जयंती विशेष - करतार सिंह सराभा

भगत सिंह सहित कई क्रांतिकारियों के प्रेरणास्रोत.

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    24-May-2024
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kartar singh sarabha
 
रमेश शर्मा.
अमर बलिदानी करतार सिंह सराबा को भगतसिंह अपना अग्रज, गुरु, साथी और प्रेरणास्रोत मानते थे। वे भगतसिंह से 11 वर्ष बड़े थे। सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी करतार सिंह सराबा का जन्म 1896 ई. में लुधियाना जिले के सराबा गाँव में हुआ था। इनके पिता श्री मंगल सिंह का देहान्त जल्दी ही हो गया था। प्रारम्भिक शिक्षा खालसा स्कूल लुधियाना में हुई थी, चाचा जी की अनुमति से 14 वर्ष की आयु में पढ़ाई के लिए सान फ्रान्सिस्को चले गये।
 
 
उन दिनों वहाँ भारतीयों में देशप्रेम की आग सुलग रही थी। करतार सिंह भी उनमें शामिल हो गये। यह वह समय था जब गोरे लोग भारतीयों से घृणा करते हैं और उन्हें कुली समझते हैं। करतार सिंह का मत था कि इसे बदलने का एकमात्र मार्ग यही है कि भारत स्वतन्त्र हो। शीघ्र ही उनका सम्पर्क लाला हरदयाल से हो गया। फिर तो वे ही करतार के मार्गदर्शक बन गये। ‘गदर पार्टी’ की स्थापना के बाद करतार उसके प्रमुख कार्यकर्ता बने। पोर्टलैण्ड में हुए उसके सम्मेलन में भी वे शामिल हुए। करतार के प्रयास से वहाँ ‘युगान्तर आश्रम’ की स्थापना हुई और पार्टी का साप्ताहिक मुखपत्र ‘गदर’ कई भाषाओं में छपने लगा। उन्होंने घर से पढ़ाई के लिए मिले 200 पौंड भी लाला जी को समाचार पत्र के लिए दे दिये। इस पत्र में 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम की कुछ प्रेरक सामग्री अवश्य होती थी।
 
 
प्रथम विश्व युद्ध छिड़ने पर वे भारत आये। उनका विचार था कि यह अंग्रेजों को बाहर निकालने का सर्वश्रेष्ठ समय है। उन्होंने रासबिहारी बोस तथा शचीन्द्रनाथ सान्याल जैसे क्रान्तिकारियों से भी भेंट की। 21 फरवरी, 1915 को पूरे देश में एक साथ क्रान्ति की योजना बनी। करतार सिंह पर पंजाब की जिम्मेदारी थी। उन्होंने कई धार्मिक स्थानों की यात्रा कर युवकों तथा सेना से सम्पर्क किया। रेल तथा डाक व्यवस्था को भंग करने की योजना बन गयी। इन सबका केन्द्र लाहौर था। वहाँ छावनी में शस्त्रागार के चौकीदार से भी बात हो गयी। धन और शस्त्र के लिए कई डाके भी डाले गये।
 
 
तभी कृपाल सिंह नामक एक पुलिस वाले ने मुखबिरी की और धरपकड़ होने लगी। करतार अपने कुछ साथियों के साथ भारत की उत्तर पश्चिम सीमा की ओर चले गये; पर उन्हें सरगोधा के पास पकड़ लिया गया और लाहौर के केन्द्रीय कारागार में बन्द कर दिया। इनके साथ 60 अन्य लोगों पर पहला लाहौर षड्यन्त्र केस चलाया गया। करतार ने अपने साथियों को बचाने के लिए सारी जिम्मेदारी स्वयं पर ले ली। न्यायाधीश ने इन्हें अपना बयान बदलने को कहा; पर इस बार करतार ने और कठोर बयान दियाअतः उन्हें फाँसी की सजा सुना दी गयी। एक बार उन्होंने जेल से भागने का भी प्रयास किया; पर वह योजना विफल हो गयी ।
 
 
16 नवम्बर, 1915 को करतार सिंह सराबा और उनके छह साथियों ने लाहौर केन्द्रीय जेल में फाँसी का फन्दा चूम लिया। इनके नाम थे - विष्णु गणेश पिंगले, हरनाम सिंह, बख्शीश सिंह, जगतसिंह, सुरेन सिंह एवं सुरेन्द्र सिंह।