संगठन शिल्पी वन्दनीय मौसीजी

06 Jul 2024 17:01:44

vandneey mousi ji
 
 
डा पिंकेश लता रघुवंशी -
आर एस एस में महिलाएं...??
हम विश्व के सबसे बड़े महिला संगठन आर एस एस की ही कार्यकर्ता हैं। हम गर्व से कहते हैं हम राष्ट्र सेविका समिति की सेविका हैं। ये गर्व और गौरव हमें कैसे प्राप्त हुआ उसका मूल हैं हमारी प्रथम प्रधान संचालिका व समिति संस्थापक लक्ष्मीबाई केलकर उपाख्य मौसीजी।
 
स्वामी विवेकानंद सदैव कहते थे कि आने वाला समय भारतवर्ष का होगा और उसमें भारतीय स्त्रियों की भी बराबर सहभागिता रहेगी। स्वामी दयानंद सरस्वती जी के अनुसार “भारतवर्ष का धर्म उसके पुत्रों से नहीं, उसकी पुत्रियों के प्रताप से स्थिर है। भारतीय स्त्रियों ने अपना धर्म छोड़ा होता तो यह कभी का नष्ट हो गया होता।“ इस उक्ति को जीवंत सार्थक करती हैं स्त्री शक्ति चेतना निर्माण संगठन राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापक श्रीमती लक्ष्मीबाई केलकर (मौसीजी)। मौसीजी का जन्म 6 जुलाई 1905 को नागपुर में हुआ था।
 
राष्ट्र सेविका समिति अपने लक्ष्य राष्ट्र के पुनर्निर्माण और स्त्री राष्ट्र की आधारशिला है ध्येय-सूत्र के साथ वर्तमान में स्त्री सामर्थ्य चेतना निर्माण के लिए समर्पित है। यह भारतीय नारियों का एक ऐसा संगठन है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दर्शन के अनुरूप कार्य करता है। उल्लेखनीयय है कि यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कोई महिला शाखा अथवा अनुषांगिक संगठन नहीं है, अपितु एक ही विचार को लेकर कार्य करन वाला समानांतर समविचारी संगठन है। जिसकी स्थापना महाराष्ट्र के वर्धा जिले में 1936 को विजयादशमी के दिन हुई थी श्रीमती लक्ष्मीबाई केलकर इसकी आद्य प्रमुख संचालिका रहीं।
 
वं. मौसीजी के बचपन का नाम कमल था। बचपन घर के देशभक्तिपूर्ण वातावरण में गुजरा। आपकी माताजी जब लोकमान्य तिलक के समाचार पत्र ‘केसरी’ पढ़ती थीं, तो कमल भी गौर से उसे सुनतीं और तिलक के तेजस्वी विचारों से प्रभावित होतीं। नागपुर में कोई कन्या विद्यालय न होने के कारण उन्हें मिशन स्कूल में अध्ययन करना पड़ा। एक दिन विद्यालय के चर्च में प्रार्थना के समय कमल ने आंखें खुली रखीं तो अध्यापिका ने डांट लगाई इस पर कमल ने कहा, “मैडम! आपने भी तो आंखें खुली रखी होंगी, तभी तो आप मुझे देख सकीं।‘ ऐसा साहस था बालिका कमल में।
 
लक्ष्मीबाई केलकर ने रूढ़िग्रस्त समाज व विचारों का भी सदैव विरोध किया । मानवता की सेवा और सभी मनुष्य समान है, ये उनके दैनिक जीवन से हमें देखने को मिलता है, अपने घर में हरिजन नौकर रखे। महात्मा गांधी की प्रेरणा से उन्होंने घर में चरखा मंगाया। एक बार जब महात्मा गांधी ने एक सभा में दान करने का आग्रह किया, तो लक्ष्मीबाई ने अपनी सोने की चेन ही दान कर दी। 14 वर्ष की अल्पायु में उनका विवाह हुआ और मात्र 27 वर्ष की आयु में दुर्भाग्य से उन्हें वैधव्य प्राप्त हुआ। उस समय उनकी गोद में एक छोटी बेटी थी। अपने बच्ची की उचित शिक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध मौसीजी ने समाज की सभी बेटियों के लिए वर्धा में केसरीमल कन्या विद्यालय की शुरुआत की। आज भी यह विद्यालय बालिकाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराने में अग्रसर है। वर्तमान में इस विद्यालय के क्रीडा मैदान में वर्धा नगर की विजयदशमी उत्सव पर संचलन व प्रकटोत्सव आदि कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
 
राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत लक्ष्मी बाई केलकर ने 1936 में एक ऐसे महिला संगठन की नींव रखी, जो राष्ट्र निर्माण में नारी शक्ति जागरण का प्रतीक बन गया। राष्ट्र सेविका समिति स्त्री विमर्श में सनातन संस्कृति पर प्राचीन भारतीय परंपरा का समर्थन करती है। यहां स्त्री पुरुष के बीच कोई भेद, ऊंच-नीच या प्रतिस्पर्धा के स्थान पर परिपूरक माना जाता है। जिस प्रकार परिवार में पत्नि और पति एक-दूसरे के पूरक हैं, उसी तरह स्त्री-पुरुष समाज में एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों परस्पर सहयोग से समाज और राष्ट्र का निर्माण करते हैं। वर्तमान में राष्ट्र सेविका समिति के 86वें वर्ष में मौसीजी का संकल्प वृहद् स्तर पर मूर्त रूप ले रहा है और उनके विचारों का एक छोटा सा बीज विशालकाय वृक्ष बनकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रहा है।
 
25 अक्तूबर 1936 भारत में स्त्री विमर्श को दिशा देने के लिए नई प्रेरणा का दिन सिद्ध होने जा रहा था। प.पू. डॉ हेडगेवार जी के सतत् मार्गदर्शन व लक्ष्मी बाई केलकर के नेतृत्व में बड़ी संख्या में बहनों ने समिति के कार्यविस्तार हेतु अपने घरों से निकल समाज जागरण व मातृशक्ति संगठन के निमित्त जीवन दिये। यह भारत के इतिहास में मातृशक्ति जागरण व सशक्तिकरण की सबसे बड़ी घटना थी। मौसीजी ने महिलाओं को अनुशासित सेविका बनाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आरंभ कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार, पद्धति, उद्देश्य और कार्य के समान ही प्रथम स्त्री शाखा वर्धा में आरंभ की और वर्तमान में भारतवर्ष में राष्ट्र सेविका समिति की लगभग ६५०० शाखाएं संचालित हैं।
 
समिति का कार्य अपने ध्येय-सूत्र के साथ अल्प समय में ही प्रभावशाली उपलब्धियां अर्जित करने लगा। इसलिए 1939 से ही प्रशिक्षण शिविर आरम्भ कर दिया गये थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समान ही राष्ट्र सेविका समिति के भी प्रतिवर्ष मई-जून में सामान्यतः पंद्रह दिनों के प्रथम वर्ष (प्रवेश वर्ग), द्वितीय वर्ष (प्रबोध वर्ग)और तृतीय वर्ष (प्रवीण वर्ग)के प्रशिक्षण शिविर आयोकित किए जाते हैं। इन शिविरों में बौद्धिक, शारीरिक और आत्म-रक्षा का प्रशिक्षण दिया जाता है। यह शिविर नागपुर तथा अन्य स्थानों पर आयोजित किये जाते हैं।
 
अभी तक के गणना के अनुसार प्रतिवर्ष लगभग 10,000 से अधिक बहनें इन शिविरों में भाग लेती हैं। समिति का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन 1945 में हुआ। देश की स्वतन्त्रता एवं विभाजन से एक दिन पूर्व वं. मौसीजी कराची में थीं। उन्होंने सेविकाओं से हर परिस्थिति का मुकाबला करने और अपनी पवित्रता बनाये रखने का आह्वान किया। उन्होंने स्वयं नेतृत्व करते हुये अनेकों हिन्दू परिवारों के सुरक्षित भारत पहुंचने की व्यवस्था भी की। जिस प्रकार संघ का अपना गणवेश है, उसी प्रकार समिति का भी अपना एक गणवेश है। जैसे संघ में प्रचारक होते हैं, वैसे ही समिति में भी प्रचारिकाएं होती हैं। वर्तमान में पचास प्रचारिकाएं भारतवर्ष के विभिन्न भागों में मां भारती की सेवा कर रही हैं।
 
समिति में एक प्रावधान लघु अवधि की पूर्णकालिक कार्यकर्ता का भी है, जिन्हें विस्तारिका कहा जाता है। यह दो वर्ष की समयावधि के लिए होता है, जिसमे स्वयंसेविका अपना पूर्ण समय समिति के कार्य के लिए समर्पित करती हैं। लक्ष्मी बाई केलकर ने अपने व्याख्यान में अनेक अवसरों पर कहा है कि महिला, परिवार और राष्ट्र के लिए प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करती है। जब तक शक्ति को जागृत नहीं किया जाता, समाज प्रगति नहीं कर सकता।
 
27 नवम्बर, 1978 को स्त्री शक्ति जागरण की अग्रदूत एक श्रेष्ठ संगठन शिल्पी व़ं. लक्ष्मीबाई केलकर का स्वर्गवास हो गया। आज सशरीर भले ही मौसी जी हमारे मध्य नहीं हैं किंतु उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग आज भी प्रासंगिक व अनुकरणीय हैं। आरंभ में राष्ट्र सेविका समिति की केवल शाखाएं लगती थीं, किन्तु आज समिति द्वारा बहुमुखी कार्य किए जा रहे हैं। समिति के अनेक सेवा प्रकल्प हैं, जैसे-छात्रावास, चिकित्सालय, उद्योग-मन्दिर, भजन मंडल, पुरोहित वर्ग आदि।
 
राष्ट्र सेविका समिति का कार्य केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में विस्तार लिये हुये है। ब्रिटेन, अमरीका, मलेशिया, डर्बन, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया,कनाडा, संयुक्त अरब अमीरात में समिति की स्वयंसेविकाएं सक्रिय हैं। प्रत्येक स्त्री मां भगवती का रूप है। उसे अपनी शक्ति पहचानने की आवश्यकता है, उसके इन गुणों को विकसित करने के लिए उचित वातावरण की आवश्यकता है। राष्ट्र सेविका समिति अपनी शाखाओं में यह वातावरण देने का प्रयास करती है। जिससे समिति की शाखाएं ऐसी दृढ़निश्चयी सेविकाओं के निर्माण की कार्यशाला बन उभर रही है, जो कला, विज्ञान, चिकित्सा, सुरक्षा आदि सभी क्षेत्रों में अपना परचम लहरा रही हैं।
 
आज वं. लक्ष्मीबाई केलकर जी की जन्म जयंती पर असंख्य सेविकायें उन्हें अपने श्रृद्धा सुमन अर्पित करती हैं।
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