डॉ. भूपेन्द्र कुमार सुल्लेरे
भारत की सांस्कृतिक परंपरा में सूर्य की उपासना का विशेष स्थान है। सूर्य को साक्षात् जीवात्माओं का साक्षी, ऊर्जा का स्रोत और आरोग्य का दाता माना गया है। इसी श्रद्धा की अभिव्यक्ति है छठ पूजा, जिसे भारतवर्ष के विशेषतः उत्तर भारत के राज्यों—बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में अत्यंत भक्ति और शुचिता के साथ मनाया जाता है। यह पर्व केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि प्रकृति, विज्ञान और मनुष्य के स्वास्थ्य से गहराई से जुड़ा एक सनातन जीवन-विज्ञान है।
छठ पूजा का सनातन महत्व
छठ पूजा का मूल भाव सूर्य और प्रकृति की आराधना है। सनातन धर्म में सूर्य को ‘साक्षात देवता’ कहा गया है, जो नित्य दृश्य रूप में विश्व का पालन करते हैं। ऋग्वेद में कहा गया है—
> “सूर्यो विश्वस्य चक्षुः।”
अर्थात्, सूर्य सम्पूर्ण ब्रह्मांड की आँख हैं।
सूर्य की पूजा से न केवल आरोग्य, ऊर्जा और दीर्घायु की प्राप्ति होती है, बल्कि यह जीवन में सात्त्विकता और संतुलन को भी स्थिर करता है। छठ पर्व इस संतुलन का प्रतीक है, जिसमें मनुष्य, जल, अग्नि, वायु, आकाश और पृथ्वी—इन पंचमहाभूतों के प्रति आभार व्यक्त करता है।
अस्ताचलगामी और उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का रहस्य
छठ पूजा की सबसे विशिष्ट विशेषता है अस्त होते सूर्य और उगते सूर्य दोनों को अर्घ्य देना। यह परंपरा केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि गहन वैज्ञानिक और आध्यात्मिक अर्थ रखती है।
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देना —
जब सूर्य अस्त होने को होता है, तब दिनभर की तपन और ऊर्जा का संतुलन धीरे-धीरे कम होने लगता है। इस समय सूर्य की किरणों में अल्ट्रा-वायलेट (UV) और इन्फ्रारेड (IR) किरणों का अनुपात संतुलित होता है। ऐसे में सूर्य की किरणों को जल के माध्यम से देखना आँखों, त्वचा और शरीर के लिए लाभकारी माना गया है। यह सायं-अर्घ्य संयम, शांति और संतुलन का प्रतीक है।
उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य देना —
उगते हुए सूर्य के साथ दिन की नई ऊर्जा प्रारंभ होती है। उसकी किरणें विटामिन D और प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ाती हैं। इस समय सूर्य की रोशनी में सकारात्मक आयन अधिक होते हैं जो शरीर की कोशिकाओं को सक्रिय करते हैं। अतः यह अर्घ्य नवजीवन, आरोग्य और सकारात्मकता का प्रतीक है।
वैज्ञानिक दृष्टि से छठ पूजा
छठ व्रत के दौरान उपवास, सूर्य स्नान और जल में खड़े होकर ध्यान करने की परंपरा है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो यह एक डिटॉक्सिफिकेशन (शरीर-शुद्धि) प्रक्रिया है।
उपवास से शरीर में जमा विषैले तत्व बाहर निकलते हैं।
जल में खड़ा होना शरीर के रक्त प्रवाह और नर्वस सिस्टम को संतुलित करता है।
सूर्य की ऊर्जा ग्रहण करना मन-मस्तिष्क को स्थिर और ऊर्जावान बनाता है।
यह पर्व मनुष्य को प्रकृति के साथ जैविक सामंजस्य सिखाता है—कैसे सूरज, जल, वायु और मिट्टी के साथ तालमेल बनाकर जीवन को संतुलित रखा जाए।
छठ पूजा की पौराणिक कथा
छठ पर्व की उत्पत्ति से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं। इनमें से प्रमुख तीन कथाएँ उल्लेखनीय हैं
1. सीता माता की कथा :
त्रेतायुग में श्रीराम के अयोध्या लौटने के बाद माता सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्यदेव की उपासना की थी। उन्होंने अर्घ्य देकर पुत्र रत्न की कामना की थी, जिससे यह व्रत संतान-सौभाग्य का प्रतीक माना गया।
2. कर्ण की कथा :
महाभारत में वर्णन है कि सूर्यपुत्र कर्ण प्रतिदिन सूर्यदेव की उपासना करते थे। वे जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते और उनसे असीम शक्ति एवं दानशीलता प्राप्त करते थे। यह वही परंपरा आगे चलकर छठ पूजा के रूप में प्रचलित हुई।
3. मंत्रशक्ति की कथा :
एक अन्य कथा के अनुसार, छठ मइया (देवी ऊषा या सूर्य की पत्नी संज्ञा के रूप में) की उपासना करने से संतानहीन दंपत्ति को संतान प्राप्ति होती है। इसीलिए यह पर्व मातृत्व और नवजीवन का उत्सव भी माना गया है।
कब और कैसे मनाया जाता है
छठ पूजा कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से सप्तमी तक चार दिनों तक चलती है—
1. नहाय-खाय – शरीर और मन की शुद्धि।
2. खरना – पूर्ण उपवास और संकल्प।
3. संध्या अर्घ्य – अस्त होते सूर्य को जल अर्पण।
4. उषा अर्घ्य – उगते सूर्य को जल अर्पण और व्रत का पारायण।
इन चार दिनों में शुचिता, संयम और संकल्प का पालन किया जाता है, जो मनुष्य को आंतरिक रूप से अनुशासित बनाता है।
छठ मइया : मातृशक्ति और ऊर्जा की देवी
छठ मइया को सूर्य की उषा, ऊर्जा की अधिष्ठात्री और जननी शक्ति के रूप में पूजा जाता है। उनका आशीर्वाद संतान, स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख के रूप में मिलता है। वह प्रकृति की उसी मातृशक्ति का रूप हैं जो सूर्य की ऊष्मा के माध्यम से जीवन को पोषित करती है।
सूर्योपासना का सनातन विज्ञान
छठ पूजा केवल एक क्षेत्रीय या लोकपर्व नहीं, बल्कि यह सनातन जीवन के विज्ञान और संस्कृति का अद्भुत संगम है। इसमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञता, विज्ञान के प्रति श्रद्धा और आत्म-शुद्धि का गूढ़ संदेश निहित है।
सूर्य के माध्यम से मनुष्य जब अपने भीतर की प्रकाश-शक्ति को जाग्रत करता है, तभी वह सच्चे अर्थों में आरोग्यवान, संतुलित और आध्यात्मिक रूप से प्रकाशित होता है।
यही छठ का संदेश है—
> “सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च।”
(सूर्य समस्त जगत की आत्मा हैं।)