रूफ वाटर हार्वेस्टिंग का अनुपम उदाहरण है रायसेन का किला

18 Jul 2025 16:12:46

Raisen Fort


रायसेन दुर्ग का आठ सौ साल पुराना रूफ वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम जल संरक्षण, जल प्रबंधन तथा निर्माण कौशल का अनुपम उदाहरण है। आठ सौ साल पहले पानी के सदउपयोग, वर्षा जल के भंडारण और संरक्षण के लिये रूफ वाटर हार्वेस्टिंग पद्धती का उपयोग अद्भुत और अनुकरणीय है। इस किले के रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से यह ज्ञात होता है कि उस वक्त शासक और आमजन पानी के प्रति कितने संदवेनशील और दूरदर्शी थे। लगभग 10 वर्ग किलोमीटर में फैला यह किला 11 वीं और बारहवी सताब्दी के मध्य बना है। विदेशी सैलानी भी रायसेन किले का रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम देखकर हतप्रभ रह जाते हैं और वे इसे जल संचय का दुनिया का सबसे अच्छा उदाहरण बताते हैं।

वर्षा जल के भंडारण के लिये किले पर 4 बड़े तालाब और 84 छोटे टांके है। सभी तालाब और टैंक सिर्फ बारिश के पानी से हमेशा लबालब रहा करते थे। किले में बने अलग-अलग महलों की छतों का पानी एक जगह जमा करने के लिए भूमिगत नालियां बनाई गई हैं। बारिश के दिनों में छत का पानी इन्हीं नालियों से होता हुआ तालाब, टांको और भूमिगत टैंकों में पहुंचता था। किले के चारों तालाब क्रमशः मदागन, धोबी, मोतिया और डोला-डोली तालाब सहित 84 टांके एवं रानी महल स्थित रानीताल वर्ष भर जल से भरे रहते थे। किले के प्रत्येक महल, निवास और भवन के नीचे मिले अवशेषों से ज्ञात होता है कि वहां जल संग्रह के लिये भूमिगत कुंड भी बने थे। जल संरक्षण के लिये दुनिया भर में पिछले तीन दशकों से लगातार काम किया जा रहा है। तेजी से गिरते भू-जल स्तर को रोकने, वर्षा जल का भंडारण और पानी के अपव्यय, को रोकन के लिये अनेक देशों द्वारा बड़ी-बड़ी योजनाएं बना कर जल संरक्षण के लिये परंपरागत और नवीन तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। जल संरक्षण के तमाम उपायों के बाद भी आज दुनिया की अधिकांश आबादी भीषण पेय जल संकट से जूझ रही है। जल संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रहे विशेषज्ञों द्वारा जल संकट के समाधान के लिये रूफ वाटर हार्वेस्टिंग और रैन वाटर हार्वेस्टिंग पद्धति को आज की महती आवश्यकता बताया गया है।

राम छज्जा

एक दो मंजिला शैलाश्रय और इसके बीचोबीच पत्थर पर उत्कीर्ण चरण....लोकमान्यता के अनुसार यह भगवान श्री राम के चरण चिन्ह हैं। श्री राम वन पथ गमन से जुड़ा माने जाने वाला यह महत्वपूर्ण स्थान "राम छज्जा" रायसेन शहर में किले के पीछे लगी एक पहाड़ी पर बना है। आदि मानवों की आश्रय स्थली के रूप में ख्यात 15 से अधिक शैलाश्रय यहां मौजूद है। इनमें से ही एक दो मंजिला शैलाश्रय पर यह चरण उत्कीर्ण हैं और इसके आसपास स्वास्तिक बने हैं। पुरातत्वविद डॉक्टर नारायण व्यास बताते हैं कि लोकमान्यता के अनुसार और श्री राम के वनवास समय के विदिशा चरण तीर्थ से जुड़े अध्याय का ही अंश रामछज्जा है। विदिशा के चरण तीर्थ को लेकर कहा जाता है कि भगवान श्री राम वनवास काल में विदिशा भी आये थे। बेतवा नदी पर श्री राम के चरण पड़ने से यह स्थान चरण तीर्थ कहलाया। लोकमान्यता यह है कि श्री राम जब विदिशा से होते हुए पग-पग चलकर बेतवा नदी पार करके रायसेन की तरफ आये तो पगनेश्वर बना। श्री राम ने रायसेन के निकट इस शैलाश्रय समूह में कुछ समय बिताया जहां उनके चरण चिन्ह बने हुए हैं। माता सीता के नाम पर पास में ही सीता तलाई और ग्राम रमासिया (रामसिया) व बनगंवा (वन गमन) के कारण पड़े।



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रायसेन का किला जहां भीमबैठका की तर्ज पर शैल चित्र पाए जाते हैं

रायसेन नगर को एक हिन्दू शासक रायसिंह ने 1143 ईसवी में बसाया था और लगभग उसी कालावधि में वर्त्तमान किले का निर्माण हुआ। परन्तु 6वीं सदी के एक दुर्ग के वहां स्थित होने के संकेत मिलते हैं। रायसेन में सन 1485 ईसवी के आस पास गयासुद्दीन घौरी के शासनकाल में मस्जिद, मदरसे और कई इमारतों के निर्माण किये गए थे। एक और राजपूत सरदार का उल्लेख मिलता है जो तोमर था। नाम था सिल्हादी (शिलादित्य)। उत्तरी मालवा इस के कब्जे में रहा। सन 1531 में सिल्हादी ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह को मालवा पर विजय दिलाई। यह एक संयुक्त अभियान था जिसमे मेवाड़ के राणा सांगा की सेना ने भी भाग लिया था। प्रतिफल स्वरूप सिल्हादी को उज्जैन और सारंगपुर के सूबे दिए जाने थे। मालवा विजय के पश्चात बहादुर शाह को लगा कि सिल्हादी और अधिक शक्तिशाली हो जायेगा और सुलतान के लिए भी खतरा बन सकता है। अतः उसने अपना इरादा बदल दिया और सिल्हादी को रायसेन के किले को खाली कर सौंपने और वापस बरोडा जाने को कहा। सिल्हादी इसके लिए कतई तैयार नहीं था और उसके इनकार किए जाने पर बहादुर शाह द्वारा कैद कर लिया गया। सन 1532 में बहादुर शाह ने सिल्हादी को लेकर रायसेन के किले की घेराबंदी कर दी। उन दिनों किला सिल्हादी के भाई लक्ष्मण राय के कब्जे में था। महीनों की घेराबंदी से भी किले पर बहादुर शाह का आधिपत्य नहीं हो सका। सिल्हादी ने बहादुर शाह से स्वयं अकेले किले में प्रवेश कर अपने भाई को समझाने की पेशकश की और इस प्रस्ताव को मान लिया गया। सिल्हादी किले में प्रवेश कर गया। किले में दोनों भाई गले मिले और उपलब्ध विकल्पों पर विचार किया। रसद की कमी थी और अधिक समय तक शत्रु को रोके रखना संभव नहीं दिख रहा था। सिल्हादी की पत्नी दुर्गावती ने भी जौहर की तैयारी कर ली। वह अपने पुत्र वधु (राणा सांगा की बेटी) और उसके दो बच्चों समेत चिता में कूद पड़ी। 700 अन्य महिलाओं ने भी उनका साथ दिया। सिल्हादी अपने भाई और किले में उपलब्ध सैनिकों के साथ शस्त्र धारण कर सुलतान की सेना से भिड़ गया। किले की तलहटी में ही दोनों वीर गति को प्राप्त हुए। संभवतः बहादुर शाह किले को पूरनमल के आधीन छोड़ गया था क्योंकि सन 1543 में शेर शाह सूरी ने पूरनमल से इस किले को छीन लिया था। सन 1760 से यह किला भोपाल के नवाबों के आधीन रहा।

रायसेन किले के अन्दर जो भवन हैं उनमें बादल महल, रोहिणी महल, इत्रदान महल और हवा महल प्रमुख हैं। ऊपर ही 12वीं सदी के एक शिव मंदिर के होने की भी पुष्टि होती है जिसके पट वर्ष में एक बार शिव रात्रि के दिन खोले जाते हैं। लोहे के दरवाज़े (ग्रिल गेट) में मन्नत मांगते हुए रंगीन कपडे़ या धागे को बाँधने की परंपरा बन गयी है। कुछ लोग तो प्लास्टिक की पन्नियों को ही बाँध जाते हैं। उसी पहाड़ी से लगी हुई कई गुफाएं भी हैं जिनमें भीमबैठका की तर्ज पर शैल चित्र पाए जाते हैं। किला वैसे तो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण में ले लिया गया है परन्तु किले के उद्धार के प्रति पूर्ण उदासीनता बनी रही। किले तक पहुँच मार्ग निर्मित हो चुका है और अभी कुछ दिनों पूर्व अख़बारों से अवगत हुआ कि राज्य शासन ने किले को एक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने हेतु पर्यटन निगम से कई बार प्रस्ताव आमंत्रित किए हैं हालांकि अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है।

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