बच्चों का सुरक्षा घेरा है सनातन शाश्वत संस्कार

नौनिहालों को सिखाएं सनातन दिनचर्या

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    20-Mar-2025
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-प्रियंका कौशल


भारत ही नहीं अपितु विश्व में आज मानवता के समक्ष कई संकट गहरा रहे हैं। इनमें नित-नई आती बीमारियां, युवाओं में बढ़ता तनाव, गलत संगत, इंटरनेट पर फैली अश्लीलता इत्यादि इनमें मुख्य संकट हैं। समाज में बढ़ रही आत्महत्या व मतांतरण की प्रवत्ति भी इसी का परिणाम है। ऐसे में हमें हमारे बच्चों को एक सुदीर्घ सुरक्षा घेरे में रखना होगा। अब प्रश्न उठेगा कि ये कैसे होगा? उत्तर बहुत ही सरल है। हमें अपने बच्चों को शैशव काल से ही सनातन शाश्वत संस्कार डालने प्रारंभ करने होंगे। पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से जो क्रम टूट गया था, उसे पुनः शुरू करना होगा।


कोविड में पूरे विश्व ने देखा कि हिंदुओं के यहां परम्परा से चले आ रहे संस्कार और उनकी दैनंदिनी कैसे कोरोना को फैलने से रोकने में सहायक थी। सबने कहा कि किसी से अभिवादन के समय हाथ न मिलायें, बल्कि हाथ जोड़कर नमस्कार करना ही उचित है। जूते-चप्पल घर के बाहर उतारें, कहीं से आने पर ठीक ढंग से हाथ-मुंह धोएं अथवा स्नान कर लें। हमारे तो यह प्रतिदिन के जीवन में शामिल था। लेकिन पूरी दुनिया इसे चमत्कार के रूप में देख रही थी।


अब पुनः समय की मांग है कि हम अपने बच्चों, युवाओं, नौनिहालों को सनातन की मुख्य किंतु छोटी-छोटी आदतों से परिचित कराएं। उनकी दैनंदिनी में शामिल करवाएं। ये संस्कार श्रेष्ठ व्यक्ति का निर्माण करेंगे, राष्ट्रप्रेम से भी भावी पीढ़ी को ओतप्रोत करेंगे और स्वयं में भी वे हर परिस्थिति से निपटने के लिए सक्षम व समर्थ बनेंगे। उनका मनोबल बढ़ेगा व स्वस्थ जीवनशैली की परंपरा पुनः विकसित व स्थापित होगी।


अब हमें करना क्या है? छोटे छोटे प्रयास बड़ा परिणाम देंगे। हमें अपने व अपने बच्चों के जन्मदिन हिन्दू रीति से तिथि, नक्षत्र अनुसार मनाने होंगे। इस दिन मंदिर में जाएं, अनुष्ठान करें। घर में बना शुद्ध अन्न मिष्ठान ग्रहण करने की परम्परा विकसित करें। वरिष्ठों का आशीर्वाद लेने की आदत डालें। अपने कुलदेवता के बारे अपनी पीढ़ी को अवगत कराएं। पर्व-त्योहारों पर बड़ों का आशीर्वाद लें। उस तिथि से सम्बंधित कथा जानें। दीप जलाना सीखें। दीप बुझाना हमारी परम्परा नहीं है। संयुक्त परिवार में रहें। जब दो से तीन पीढियां एक साथ रहती हैं तो बच्चों के सुरक्षित भविष्य का निर्माण सुनिश्चित हो जाता है। अपने कुल की उत्तम बातें, पूर्वजों की उपलब्धि व अच्छी आदतें सीखते रहें। दूसरों को सहयोग देना, सबक सम्मान करना सिखाएं। जल प्रबंधन व सरंक्षण की शिक्षा दें। प्रकृति का महत्व समझाएं।


अपने बच्चों को वीर पुरुषों व वीरांगनाओं की कहानियां सुनाएं। उन्हें कभी डराये नहीं अपितु साहसी बनाएं। बच्चो को स्वाभिमानी बनाएं। घर के सभी कार्य करने की आदत डालें। अच्छी पुस्तकें पढ़ने की आदत डालें। जल्दी सोने का समय तय करें। ब्रह्म मुहूर्त में उठना सिखाएं। सिनेमा व टेलीविजन से उन्हें सतर्क करें। उन्हें अहसास करवाएं कि सिनेमा ही मनोरंजन का अंतिम साधन नहीं है। यज्ञ, आहुति व हवन का महत्व समझाएं। घर मे समय प्रति समय हवन करने का नियम बनाएं। सनातन संस्कृति में प्रतिदिन स्नान, ध्यान, पूजा, अर्चना, दान उत्तम माना गया है। ये संस्कार तो बच्चों में होना ही चाहिए।


बच्चो व युवाओं को सनातन संस्कार व परम्पराओं का वैज्ञानिक दृष्टिकोण समझाएं। उन्हें हर परम्परा के पीछे छुपी हुई वैज्ञानिक सीख से अवगत कराएं। रामायण, गीता इत्यादि धर्म ग्रन्थ नियमित पढ़ने की आदत विकसित करें। केवल पढ़ना नहीं है, मनन चिंतन करना भी सिखाएं। महापुरुषों की कहानियां सुनाएं व उनके पुरुषार्थ का वर्णन करें। उन्हें बताएं कि हमारे यहां नारी की पूजा होती है, देवताओं से पहले देवियों को स्मरण किया जाता है। बच्चों और युवाओं को भारत के गौरव का भान कराएं ताकि उनका आत्मविश्वास से भरा व्यक्तित्व तैयार हो।


यहां करने और कहने को बहुत कुछ है, लेकिन यदि हमने इतना भी कर लिया तो हमारा और हमारी पीढियों का भविष्य सुरक्षित, स्वस्थ व चिंतामुक्त हो जाएगा। हम अपने बच्चों को सुखी, स्वस्थ, सक्षम, समर्थ और वैज्ञानिक सनातन दैनंदिनी सौंपकर राष्ट्र व विश्व पर भी बड़ा उपकार करेंगे।