राष्ट्र निर्माण में श्री राम जी सा नेतृत्व और श्री हनुमान जी सा सेवा भाव की प्रासंगिकता

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    12-Apr-2025
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हनुमान जयंती
-डॉ नुपूर निखिल देशकर 
 
सनातन संस्कृति संपूर्ण विश्व को युगों युगों से आकर्षित कर रही है क्योंकि यहाँ जीवन चरित्र स्वकेंद्रित न होकर राष्ट्र और समाज कल्याण के श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करता है। ऐसे ही दो श्रेष्ठ दिव्य पुरुषों भगवान श्री राम और श्री  राम भक्त श्री हनुमान के जीवन चरित्र से नेतृत्व और नागरिकों को भारत के कल्याण के लिए सदैव मार्गदर्शन लेते रहना चाहिए। राष्ट्र, समाज और जनमानस के लिए राम जी और हनुमान जी का जीवन चरित्र राष्ट्र निर्माण के लिए गहरे प्रेरणा स्रोत हैं। इनके आदर्श हमें समाज में एकता, सेवा और कर्तव्यपरायणता के मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देते हैं।


श्रीराम जी से नेतृत्व का जीवन चरित्र
 
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री  राम जी ने अपने संपूर्ण जीवन में देवत्व को त्याग कर, एक श्रेष्ठ पुरुष के रुप में आपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए नेतृत्व के आदर्श प्रस्तुत किए, उन्होंने व्यक्तिगत सुखों को त्यागकर समाज के कल्याण को प्राथमिकता दी। जो किसी भी राष्ट्र के शासक या प्रशासक के लिए प्रेरणास्रोत हैं। एक नायक को अपनी प्रशासनिक शक्तियों के साथ संतुलित रहकर , अपने राष्ट्र धर्म का पालन करते हुए जनकल्याण करना चाहिए। आज भी राजा या नेतृत्व को निस्वार्थ भाव से समाज के हित में काम करना चाहिए, न कि व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए।
श्री राम जी ने शासन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कभी भी अधर्म का आश्रय नहीं लिया। उन्होंने सदैव न्याय और सत्य के मार्ग पर चलकर निर्णय लिए। वही आज राष्ट्र निर्माण के लिए नेतृत्व और उसकी न्याय व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए, जिसमें सबको समान अधिकार और न्याय मिले। एक वर्ग विशेष की आवश्यकता को ध्यान में रखकर राष्ट्र के जनमानस के भाव , अधिकार और विश्वास का दमन नहीं करना चाहिए।


श्री राम जी ने प्रत्येक जाति, वर्ग और समुदाय को समान दृष्टि से देखा। उनकी सेना में वानर, भालू, मानव - सभी ने एक साथ मिलाकर कार्य किया । उन्होंने सदैव अधर्मी और आता ताई को पहले सावधान किया उस पर जब बात नहीं बनी तब दंडित भी किया । विविधता में एकता ही किसी राष्ट्र की सबसे बड़ी शक्ति होती है। समाज के प्रत्येक वर्ग को राष्ट्र निर्माण में समान अवसर मिलना चाहिए तथा समाज का अहित करने वाले को दंडित करना चाहिए।

 
श्री राम जी ने परिवार और समाज के मूल्यों की रक्षा के लिए व्यक्तिगत सुखों का परित्याग किया। उन्होंने समाज में उदाहरण प्रस्तुत किया कि शासन परिवार केन्द्रीय न होकर जन मानस के कल्याण के लिए होना चाहिए। एक राष्ट्र तभी सशक्त होता है, जब उसका राजा परिवार के मोह, स्वार्थ और भ्रष्टचार से ऊपर उठकर नैतिक मूल्यों और कर्तव्य बोध के साथ कार्य करे।
श्री हनुमान जी के सेवा भाव का जीवन चरित्र

श्री हनुमान जी का संपूर्ण जीवन निःस्वार्थ सेवा का प्रतीक है। उन्होंने राम काज के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। इसी तरह राष्ट्र निर्माण हमारा कर्तव्य है कि हम स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज और देश की सेवा के लिए जीवन समर्पित करना चाहिए।

श्री हनुमान जी ने अपने कार्यों से यह सिद्ध किया कि संगठित प्रयासों से कठिन से कठिन लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। इसी तरह किसी भी राष्ट्र के सर्वोत्तम विकास के लिए नागरिकों को मिलकर कार्य करना होगा। सहयोग और अनुशासन से ही राष्ट्र की , समाज और व्यक्ति की प्रगति संभव है।

श्री हनुमान जी के सभी कार्यों में आत्मबल और साहस की झलक मिलती है। राष्ट्र निर्माण के लिए प्रत्येक भारतीय को आत्मविश्वास और साहस के साथ कार्य करने की प्रेरणा लेनी चाहिए। श्री हनुमान जी के सेवा भाव में प्रभु भक्ति,माता अंजनी के प्रति अनन्य प्रेम और समर्पण दिखता है।वह एक ओर स्वामी भक्ति में लीन सौ योजन समुद्र को लाभ कर माता जानकी खोज करते हैं हिमालय पर्वत पर जाकर संजीवनी जड़ी-बूटी लेकर आते हैं वही दूसरी ओर माता अंजनी के वचन का पालन करते हुए निशस्त्र राम नाम की ढाल लेकर प्रभु के सम्मुख उनके अकाट्य वाणों को झेलने खड़े हो जाते हैं। तात्पर्य फ्री परिस्थितियों में अपने राष्ट्र और परिवार की बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हुए हमें कार्य करना है इसका उदाहरण हमें मारुति नंदन के चरित्र से मिलता है।

श्री राम और श्री हनुमान का संबंध आदर्श नेतृत्व और समर्पित सहयोग का उदाहरण है। राम जी ने अपने सहयोगियों पर अटल विश्वास रखा और हनुमान जी ने अपने साथियों के साथ मिलकर भक्ति और निष्ठा से हर असंभव कार्य को सफलतापूर्वक संपन्न किया।

राष्ट्र निर्माण के लिए नेतृत्व को अपने नागरिकों पर विश्वास रखना चाहिए। वहीं नागरिकों को भी राष्ट्रहित के लिए पूर्ण समर्पण के साथ अपने नेतृत्व को परखते हुए उसके कार्यों में सहयोग देना चाहिए।

आज के युग में हमें श्री राम जी से मर्यादा, न्याय और समावेशिता की शिक्षा मिलती है, वही श्री हनुमान जी से समर्पण, साहस और सेवा भाव की प्रेरणा मिलती है। यह शिक्षा नेतृत्व और जनमानस के मध्य एक आदर्श संबंधों को स्थापित करती है। एक राष्ट्र का संपूर्ण निर्माण तभी संभव है जब नेतृत्व निःस्वार्थ हो, नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक हों और समाज में समरसता हो ।
आज यदि हम श्री राम जी की आदर्श नेतृत्व शैली और श्री हनुमान जी की सेवा भावना को अपनाएँ तो हम एक सशक्त, न्यायप्रिय और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण में सहभागी हों सकते हैं।

"श्री राम का आदर्श और श्री हनुमान की भक्ति — यही राष्ट्र निर्माण की सच्ची प्रेरणा है।"