रमेश शर्मा -
अयोध्या में रामलला अपने जन्म स्थान में विराजमान हो गये हैं। मंदिर की पुनर्प्रतिष्ठा के बाद पूरे विश्व से श्रृद्धालु अयोध्या आ रहे हैं, पर अयोध्या की स्मृतियों में पांच सौ सालों के संघर्ष में हुये लाखों बलिदान हुये हैं। इतिहास के पन्नों कुछ ऐसे बलिदानों का प्रसंग भी है कि उन्हें केवल इसलिए जीवित जलाकर मौत के घाट उतार दिया था कि वे अयोध्या के कारसेवक थे। यह घटना 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा रेलवे-स्टेशन के पास घटी थी।
विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में पूर्णाहुति महायज्ञ का आयोजन किया गया था। यह फरवरी 2002 की बात है। इस महायज्ञ में भाग लेने के लिये देशभर से असंख्य कारसेवक अयोध्या पहुँचे थे। महायज्ञ के बाद कारसेवकों का अपने अपने स्थानों पर लौटना आरंभ हुआ। 25 फरवरी 2002 को कारसेवकों का बड़ा समूह अहमदाबाद जाने वाली साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में सवार हुआ। इस ट्रेन में कुल 1700 तीर्थयात्री थे और इनमें विभिन्न डब्बों में लगभग सौ कारसेवक थे जो कि अलग-अलग डब्बों में सवार थे। लेकिन ट्रेन एस-6 डब्बा ऐसा था जिसमें सभी कारसेवक थे और इस डब्बे का वातावरण पूरी तरह राममय था।
ट्रेन 27 फरवरी 2002 को प्रातः 7 बजकर 43 मिनट पर गोधरा स्टेशन पहुंची जहाँ कुछ यात्री उतरे कुछ आगे के लिये सवार हुये। सब कुछ आम दिनों की तरह सामान्य था, पर ट्रेन ने रवाना होकर स्टेशन पार किया ही था कि किसी ने चेन खींच दी। ट्रेन स्टेशन के बाहर सिग्नल के पास रुक गई। ट्रेन जहाँ रुकी वहाँ एक बड़ी भीड़ एकत्र थी और यह भीड़ डब्बा एस-6 पर टूट पड़ी, तुरंत ही भारी पथराव शुरु हो गया। यह भीड़ मुस्लिम समाज की थी और उनके पास पत्थर, लाठी और आग लगाने का पूरा सामान था। जिसमें घासलेट ही नहीं पैट्रौल भी था। पहले पथराव और फिर आग लगाना इस भीड़ की रणनीति थी। पथराव से खिड़कियाँ बंद करके सभी डब्बे में चले गये। तब पैट्रौल छिड़क कर आग लगाई गई। यदि किसी ने बचकर निकल भागने का प्रयास किया तो उसे पकड़कर जिन्दा जला दिया गया। इसमें मौके पर ही कुल 90 यात्री मारे गए जिनमें 59 कारसेवक थे। इन मरने वालों में 27 महिलाएँ और दस बच्चे थे साथही 48 अन्य यात्री गंभीर घायल हुये थे। कुछ घायलों की मौत बाद में हुई। इनकी संख्या अलग-अलग बताई गई। फिर भी कुल सौ से अधिक यात्रियों का बलिदान हुआ।
एक आश्चर्यजनक बात यह भी है कि ट्रेन को घेरने वाली भीड़ सैकड़ों लोगों की थी, मजहबी नारे भी लगाए गए। कुछ लोगों के पास फोटोग्राफ भी थे, पर एक जांच कमीशन ऐसा भी बैठा जिसने इस घटना को केवल दुर्घटना साबित करने की कोशिश की। बाद में इस जांच कमीशन को अवैधानिक घोषित किया गया। दिल्ली के एक उर्दू पत्रकार ने बाकायदा एक पुस्तक लिखी जिसमें इस घटना को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा प्रायोजित साबित करने की कोशिश की गई। इस पुस्तक के विमोचन में मध्यप्रदेश से संबंधित एक राजनेता भी उपस्थित थे और इस घटना की प्रतिक्रिया में गुजरात में सम्प्रदायिक झडपें भी हुईं।
ट्रेन पर हमला करने वाली भीड़ इतनी आक्रामक थी कि उसने पुलिस और फायर ब्रिगेड को पास न फटकने दिया। पुलिस बल पर पथराव हुआ, पुलिस बल कम कम था इसलिए पुलिस भीड़ को चीरकर बचाव के लिये ट्रेन तक न बढ़ सकी और यही स्थिति फायर ब्रिगेड की रही। इसलिए पीड़ितों की कोई सहायता न हो सकी, परिणाम स्वरुप एक पूरा डब्बा जल गया और कोई जीवित न बच सका।
हमले के षड्यंत्रकारियों में से एक को पश्चिम बंगाल से गिरफ्तार किया गया। उसने सत्य का खुलासा किया कि इसके लिये मुस्लिम कट्टरपंथी समूह हरकत-उल जेहाद-ए-इस्लामी जिम्मेदार है। जिसका कनेक्शन गोधरा के कुछ स्थानीय लोगों से था। यह कट्टरपंथी संस्था अयोध्या में अथवा अयोध्या से बाहर कारसेवकों को टारगेट करना चाहती थी। इस खुलासे के बाद 17 मार्च 2002 को मुख्य संदिग्ध हाजी बिलाल बंदी हुआ। वह गोधरा नगर पार्षद और कांग्रेस कार्यकर्ता था। इस गिरफ्तारी के बाद आतंकवादी विरोधी दस्ते ने जाँच आरंभ की और सभी संदिग्धों की तलाश भी। आरंभिक जांच में पाया गया कि उस दिन भीड़ में लगभग डेढ़ हजार लोग एकत्र थे। जो पूरी तैयारी से एकत्र हुये थे और उनकी योजना से ही चेन खींचकर ट्रेन को रोका गया था। इस भीड़ का नेतृत्व गोधरा नगर पालिकाध्यक्ष और कांग्रेस अल्पसंख्यक संयोजक मोहम्मद हुसैन कलोटा कर रहा था।
वह भी मार्च में गिरफ्तार हुआ साथ ही अन्य गिरफ्तार लोगों में पार्षद अब्दुल रज़ाक और अब्दुल जामेश भी शामिल थे। बिलाल ने लतीफ के साथ मिलकर यह षड्यंत्र रचा था। वह कई बार पाकिस्तान की यात्रा भी कर चुका था। इस घटना में कुल 78 लोगों को आगजनी और 65 लोगों पर पथराव करने के आरोप लगे, पर इनमें कुछ फरार हो गये। प्रारंभ में कुल 107 लोगों को आरोपी बनाया गया जिसमें आठ किशोर वय के भी थे। अदालत की सुनवाई के चलते पांच की मृत्यु हो गई। सुनवाई के दौरान कुल 253 गवाह प्रस्तुत हुये और 1500 अधिक साक्ष्य भी अदालत के सामने आये। इनमें कुछ फोटोग्राफ और अन्य सामग्री भी थी। घटना के लगभग तेरह वर्ष बाद 24 जुलाई 2015 को गोधरा मामले मुख्य आरोपी हुसैन सुलेमान मोहम्मद को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले से गिरफ्तार किया। 18 मई 2016 को एक अन्य आरोपी फारूक मुंबई से गिरफ्तार किया गया। 30 जनवरी 2018 याकूब पटालीया को पुलिस ने गोधरा से ही बंदी बनाया।
22 फरवरी 2011 को विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया, जबकि 63 अन्य को बरी किया। जिन 31 को दोषी माना उनमें 11 को फांसी, 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। बाद में इसकी अपील सुप्रीम कोर्ट हुई। कुछ सजाएँ उम्र कैद में बदलीं। ऐसे असंख्य बलिदानों की नींव पर आज अयोध्या में रामलला विराजमान हो सके हैं।