मातृभाषा मंच के दो दिवसीय कार्यक्रम का शुभारंभ.

मातृभाषा मंच के सम्मेलन में 13 भारतीय भाषाई समाजों के व्यंजनों का लें आनंद.

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    12-May-2024
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भोपाल। राजधानी के विभिन्न भाषाई समाजों की भागीदारी से प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी मातृभाषा मंच का दो दिवसीय कार्यक्रम का शुभारंभ शनिवार को सुभाष मैदान शक्ति नगर में हुआ। कार्यक्रम में 13 अलग-अलग समाजों के बालक और बालिकाओं ने रंगारंग प्रस्तुतियां दी। वहीं, आकर्षण का केंद्र छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा प्रचलित ‘होन’ मुद्रा और विभिन्न भाषाई समाजों के व्यंजन रहे। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मध्यभारत प्रांत के प्रांत संघचालक अशोक पाण्डेय, मुख्य वक्ता डॉ. चाहवीर सिंह बिंद्रा और मातृभाषा संगठन के अध्यक्ष संतोष सिंह रावत उपस्थित रहे।
 
 
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कार्यक्रम में 13 भाषाई समाज के लोगों द्वारा विभिन्न देशज व्यंजनों के स्टॉल लगाए। कार्यक्रम में आए लोगों ने व्यंजनों का स्वाद लेने के साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद भी लिया। बाल कलाकारों ने लोक नृत्यों की रंगारंग प्रस्तुतियां दी, जिनमें गुजराती, बंगाली, छत्तीसगढ़ी, ओडिसी, महाराष्ट्रीयन, मलयाली और तमिल सहित 13 भाषाई समाजों के नृत्य शामिल रहे।
 
 
छत्रपति शिवाजी महाराज की मुद्रा ‘होन’ से खरीदारी :
हिन्दवी स्वराज्य के 350वें वर्ष में छत्रपति शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व, स्वराज्य की अवधारणा, स्वदेशी नीति आदि से समाज को परिचित कराने के उद्देश्य से उनके काल में प्रचलित ‘होन’ मुद्रा का उपयोग कार्यक्रम में किया गया। कार्यक्रम प्रांगण में वस्तुओं का क्रय के लिए होन मुद्रा का आदान-प्रदान किया गया। प्रांगण में एक स्टॉल लगाया गया है, जिसमें भारतीय मुद्राएं देकर होन मुद्राएं ले सकते हैं।
 
 
मुगलकाल में शिवाजी ही ऐसे शासक जिन्होंने स्वयं की मुद्राएं चलाई :
मुगलकाल में जब पूरे देश में हिन्दू साम्राज्य सिमट रहा था। ऐसे में छत्रपति महाराज शिवाजी ने सन 1674 ई. में अपने राज्य रोहण पर रायगढ़ किले की टकसाल से भारतीय मुद्राओं को जारी किया था। उन्होंने सोने एवं तांबा धातुओं के अपने स्वतंत्र सिक्के जारी किए थे। स्वर्णमुद्रा को ‘होन’ कहा जाता था और ताम्र मुद्रा को ‘शिवराई’। इस मुद्रा के अगले भाग में ‘छत्रपति’ अभिलेख अंकित है और पीछे ‘श्रीराजा शिव’ अभिलेख अंकित होता था। इन सिक्कों की एक विशेषता यह भी थी कि इन पर नागरी लिपि में मुद्रा अभिलेख अंकित किए गए हैं। शिवाजी महाराज की स्वराज्य अवधारणा का उनके द्वारा प्रचलित मुद्राएं जीवंत प्रमाण है। महाराज का व्यक्तित्व आज भी हमें प्रेरणा दे रहा है।
 
 
सरकारों ने मातृभाषा पर नहीं दिया ध्यान :
मुख्य अतिथि रूप में पधारे डॉ. बिंद्रा ने बताया कि जब देश स्वतंत्र हुआ तब तत्कालीन नेतृत्व ने अंग्रेजी भाषा को अधिक महत्व दिया। यदि उस समय ही मातृभाषा के महत्व को स्थापित किया जाता तो बहुत अच्छा रहता। उन्होंने कहा कि सरकारों की अनदेखी का ही परिणाम है कि आज न्यायालय में भी अंग्रेजी का ज्यादा प्रयोग किया जा रहा है। दलीलें भी अंग्रेजी में ही पेश करी जा रही हैं, जिससे याचिकाकर्ता को कुछ समझ ही नहीं आता और वकील और न्यायाधीश के बीच में ही फैसला हो जाता है। उन्होंने कहा कि अब भारत स्व की ओर लौट रहा है। राम मंदिर इसका जीवंत उदाहरण है। समाज में एक उत्साह का वातावरण निर्मित हुआ है। ऐसे में हमें अपनी मातृभाषाओं को आगे बढ़ाने के उपाय करने चाहिए।
 
 
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भारतीय संस्कृति पर आधारित प्रदर्शनी का उद्घाटन :
भारतीय संस्कृति पर आधारित प्रदर्शनी में लगे चित्र दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। प्रदर्शनी में ऋषि-मुनियों और हमारे तत्वों के चित्र लगाए गए है, जिसका उद्घाटन प्रांत संघचालक अशोक पाण्डेय, डॉ. चाहवीर सिंह बिंद्रा और मातृभाषा संगठन के अध्यक्ष संतोष सिंह रावत ने छत्रपति शिवाजी महाराज के चित्र पर पुष्प अर्चन कर किया।