीर्ष नेतृत्व को लगता है कि उसके अपने देश की अपनी राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पहचान कहीं पीछे छूट रही है और गुम हो रही है, जिसेकि बढ़ावा देना आवश्यक है। राष्ट्रपति टोकायेव कहा, “चेहरा छुपाने वाले काले हिजाब पहनने के बजाय, देश के अपने परिधानों को महत्व दिया जाए। इससे देश अपनी खुद की संस्कृति को बढ़ावा देगा।” टोकायेव कहते हैं, हमें अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाकर रखनी चाहिए। मजहब तो लोगों का निजी मामला है, लेकिन ड्रेसिंग ऐसी होनी चाहिए, जिससे हमारी राष्ट्रीय पहचान का पता चलता हो।
वास्तव में आज राष्ट्रपति टोकायेव ऐसा करने के लिए इसलिए आगे आए, क्योंकि यहां लम्बे समय से इसकी मांग होती रही है कि भले ही हमने मजहबी तौर पर इस्लाम कबूल कर दिया हो, किंतु हमारी सांस्कृतिक जड़े सोवियत संघ से जुड़ी रही हैं। यहां सोवियत मूल्यों का प्रभाव है, इसीलिए हिजाब से आजादी चाहिए। चेहरा ढकने पर रोक को लेकर पारित कानून में किसी एक मजहब या उसकी ड्रेस का जिक्र नहीं किया गया है, लेकिन इतना स्पष्ट है कि चेहरा ढकने पर पाबंदी रहेगी। पीएम तोकायेव इस कानून की सराहना करते हुए कहते हैं कि इससे हम अपनी कजाख पहचान को मजबूत कर पाएंगे। इसके साथ ही इस्लामी पोशाक को प्रतिबंधित करने वाले मध्य एशियाई, मुस्लिम-बहुल देशों की सूची में यह देश भी अब शामिल हो गया है। जहां स्त्रियों की मुस्कुराहट को सीधे महसूस किया जा सकेगा।
ये निर्णय देता है भारत में इस्लाम की वकालत करनेवाले लोगों को कड़ा संदेश -
देखा जाए तो यह निर्णय भारत में इस्लाम की वकालत करनेवाले उन तमाम लोगों को भी एक संदेश है, जोकि पंथ निरपेक्ष भारत में इस्लाम की पहचान के नाम पर विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों तक में भी अपनी बच्चियों को हिजाब पहनाकर भेजने की जिद पर अड़े हुए हैं। इन्हें समझना चाहिए कि जैसे मुस्लिम बहुल आबादी वाले कई मध्य एशियाई देशों ने सुरक्षा चिंताओं और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रीय पहचान को बनाए रखने के प्रयासों का हवाला देते हुए चेहरा ढंकने पर प्रतिबंध लगाया है। किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान आज इसके सबसे बड़े उदाहरण बन चुके हैं, जिनमें 95 प्रतिशत तक जनसंख्या इस्लाम को मानती है पर वे आज अपनी मूल पुरातन संस्कृति को अपनाने में लगे हैं और इसके लिए वे नकाब, बुर्का और परंजा जैसे परिधानों पर प्रतिबंध लगाते हैं। ताजिकिस्तान में तो नियम इतने कठोर हैं कि देश में हिजाब पहनने या बेचने पर 750 डॉलर (62,000रुपए) से लेकर 3724 डॉलर (3.10 लाख रुपए) तक का जुर्माना लगाया गया है। इन देशों के अलावा फ्रांस, रूस, स्विट्जरलैंड, डेनमार्क, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, इटली जैसे भी कई देश हैं, जहां हिजाब, बुरके पर पाबंदी है।
ऐसे में यह बड़ा प्रश्न भारत के संदर्भ में आज दिखाई देता है कि जब ये देश अपनी मूल संस्कृति के लिए हिजाब, बुरके पर प्रतिबंध लगा सकते हैं तो भारत की जो वैश्विक सांस्कृतिक पहचान बहुसंख्यक हिन्दुओं की सनातन संस्कृति (धर्म) से है, यहां के ज्यादातर मुसलमानों की रोजी-रोटी भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हिन्दू संस्कृति (धर्म) के कारण से चलती है, फिर उसके साथ यहां की बहुसंख्यक मुस्लिम जनसंख्या क्यों नहीं खड़ी दिखाई देती ? भारत में हिजाब को क्यों मुसलमानों ने एक मुद्दा बना रखा है ?