डॉ. भूपेन्द्र कुमार सुल्लेरे
माननीय रामदत्त चक्रधर द्वारा लिखित ‘राष्ट्र निर्माण और युवा’ केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि भारतीय युवा शक्ति को जाग्रत करने वाला मार्गदर्शन-ग्रंथ है। संघ के मूलभूत सिद्धांत - स्वयंसेवा, संगठन, चरित्र-निर्माण, राष्ट्र-समर्पण और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को आधार बनाकर लेखक स्पष्ट करते हैं कि राष्ट्र निर्माण कोई सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि नागरिकों की सामूहिक तपस्या है। इस पुस्तक का केंद्र-बिंदु है “युवा केवल समाज का भविष्य नहीं, वर्तमान का भी निर्णायक कर्ता है।”
राष्ट्रनिर्माण का जीवंत आह्वान
प्रस्तावना में लेखक कहते हैं कि भारत की शक्ति उसका युवावर्ग है, और यह युवा शक्ति तभी उपयोगी बनती है जब उसमें लक्ष्य की स्पष्टता, चरित्र की दृढ़ता, सामाजिक उत्तरदायित्व और राष्ट्रीय दृष्टि हो। प्रस्तावना में संघ की यह मूलधारणा उभरकर आती है कि व्यक्ति निर्माण ही राष्ट्र निर्माण है, और युवा वह कालखंड है जहाँ व्यक्ति निर्माण की नींव मजबूत की जाती है। लेखक अपने संघ-निष्ठ अनुभव से बताते हैं कि राष्ट्र-चेतना जन्मजात नहीं होती, उसे संस्कारों के माध्यम से विकसित करना पड़ता है।
युवा – ऊर्जा, दिशा और दायित्व
लेखक बताते हैं कि युवा केवल शरीर की शक्ति नहीं, बल्कि चेतना और संकल्प की शक्ति है। वे युवाओं की तीन प्रमुख भूमिकाएँ बताते हैं:
• विचार वाहक – समाज में सकारात्मक, राष्ट्रहितकारी विचारों का प्रसार।
• परिवर्तन का माध्यम – सामाजिक विकृतियों, कुरीतियों और अन्याय के विरुद्ध सक्रिय भूमिका।
• नवाचार और प्रगतिशीलता का केंद्र – विज्ञान, तकनीक, कृषि, शिक्षा, अर्थव्यवस्था में नवाचार।
यहाँ संघ-दृष्टिकोण यह स्पष्ट करता है कि यदि युवा के पास दिशा न हो तो ऊर्जा विनाशकारी बन सकती है, और दिशा सही हो तो वही ऊर्जा राष्ट्र का भविष्य बदल सकती है।
संघ और युवा – एक अनूठा सहजीवन
इस अध्याय में चक्रधर जी बताते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी स्थापना से ही युवाओं को केंद्र में रखा है।
• शाखा में शारीरिक–मानसिक प्रशिक्षण
• अनुशासन, समयबद्धता और नेतृत्व का संस्कार
• व्यक्ति के भीतर देशभक्ति का मौन परंतु दृढ़ संकल्प
• समाज जीवन में सेवा की प्राथमिकता
लेखक कहते हैं कि संघ का उद्देश्य युवाओं को किसी पार्टी का कार्यकर्ता बनाना नहीं, बल्कि राष्ट्र का सजग, चरित्रवान नागरिक तैयार करना है। युवा को समाज के सबसे निचले स्तर तक जाकर सेवा करने की प्रेरणा यहीं से मिलती है।
राष्ट्र-निर्माण – व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र का समन्वय
लेखक स्पष्ट करते हैं कि राष्ट्र निर्माण का अर्थ केवल सीमाओं की सुरक्षा या आर्थिक विकास नहीं है। राष्ट्र निर्माण चार स्तंभों पर टिका हैः
• व्यक्ति का चरित्र
• परिवार की संस्कृति
• समाज की एकता और संगठन
• राष्ट्र की सुरक्षा एवं वैचारिक दृढ़ता
युवा की भूमिका इन चारों स्तरों पर निर्णायक है। वह परिवार की संस्कृति को जीवित रख सकता है, समाज को जोड़ सकता है, और राष्ट्र की चेतना को आगे बढ़ा सकता है।
सेवा और राष्ट्रीय चरित्र – युवाओं की अनिवार्य भूमिका
लेखक अनेक उदाहरणों के माध्यम से बताते हैं कि सेवा ही संघ का धर्म है। चाहे प्राकृतिक आपदा हो, महामारी, सामाजिक कठिनाई या गाँवों में बुनियादी समस्याएँ संघ का स्वयंसेवक सबसे पहले पहुँचता है। लेखक बताते हैं कि इसी सेवा-भाव में युवा में निःस्वार्थ राष्ट्र-प्रेम विकसित होता है।
इस अध्याय का सबसे महत्वपूर्ण संदेश यह है कि “चरित्रहीन ऊर्जा आतंक बनती है, चरित्रयुक्त ऊर्जा राष्ट्र का भविष्य बनती है।”
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद – युवा का बौद्धिक पुनर्जागरण
माननीय चक्रधर जी बताते हैं कि भारत का राष्ट्रवाद भौगोलिक नहीं, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक है। इसलिए युवाओं को अपनी इतिहास-चेतना, सांस्कृतिक गौरव, भाषा-परंपरा, धर्म और अध्यात्म से जुड़कर राष्ट्र को समझना होगा। युवा में सांस्कृतिक चेतना का जागरण उसे विश्व की प्रतिस्पर्धा में खोए बिना अपनी पहचान बनाए रखने में सहायता करता है।
चुनौतियाँ – वैश्विक दबाव, सांस्कृतिक संघर्ष और वैचारिक आक्रमण
इस अध्याय में लेखक समकालीन चुनौतियों का विश्लेषण करते हुए बताते है कि
• सोशल मीडिया आधारित भ्रम और वैचारिक प्रदूषण
• उपभोक्तावाद, नशाखोरी, दिशाहीन आधुनिकता
• परिवार-व्यवस्था का संकट
• वाम विचारधारा द्वारा राष्ट्र-विरोधी भ्रम
• धार्मिक कट्टरता और जिहादी विस्तार
• आर्थिक असमानता और बेरोजगारी
लेखक बताते हैं कि युवा को इन चुनौतियों के बीच संयम, विवेक और राष्ट्रीय दृष्टि रखनी होगी, तभी वह राष्ट्र निर्माण में योगदान दे सकेगा।
नेतृत्व – युवा के लिए संघ की प्रशिक्षण-पद्धति
संघ अपनी प्रशिक्षण-पद्धति के माध्यम से युवा में नेतृत्व विकसित करता है। लेखक बताते हैं कि संघ जीवन में बौद्धिक वर्ग, शारीरिक वर्ग, प्रशिक्षण वर्ग, शिविर, सेवा-प्रकल्प, सामाजिक संवाद के माध्यम से युवा नेतृत्व का निर्माण होता है।
लेखक के अनुसार नेतृत्व का मूल तत्व है “अपने लिए नहीं, समाज के लिए जीना।”
अंतिम अध्याय : अखंड, समर्थ और जाग्रत भारत का स्वप्न
पुस्तक के अंतिम भाग में चक्रधर जी उस भारत का स्वरूप प्रस्तुत करते हैं जिसमें
• युवा नैतिकता और आचरण से समाज का मार्गदर्शन करता है
• सेवा राष्ट्र-निर्माण का केंद्र बनती है
• तकनीक और आधुनिकीकरण भारतीय मूल्यों के साथ खड़े होते हैं
• समाज में समरसता, संगठन और एकात्मता विकसित होती है
• भारत विश्व के लिए धर्म, विवेक और मानव कल्याण का मार्गदर्शक बनता है
लेखक का अंतिम संदेश अत्यंत सारगर्भित है “युवा जागा तो राष्ट्र जागा। युवा बदला तो राष्ट्र बदला। युवा खड़ा हुआ तो भारत खड़ा हुआ।”
पुस्तक क्यों पढ़नी चाहिए?
यह पुस्तक उन सभी युवाओं के लिए है जो अपने जीवन का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत उन्नति नहीं, बल्कि राष्ट्रहित को भी मानते हैं।
पुस्तक पढ़ने से
• युवा समझता है कि राष्ट्र निर्माण उसकी नैतिक ज़िम्मेदारी है
• संघ की कार्यशैली, प्रशिक्षण और दृष्टिकोण का सुस्पष्ट परिचय मिलता है
• भारतीय संस्कृति पर आधारित राष्ट्रवाद की गहरी समझ विकसित होती है
• समाज-सेवा, अनुशासन और नेतृत्व के मूल्य जीवन का हिस्सा बनते हैं
• आधुनिक चुनौतियों में अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाए रखने का मार्ग मिलता है
यह पुस्तक एक विचार, एक रास्ता और एक संकल्प प्रदान करती है। रामदत्त चक्रधर का यह ग्रंथ युवाओं के लिए न केवल प्रेरणास्रोत है, बल्कि वर्तमान भारत के लिए एक नैतिक और वैचारिक दिशा-दर्शक भी है।