श्री गुरु नानक देव जी प्रकाश उत्सव: मानवता, समानता और सत्य का आलोक

05 Nov 2025 12:55:47

guru nanak ji 
 
 
डॉ. भूपेन्द्र कुमार सुल्लेरे
 
गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा, संवत 1526 (नवंबर 1462 ई.) को तलवंडी नामक गाँव में हुआ, जो आज पाकिस्तान में ननकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध है। उनके पिता मेहता कालू चंद पटवारी थे। बचपन से ही उनमें अध्यात्म और सेवा की प्रवृत्ति गहरी थी। उन्होंने ब्राह्मण से लेखा-जोखा तथा मौलवी से फ़ारसी और अरबी का ज्ञान प्राप्त किया, परंतु सांसारिक कार्यों में मन न लगाकर मानवता के कल्याण की ओर उन्मुख हो गए।
विवाह के बाद वे अपनी बहन नानकी के घर सुल्तानपुर लोधी गए, जहाँ उन्होंने दौलतखान लोदी के मोदीखाने में भंडारी का कार्य किया। किंतु उनका रुझान सदैव “सत्य के व्यवसाय” की ओर रहा। मानवता की सेवा ही उनके लिए सच्चा धर्म था।
उनका जीवन तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता हैः
1. गृहस्थ जीवन और ज्ञानप्राप्ति (27 वर्ष)
2. देश-विदेश का भ्रमण (25 वर्ष)
3. करतारपुर में आध्यात्मिक साधना (18 वर्ष)
 
 
युग-परिवर्तन का काल
गुरु नानक देव जी का जीवनकाल विश्व-परिवर्तन के युग का साक्षी था। यूरोप में पुनर्जागरण आरंभ हो चुका था। कोलंबस ने अमेरिका की खोज की, वास्को डी गामा भारत पहुँचा और मार्टिन लूथर ने धार्मिक सुधारों की नींव रखी।
भारत में यह काल भक्ति आंदोलन के उत्कर्ष का था। उनके समकालीन संतों में वल्लभाचार्य, चैतन्य महाप्रभु, मीराबाई और गोस्वामी तुलसीदास जैसे महापुरुष हुए।
राजनीतिक दृष्टि से यह लोदी वंश का समय था। बाद में बाबर ने 1526 में मुगल साम्राज्य की स्थापना की, जिसके अत्याचारों को गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में गहराई से चित्रित किया।
 
 
अन्याय और अधर्म के विरोध में वाणी
गुरु नानक देव जी ने अपने युग के अंधकार, अत्याचार और भ्रष्टाचार को उद्घाटित करते हुए कहा कि
“कलि काती, राजे कासाई, धरमु पंखु करि उडरिआ।” अर्थात् राजा कसाई के समान निर्दयी हो गए हैं, धर्म उड़ चुका है और असत्य का अंधकार फैल गया है।
उन्होंने विदेशी शासकों के इस्लामीकरण और भारतीय संस्कृति पर उसके प्रभाव को भी स्पष्ट रूप से व्यक्त किया।
“देवल देवतिआ करु लागा, ऐसी कीरति चाली।” अर्थात् मंदिरों पर कर लगाए गए, पूजा-पद्धति का इस्लामीकरण होने लगा।
उनकी दृष्टि में उस युग का राजा न्याय नहीं करता था जब तक “उसकी मुट्ठी गर्म न की जाए” यह वाक्य तत्कालीन भ्रष्ट शासन का सजीव चित्रण है।
 
 
बाबर के अत्याचारों पर करुण पुकार
गुरु नानक देव जी ने बाबर के आक्रमणों में स्त्रियों और निर्दोषों पर हुए अत्याचारों को प्रत्यक्ष देखा। उन्होंने पुकार कर कहाः
“खुरासान खसमाना कीआ, हिंदुस्तानु डराइआ।” हे प्रभु! तूने खुरासान की रक्षा की, पर हिंदुस्तान को भय से भर दिया।
उन्होंने महिलाओं की दुर्दशा का हृदयविदारक चित्र प्रस्तुत किया और कहा
“जिन सिरि सोहनि परीआ, माँगी पाइ संधूरू, से सिरि काती मुनीअन्हि…” महलों में रहने वाली नारियाँ अब सड़कों पर भीख माँगने को विवश हैं।
 
 
धर्मांतरण और मुसलमानों में जाति व्यवस्था
गुरु नानक देव जी ने उस समय के धार्मिक पाखंडों और मुस्लिम आडंबरों, दोनों की कठोर आलोचना की। उन्होंने कहा
“हिन्दू-मुसलमान दोनों अपने धर्म से भटक चुके हैं, सत्य का मार्ग केवल सच्चे गुरु की शरण में है।”
भाई गुरुदास जी के अनुसार, उस समय “मस्जिदें मंदिरों की जगह पर बनीं, और पृथ्वी पाप से भर गई।”
बलदेव वंशी लिखते हैं “गुरु नानक देव जी ने भारत ही नहीं, मदीना, बगदाद, तुर्किस्तान और तिब्बत तक अपने निर्भय, एकेश्वरवादी और समतामूलक संदेश का प्रसार किया।”
महात्मा गांधी के अनुसार “गुरु नानक ने इस्लामिक आक्रमणों के युग में हिंदू आत्मा को पुनर्जागृत किया। उन्होंने संत कबीर से आध्यात्मिक सार लिया और उसमें संघर्षशील हिंदू तत्व जोड़ा। सिख धर्म इस्लाम के प्रतिकार और संवाद दोनों का परिणाम था।”
 
 
गुरु नानक देव की उदासियाँ (यात्राएँ)
गुरु नानक देव जी ने नाम, दान, स्नान, सेवा और भजन। इन पाँच सूत्रों को जीवन का आधार बताया। ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने भंडारी का पद त्यागकर मानवता की सेवा हेतु चार प्रमुख यात्राएँ कीं
1. पूर्वी भारत (1497-1509) – काशी, गया, पुरी आदि तीर्थों का भ्रमण।
2. दक्षिण भारत (1510 - 1515) – श्रीलंका तक की यात्रा।
3. हिमालय और तिब्बत (1515 - 1517) – योगियों और सिद्धों से संवाद।
4. पश्चिमी यात्रा (1517 - 1521) – मक्का, मदीना, बगदाद तक प्रचार।
उन्होंने जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, सोमनाथ, द्वारका, रामटेक, कांगड़ा और चंबा जैसे पवित्र स्थलों का भी दर्शन किया।
 
 
मानवता का सनातन संदेश
गुरु नानक देव जी की वाणी का सार थाः
“एक ओंकार सतनाम।” अर्थात् ईश्वर एक है, वह सत्यस्वरूप है।
उनका संदेश भक्ति और विवेक का संगम था। उन्होंने कहा कि “ना कोई हिन्दू, ना मुसलमान। सभी एक परमात्मा की संतान हैं।”
गुरु नानक देव जी का जीवन अंधकार में प्रकाश, अन्याय में प्रतिरोध और विभाजन में एकता का प्रतीक है। उन्होंने न केवल धर्म के नाम पर पाखंड और हिंसा का विरोध किया, बल्कि मानवता के भीतर ईश्वर की खोज का मार्ग भी दिखाया।
उनकी वाणी आज भी यह संदेश देती है “सत्य, नाम, करुणा और सेवा ही ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग है।”
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