डॉ. भूपेन्द्र कुमार सुल्लेरे
डॉ. अशोक सिंह द्वारा लिखित नागरिक कर्तव्य आज के भारत में अत्यंत महत्वपूर्ण और उपयोगी पुस्तक है। यह केवल अधिकारों की भाषा नहीं बोलती, बल्कि राष्ट्र-निर्माण में कर्तव्य की अनिवार्यता को केंद्र में रखती है। भारतीय समाज में लंबे समय से यह विचार रहा है कि नागरिक अपने अधिकारों के प्रति सचेत तो हैं, लेकिन कर्तव्यों के प्रति अपेक्षाकृत कम जागरूक हैं। लेखक इसी अंतर को दूर करने का प्रयास करते हैं।
यह पुस्तक संविधान के अनुच्छेद 51(क) से लेकर वर्तमान समय के जन-जीवन परिदृश्य तक उन सभी बिंदुओं को स्पर्श करती है जो एक जिम्मेदार नागरिक का निर्माण करते हैं।
कर्तव्य-चेतना का नवीनीकरण
पुस्तक का प्रस्ताव अत्यंत सारगर्भित है। लेखक इसमें बताते हैं कि
• राष्ट्र केवल संसाधनों से नहीं, बल्कि नागरिकों की जिम्मेदार भागीदारी से संचालित होता है।
• ‘कर्तव्य’ भारत की सांस्कृतिक आत्मा है। गीता का स्वधर्म, राम का लोकहित और उपनिषदों की सेवा-भावना इसी का आधार हैं।
• आधुनिक लोकतंत्र का भविष्य तभी सुरक्षित होगा जब नागरिक अधिकारों के साथ अपने दायित्वों को भी समझेंगे।
लेखक स्पष्ट करते हैं कि कर्तव्य-पालन ही सुशासन का आधार है, और यही पुस्तक का संदेश आरंभ से अंत तक बना रहता है।
नागरिकता की संवैधानिक व्याख्या
इस खंड में लेखक संविधान प्रदत्त 11 मूल कर्तव्यों का सरल भाषा में गहन विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं। यह अध्याय विद्यार्थियों, अभिभावकों और नीति-निर्माताओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी है।
संविधान ने नैतिकता को केवल एक नैतिक आग्रह के रूप में नहीं रखा, बल्कि राष्ट्र-निर्माण की मूल भावना माना है। पर्यावरण संरक्षण, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, राष्ट्रीय एकता, सांस्कृतिक विरासत संरक्षण और माता-पिता का सम्मान ये सभी भारतीय समाज की प्रतिष्ठित संस्थाएँ हैं।
कर्तव्य-चेतना से ही नागरिक मजबूत होते हैं और मजबूत नागरिक ही लोकतंत्र को सुदृढ़ करते हैं।
सामाजिक कर्तव्यनिष्ठा: परिवार से राष्ट्र तक
डॉ. सिंह समाजशास्त्रीय विश्लेषण के आधार पर बताते हैं कि
• एक जिम्मेदार नागरिक बनने की प्रक्रिया घर से शुरू होती है।
• परिवार, विद्यालय, समुदाय और समाज सभी में कर्तव्य-प्रशिक्षण आवश्यक है।
सामाजिक उत्तरदायित्व भारतीय संस्कृति का मूल सिद्धांत है-
• पड़ोसी सहायता
• सामूहिक दायित्व
• सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा
• महिलाओं व बुजुर्गों के प्रति सम्मान
यह अध्याय पाठक को सामाजिक जीवन के प्रति नए दृष्टिकोण से सोचने के लिए प्रेरित करता है।
राष्ट्र और नागरिक: भागीदारी का आधुनिक दृष्टिकोण
यह पुस्तक का सबसे प्रभावशाली खंड है। लेखक मानते हैं कि
• आज के दौर में नागरिक केवल मतदाता नहीं, बल्कि नीति-निर्माण के सहभागी हैं।
• डिजिटल युग में जनभागीदारी (ई-गवर्नेंस, फीडबैक सिस्टम, सोशल ऑडिट) राष्ट्र-निर्माण का केंद्रीय तत्व है।
• ‘राष्ट्र प्रथम’ की अवधारणा लेखक के अनुसार एक नैतिक सदाचार है।
वे यह भी कहते हैं कि नागरिकों का राष्ट्र-भाव केवल भावना नहीं, बल्कि क्रिया होना चाहिए जैसे समय पर कर-भुगतान, कानून-पालन, स्वतंत्रता की रक्षा और स्वदेशी परंपराओं का संरक्षण।
युवा एवं कर्तव्यनिष्ठा: भविष्य का निर्माण
यह खंड युवाओं के लिए प्रेरणादायक है। लेखक समझाते हैं-
• युवा केवल देश का भविष्य नहीं, वर्तमान का परिवर्तनकर्ता भी है।
• प्रौद्योगिकी, नवाचार और सामाजिक नेतृत्व के माध्यम से युवाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
• यदि युवा कर्तव्य-भाव से कार्य करें तो समाज में नैतिकता, अनुशासन और राष्ट्रीयता का स्वाभाविक विकास होता है।
यह अध्याय विशेष रूप से एनसीसी, एनएसएस, एबीवीपी, स्काउट एवं छात्र वर्ग को प्रेरित करता है।
समकालीन चुनौतियाँ और नागरिक दायित्व
यहां लेखक ने वर्तमान समय की प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डाला है।
• पर्यावरण संकट
• सामाजिक विघटन
• डिजिटल दुष्प्रचार
• विधि का पालन न करना
इन सभी चुनौतियों का समाधान लेखक नागरिक कर्तव्य-पालन में ढूंढते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘कर्तव्य-अनुशासन’ को लेखक 21वीं सदी के राष्ट्रीय चरित्र का प्रमुख आधार मानते हैं।
कर्तव्य से ही राष्ट्र का पुनर्निर्माण
समापन खंड अत्यंत प्रेरणादायक है। लेखक बताते हैं कि
• भारत केवल भौगोलिक भूमि नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक राष्ट्र है।
• इस राष्ट्र की शक्ति उसके नागरिकों में निहित है।
• यदि प्रत्येक नागरिक केवल दस प्रतिशत कर्तव्यनिष्ठा का भाव विकसित कर ले तो भारत विश्वगुरु बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ सकता है।
अंत में लेखक कर्तव्य को धर्म, नीति और राष्ट्र का संगम बताते हैं, जो पाठक के मन में नैतिक संकल्प उत्पन्न करता है।
अंतिम निष्कर्ष
नागरिक कर्तव्य केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि राष्ट्र-चेतना का व्यापक वर्णन है। डॉ. अशोक कुमार सिंह ने सरल, प्रभावशाली और राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से यह सिद्ध किया है कि "सशक्त नागरिक ही सशक्त राष्ट्र का निर्माण करते हैं।"
यह पुस्तक हर उस भारतीय के लिए पढ़ने योग्य है जो एक बेहतर समाज और जिम्मेदार नागरिक चरित्र के निर्माण का संकल्प रखता है। यदि आप राष्ट्र, समाज और संविधान पर गंभीर विचार रखते हैं, तो यह पुस्तक आपके अध्ययन में एक महत्वपूर्ण जोड़ साबित होगी।