राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख : राष्ट्र, समाज और संस्कृति के पुनर्निर्माता

11 Oct 2025 14:38:28

nana ji desh mukh 
 
डॉ. भूपेन्द्र कुमार सुल्लेरे
  
नानाजी देशमुख का नाम भारतीय समाज जीवन में एक ऐसे युगपुरुष के रूप में लिया जाता है, जिन्होंने राजनीति को सेवा का माध्यम और समाज कार्य को राष्ट्र निर्माण का उपकरण बनाया। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की उस पीढ़ी के प्रतिनिधि थे, जिन्होंने स्वाधीन भारत में संगठन, समाज और शासन तीनों को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया। उनका जीवन ‘त्याग, तप और तपस्या’ का जीवंत उदाहरण था।
 
संघ से संस्कार : संगठन के माध्यम से राष्ट्रसेवा की नींव
नानाजी देशमुख का वास्तविक परिचय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता के रूप में ही प्रारंभ हुआ। 1925 में डॉ. हेडगेवार द्वारा स्थापित संगठन में वे 1928 में सम्मिलित हुए। प्रारंभ से ही उन्होंने ‘व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा’ से ऊपर ‘राष्ट्रीय आकांक्षा’ को स्थान दिया।
उन्होंने उत्तर प्रदेश और मध्य भारत में संघ कार्य का विस्तार किया तथा डॉ. हेडगेवार और गुरुजी गोलवलकर के सान्निध्य में संगठन के प्रचार-कार्य को नई दिशा दी। संघ के प्रचारक के रूप में उन्होंने युवाओं में आत्मानुशासन, राष्ट्रभक्ति और सामाजिक समरसता के भाव को गहराया।
 
राजनीति में राष्ट्रधर्म : दीनदयाल उपाध्याय के सहचर और एकात्म मानववाद के प्रवर्तक
नानाजी देशमुख, पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अत्यंत निकट सहयोगी रहे। भारतीय जनसंघ की स्थापना और उसके संगठनात्मक ढाँचे को मजबूत करने में नानाजी का निर्णायक योगदान रहा।
 
उन्होंने राजनीति को राष्ट्रसेवा का माध्यम माना, न कि सत्ता प्राप्ति का साधन। वे 1977 में जनता पार्टी सरकार के गठन में मुख्य रणनीतिकारों में से एक थे। किंतु सत्ता के शिखर पर पहुँचने के बाद भी उन्होंने राजनीति से सन्यास लेकर ‘ग्रामोदय’ की दिशा पकड़ी। यह उनके ‘लोकऋषि’ होने का प्रमाण है।
 
ग्रामोदय विश्वविद्यालय : गाँव से विश्व तक विकास का भारतीय मॉडल
चित्रकूट में नानाजी देशमुख ने ‘महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय’ की स्थापना की। यह विश्वविद्यालय शिक्षा, कौशल और आत्मनिर्भरता का भारतीय प्रयोग था जिसमें शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर ग्राम का निर्माण था।
ग्रामोदय विश्वविद्यालय भारत का पहला ऐसा विश्वविद्यालय बना, जिसने विकास को “ग्राम-केंद्रित” दृष्टिकोण से परिभाषित किया। यहाँ कृषि, जैविक खेती, पर्यावरण संरक्षण, ग्राम उद्योग, स्थानीय प्रशासन, लोकचिकित्सा, शिक्षा और संस्कृति सभी को समग्र रूप में जोड़ा गया।
 
दीनदयाल शोध संस्थान : एकात्म मानवदर्शन की प्रयोगशाला
नानाजी देशमुख ने “दीनदयाल शोध संस्थान” की स्थापना करके पंडित दीनदयाल उपाध्याय के ‘एकात्म मानवदर्शन’ को व्यवहार में उतारने का कार्य किया।
यह संस्थान केवल एक विचार मंच नहीं था, बल्कि ग्राम विकास की समग्र प्रयोगशाला था। चित्रकूट और आसपास के गाँवों में इस संस्थान के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य, जल-संरक्षण, कृषि और रोजगार के ऐसे प्रयोग हुए, जिनसे हजारों गाँव आत्मनिर्भर बने।
यहाँ उन्होंने “सेवा, स्वावलंबन और स्वाभिमान” के तीन सूत्रों को ग्राम जीवन के केंद्र में रखा।
 
भारत सरकार में योगदान : नीति, दिशा और दृष्टि
नानाजी देशमुख ने प्रत्यक्ष रूप से सत्ता का पद नहीं लिया, किंतु उनकी दृष्टि और योजनाओं ने भारत सरकार की कई नीतियों को दिशा दी। भारत सरकार ने उनके योगदान को स्वीकार करते हुए उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।
वे राष्ट्र के पहले गैर-राजनीतिक व्यक्ति थे, जिन्हें ग्रामीण विकास के क्षेत्र में इतने व्यापक कार्य के लिए सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिला। उन्होंने स्वराज्य को ‘ग्राम स्वराज’ के रूप में पुनर्परिभाषित किया। “जब गाँव आत्मनिर्भर होगा, तभी भारत सशक्त होगा।”
 
उनका विचार-दर्शन : भारतीय मॉडल ऑफ डेवलपमेंट
नानाजी देशमुख का विकास दृष्टिकोण पश्चिमी पूँजीवाद या साम्यवाद से भिन्न था। वे कहते थे “विकास केवल आंकड़ों की भाषा में नहीं, व्यक्ति और गाँव की आत्मा में दिखना चाहिए।”
उनकी दृष्टि थी कि शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका एक-दूसरे से जुड़े हों। वे ‘लोकल से ग्लोबल’ के विचार के पहले भारतीय व्याख्याकार थे। आज की ‘आत्मनिर्भर भारत’ की अवधारणा उनके ‘ग्रामोदय से राष्ट्रोदय’ के सूत्र की प्रतिध्वनि है।
 
अंतरराष्ट्रीय प्रभाव : भारतीय चिंतन का वैश्विक प्रतिमान
चित्रकूट मॉडल को विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और एशियाई विकास बैंक (ADB) ने भी अनुकरणीय माना। उनके कार्यों का अध्ययन कई देशों जापान, जर्मनी, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में ग्रामीण पुनरुत्थान की नीति में संदर्भ बिंदु के रूप में किया गया। नानाजी ने सिद्ध किया कि भारतीय ग्राम व्यवस्था में ही विश्व के सतत विकास के आदर्श निहित हैं।
 
लोकऋषि का जीवन : राष्ट्र के लिए प्रेरणा
नानाजी देशमुख का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा राष्ट्र निर्माण केवल सत्ता या नारे से नहीं, बल्कि समाज की आत्मा को जगाकर होता है। उन्होंने अपने जीवन से यह सिद्ध किया कि “ग्रामोदय ही राष्ट्रोदय है।” उनका जीवन हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो भारत को आत्मनिर्भर, सांस्कृतिक और मूल्यनिष्ठ राष्ट्र के रूप में देखना चाहता है।
उनके शब्दों में भारत का दर्शन यह है कि “यदि गाँव जगेगा, तो भारत उठेगा। और यदि भारत उठेगा, तो विश्व को दिशा देगा।”
नानाजी देशमुख आज भी एक विचार, एक आंदोलन और एक प्रेरणा के रूप में जीवित हैं राष्ट्र के ‘ऋषि’ के रूप में।
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