मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने रद्द की नेहा सिंह राठौर की याचिका.

सीधी पेशाब कांड के बाद संघ के निकर पर किया था आपत्तिजनक ट्वीट

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    08-Jun-2024
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neha singh rathore case
भोपाल. संविधान में दी गई अभिव्यक्ति की आजादी का उपयोग विवेकपूर्ण होना चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार एक पूर्ण अधिकार नहीं है, बल्कि उचित प्रतिबंधों के अधीन है। यह टिप्पणी करते हुए मध्यप्रदेश उच्च न्यायलय ने विवादित भोजपुरी लोक कलाकार नेहा राठोर पर मप्र में दर्ज प्रथिमिकी रद्द करने से मना कर दिया.
 
 
बता दें की यह मामला मध्यप्रदेश के सीधी में सामने आए पेशाब कांड के बाद एक आपत्तिजनक फोटो ट्वीट का है. मामले में मध्यप्रदेश के छतरपुर में जुलाई 2023 में नेहा पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए के अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज की गई थी. मामले में मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने नेहा के विरुद्ध पंजीबद्ध प्राथमिकी को रद्द करने की मांग वाली याचिका को न सिर्फ खारिज कर दिया बल्कि सोशल मीडिया पर उनके द्वारा डाले गए कंटेंट में संघ की निकर दिखाने पर भी सवाल उठाए। नेहा के वकील ने प्राथमिकी रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 153 ए के तहत इसमें ऐसा कोई अपराध नहीं बनता है। हालांकि, राज्य ने नेहा सिंह की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि उनके पोस्ट से तनाव बढ़ गया था।
 
 
न्यायमूर्ति गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने इस प्रकरण में की सुनवाई की। उन्होंने पूछा कि, नेहा सिंह द्वारा सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए कार्टून में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की खाकी निकर का उल्लेख करके एक "विशेष विचारधारा" की पोशाक क्यों जोड़ी, जबकि पीड़ित पर पेशाब करने के आरोपी व्यक्ति ने वह पोशाक नहीं पहनी थी। न्यायालय ने कहा "कलाकार को व्यंग्य के माध्यम से आलोचना करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, लेकिन कार्टून में किसी विशेष पोशाक को जोड़ना व्यंग्य नहीं कहा जा सकता है। आवेदक का प्रयास बिना किसी आधार के किसी विशेष विचारधारा के समूह को शामिल करना था। इसलिए, यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के दायरे में नहीं आता है। यहां तक कि व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति भी भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत प्रतिबंधित हो सकती है।"
 
 
कोर्ट ने कहा कि कार्टून में नेहा द्वारा विशेष पोशाक क्यों जोड़ी गई, इस सवाल का निर्णय प्रकरण में किया जाना है। न्यायालय के अनुसार "विशेष पोशाक जोड़ना इस बात का संकेत था कि आवेदक यह बताना चाहती थी कि अपराध एक विशेष विचारधारा से संबंधित व्यक्ति द्वारा किया गया था। इस प्रकार, यह सद्भाव को बाधित करने और शत्रुता, घृणा या दुर्भावना की भावनाओं को भड़काने का प्रयास करने का स्पष्ट मामला था।"
 
 
न्यायालय ने कहा कि "मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता पर विचार करते हुए, यह अदालत इस बात पर विचार करती है कि हस्तक्षेप करने के लिए कोई मामला नहीं बनता है।" । इस प्रकार हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही यह निश्चित हो गया है की अब नेहा को इस मामले में क़ानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा.