इंदौर: इंदौर जिला न्यायलय ने एक नाबालिग बच्चे के बलपूर्वक धर्म परिवर्तन और फर्जी प्रमाण तैयार करने के मामले में बड़ा निर्णय सुनाया है। अदालत ने बच्चे की मां, उसके प्रेमी और एक अन्य आरोपी को दोषी करार देते हुए 10-10 साल की कठोर कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई है।
जानिए क्या है मामला ?
राजस्थान के बाड़मेर जिले के निवासी अनाज व्यापारी ने खजराना थाने में दो साल पहले एक प्राथमिकी दर्ज कराई थी। व्यापारी का आरोप था कि उसकी पत्नी अपने प्रेमी के साथ मिलकर उनके नाबालिग बेटे का जबरन धर्म परिवर्तन करा रही है। साथ ही, बेटे को कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा की शिक्षा दी जा रही है।
पीड़ित पिता ने बताया कि 25 फरवरी 2018 को वह पत्नी और बेटे के साथ शाजापुर गया था। लौटते समय रतलाम के पास सालाखेड़ी में उसकी पत्नी और बेटा बस से अचानक लापता हो गए। इसके बाद पीड़ित ने रतलाम थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई और पांच साल तक उनकी तलाश की। 2023 में उसको सूचना मिली कि उसकी पत्नी खजराना क्षेत्र में इलियास अहमद नामक व्यक्ति के साथ है और उसका बेटा भी वहीं है। जब जांच की गई तो चौंकाने वाले खुलासे हुए।
जबरन खतना और फर्जी दस्तावेज तैयार किए.
जांच में पता चला कि इलियास अहमद ने नाबालिग बच्चे का जबरन खतना करवा दिया था और खुद को उसका पिता बताकर नाम और जन्म प्रमाण पत्र भी बदलवा लिए थे। यही नहीं, बच्चे को जबरदस्ती एक मदरसे में दाखिल करवा दिया गया था। इस पूरे षड्यंत्र में मोहम्मद जफर अली ने भी इलियास का साथ दिया, जिसने फर्जी दस्तावेज तैयार करवाने में मदद की।
न्यायालय का निर्णय.
प्रकरण की सुनवाई के दौरान नवम अपर सत्र न्यायाधीश जितेंद्र सिंह कुशवाह ने 18 फरवरी 2025 को आरोपियों को दोषी ठहराते हुए दंड की घोषणा की। न्यायालय ने महिला, उसके प्रेमी इलियास अहमद और सहयोगी मोहम्मद जफर अली को 10-10 साल की कठोर कारावास और अर्थदंड की सजा सुनाई है।
इस पूरे प्रकरण ने नाबालिग बच्चों के अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता की सुरक्षा पर गंभीर प्रशन खड़े किए हैं। न्यायालय के इस फैसले से यह स्पष्ट है कि बच्चों के अधिकारों का हनन और जबरन धर्म परिवर्तन जैसे मामलों में विधि द्वारा कठोर निर्णय लेना आवश्यक है।