12 मार्च 1993 मुम्बई सीरियल ब्लास्ट की दर्दनाक यादें

भविष्य की सुरक्षा के लिये षडयंत्रो से सीख लेना आवश्यक

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    12-Mar-2024
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mumbai blast
 
रमेश शर्मा.
भारतीय इतिहास में दर्द, शोषण और नर संहार की जितनी घटनायें दर्ज हैं उतनी दुनियाँ के किसी भी देश के इतिहास में नहीं । आठवीं शताब्दी से आरंभ हुआ यह आतंक स्वतंत्रता के बाद भी न थम सका। लगभग दो सौ साल की अवधि में भारत से टूटकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान, वर्मा श्रीलंका आदि छै देश बनें फिर भी भारत को शाँति न मिली। शायद ही कोई दिन ऐसा हो जिस दिन भारत में कोई आतंकी घटना न घटी हो  आतंकवादी, नक्सल वादी, उग्रवादी, अलगाव वादी, माओवादी आदि न जाने कितने संगठन भारत में हिंसा और आतंक फैला रहे हैं और इन सबका उद्देश्य भारत में भारत्व को समाप्त करना है। इनके पीछे कौन से तत्व सक्रिय हैं यह भी किसी से छिपा नहीं है किंतु विचारणीय यह है कि इतने विभाजनों के बाद भी क्या शेष भारत का जीवन निर्भय हो गया ? आतंक की इस लंबी श्रृंखला में एक स्मृति है 12 मार्च 1993 की। इस दिन मुम्बई में सीरियल ब्लास्ट हुये थे।
 
 
वह शुक्रवार का दिन था, उस दिन एक के बाद एक कुल 12 ब्लास्ट हुये थे। इन में कुल 257 लोगों की जान गयी और 713 लोग घायल हुए। यह सभी ब्लास्ट कुल एक सौ तीस मिनट के भीतर हुए थे। इन बारह धमाकों से पूरी दुनियाँ सकते में थी। भारत तो भय और शोक में डुब गया था। इन धमाकों की कठोर स्मृतियाँ आज भी उन स्मृतियों मे सजीव हैं जिन्होंने अपनी आँखो से वह विध्वंस देखा, तड़पते हुये लोग, बिखरे हुये क्षत शिक्षित शरीर अंगों को बिखरे हुये देखा था। उस दिन पहला ब्लास्ट दोपहर लगभग डेढ़ बजे स्टॉक एक्सचेंज इमारत के बेसमेंट में हुआ था। यह बिल्डिंग आठ मंजिला थी। बेसमेन्ट में धमाका करने का मतलब पूरी बिल्डिंग को धराशायी कर देना था ताकि जान और माल दोनों को नुकसान पहुंचे ।
 
 
 
इस पहले ब्लास्ट में पचास लोग मारे गए। इस धमाके का समाचार ठीक से फैला भी न था, प्रशासन संभल भी न पाया था कि इसके ठीक आधा घंटे बाद दूसरा धमाका हुआ। यह नरसी नाथ स्ट्रीट पर एक कार में ब्लास्ट हुआ इसके बाद तो धमाकों का सिलसिला चल ही पड़। लगभग दो घंटे के काल-खंड में कुल बारह धमाके हो गये, जिन क्षेत्रों में ये ब्लास्ट हुये उनमें शिव सेना भवन, एयर इंडिया भवन, रॉक होटल, प्लाजा सिनेमाघर, जुहू सेंटूर होटल, हवाई अड्डा और एयर इंडिया का कार्यालय था। यह दुनियां भर में हुये अब तक धमाकों में सबसे अलग और सबसे बड़ा धमाका था जिसमें मृतकों और घायलों के अतिरिक्त कुल एक सौ सत्ताइस करोड़ की संपत्ति को नुकसान पहुँचा। इसमें लगभग तीस करोड़ की संपत्ति तो वह थी जो सीधे सीधे ब्लास्ट में नष्ट हुई। शेष वह संपत्ति थी जो इनके पुनर्निर्माण या इन धमाकों से परोक्ष रूप से क्षतिग्रस्त हुई थी।
 
 
बाद की जाँच में लगभग पाँच सौ लोगों के नाम सामने आये, इनमें से लगभग दो सौ लोग लिप्त पाये गये। जिन लोगों को धमाकों में लिप्त पाया गया उनमें एक परिवार के तो चार लोग याकूब मेमन, यूसुफ मेमन, ईसा मेमन और रुबिना मेमन शामिल थे। याकूब मेमन को 30 जुलाई 2015 को महाराष्ट्र के यरवडा जेल में फांसी दी गई। इन धमाकों के मास्टरमाइंड दाऊद इब्राहिम को आज तक गिरफ्तार नहीं किया जा सका। माना जाता है कि वह पाकिस्तान में रह रहा है, उसके पाकिस्तान में होने के सुबूत भी यदा कदा सामने आते रहें हैं। भारत सरकार भी लिखा पढ़ी करती रही पर पाकिस्तान की सरकार ने कभी स्वीकार नहीं किया। यह भारतीय समाज की उदारता और भारतीय संविधान की विशेषता है कि दाऊद इब्राहीम के परिजन आज भी भारत में रह रहें हैं, उनके भी विभिन्न आपराधिक गतिविधियों जुड़े रहने की खबरें आतीं रहीं हैं। यह चर्चा भी समय समय पर आई कि ये परिजन समय समय पर दाउद इब्राहिम से मिलने पाकिस्तान जाते रहे हैं पर न तो इस बात का अधिकृत रूप से समर्थन हुआ और न खंडन।
 
 
 
समय के साथ इस काँड की जाँच आरंभ हुई और 4 नवम्बर 1993 को 189 लोगों के विरुद्ध चार्जशीट दर्ज की गई जो लगभग दस हजार पृष्ठों की थी। अप्रैल 1995 को मुम्बई की टाडा अदालत में सुनवाई आरंभ हुई आरोपियों के विरुद्ध आरोप तय होने में दो माह लगे। घटना के लगभग तेरह साल बाद सितम्बर 2006 में फैसला आया। अदालत ने कुल 90 आरोपियों को दोषी पाया, इनमें 12 को निचली अदालत ने मौत की सजा, 20 को उम्रकैद और 68 लोगों को अलग-अलग अवधि की सजा सुनाई गई जबकि अन्य को साक्ष्य के अभाव में छोड़ दिया। इन सीलियल ब्लास्ट का एक और प्रमुख आरोपी अबू सलेम को उसकी प्रेमिका मोनिका बेदी के साथ 18 सितंबर 2002 को इंटरपोल ने लिस्बन, पुर्तगाल में गिरफ्तार किया। फरवरी 2004 को उसे भारत लाया गया। सलेम की भूमिका के लिए मार्च 2006 को विशेष टाडा अदालत ने उसके और उसके सहयोगी रियाज सिद्दीकी के खिलाफ आठ आरोप दायर किए थे। अबू सलेम को उच्च सुरक्षा के बीच मुंबई की आर्थर रोड जेल में रखा गया। विशेष टाडा अदालत ने 16 जून 2017 को अबू सलेम, मुस्तफा दोसा, फिरोज अब्दुल राशिद खान, ताहिर मर्चेंट और करीमुल्ला खान को धमाकों के षडयंत्र का दोषी माना वहीं अब्दुल कय्यूम को सबूत के अभाव में बरी कर दिया।
 
 
 
ऐसा माना जाता है कि दिसंबर 1992 में विवादित बाबरी ढांचे विध्वंस से नाराजी के चलते सीरियल ब्लास्ट के इस षडयंत्र को रचा गया। इसको लेकर मुंबई में बड़े पैमाने पर दंगे भी हुये थे, इसके बाद दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेनन, मोहम्मद दोसा और मुस्तफा दोसा ने मुंबई में इस सीरियल ब्लास्ट का षडयंत्र रचा। आज इस दुर्दांत आतंकी घटना को उन्तीस वर्ष बीत गये हैं। मुम्बई अपनी रफ्तार से आगे दौड़ रही है पर देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के दिल पर लगे घाव अमिट हैं जो पूरे देश और समाज को भविष्य की सावधानियां का संदेश दे रहे हैं।