साधना और स्वाध्याय है भारत की मूल अवधारणा: केतकर

भारत की अवधारणा को वैचारिक चुनौतियां विषय पर व्याख्यान आयोजित

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    20-Feb-2024
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prafull ketkar
 
ग्वालियर। भारत की मूल अवधारणा साधना और स्वाध्याय है। इसी वजह से कई आक्रमणों के बाद भी भारत स्वयं को बचाए हुए है। भारत को लंबे समय से भौगोलिक दृष्टि से ही नहीं वैचारिक रूप से भी खंडित करने का प्रयास किया जा रहा है। हमें वैचारिक प्रदूषण से बचना होगा।
 
यह बात राष्ट्रीय स्तर की साप्ताहिक पत्रिका ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने सोमवार को आईआईटीटीएम सभागार में आयोजित व्याख्यान में मुख्य वक्ता की आसंदी से कही। प्रज्ञा प्रवाह मध्य भारत प्रांत एवं भारतीय पर्यटन और यात्रा प्रबंधन संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित व्याख्यान का विषय भारत की अवधारणा को वैचारिक चुनौतियां था। कार्यक्रम की अध्यक्षता रतन ज्योति नेत्रालय के संचालक डॉ.पुरेंद्र भसीन ने की। इस अवसर पर प्रज्ञा प्रवाह के प्रांत संयोजक धीरेंद्र चतुर्वेदी, सह प्रांत संयोजक लाजपत आहूजा एवं भारतीय पर्यटन और यात्रा प्रबंधन संस्थान के निदेशक आलोक शर्मा भी मंचासीन रहे। मुख्य वक्ता श्री केतकर ने कहा कि विश्व में सभ्यताओं का संघर्ष, सहकारिता या सहयोग जो भी रहा, वह अवधारणा का रहा।
इसलिए भारत के हर शिक्षा संस्थान में वल्र्ड मैप होना चाहिए। जिसमें यह दर्शाना चाहिए कि विश्व में कौन, कब, कहां से आक्रमण के लिए निकला।
 
उन्होंने बताया कि वास्कोडिगामा ने स्वयं लिखा है कि वह पोप के आदेश पर क्रिश्चियन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए निकला था। उन्होंने कहा कि भारत में कहा जाता है जो जीता वही सिकंदर, जबकि सिकंदर भारत से हारकर गया था। ऐसे ही कई भ्रम भारत में फैलाए गए हैं। श्री केतकर ने कहा कि भारत को इंडिया कहा जाने लगा है। जबकि इससे पहले भी हमारे पुराणों में भारतवर्ष का उल्लेख है। भारत की संकल्पना भू सांस्कृतिक है, भौगोलिक नहीं। भारत का मतलब है ज्ञान में रत रहने वाला समाज। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ.भसीन ने कहा कि भारत वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास करता है। हमें अपने स्व के तंत्र को विकसित करना चाहिए। इससे पहले प्रज्ञा प्रवाह का परिचय मदन भार्गव ने एवं कार्यक्रम की प्रस्तावना लाजपत आहूजा ने रखी। डॉ.चंद्रशेखर बरुआ ने आईआईटीटीएम की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। अतिथियों का परिचय डॉ.नीति पांडे ने दिया। अतिथियों का स्वागत डॉ.राजेन्द्र वैद्य, डॉ. सुनील पाठक, रंजीत कौर, धर्मेन्द्र चतुर्वेदी ने किया। कार्यक्रम का संचालन कुसुम भदौरिया ने एवं आभार डॉ.कल्पना शर्मा ने व्यक्त किया।
 
विविधता में रही एकता
 
श्री केतकर ने भगवान शंकर का उदाहरण देते हुए कहा कि भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर रहते थे। उन्हें पाने के लिए माता पार्वती ने कन्याकुमारी में कठोर साधना की। उनके बड़े पुत्र गणेश जी उत्तर में और छोटे मुरुगन (कार्तिकेय) दक्षिण में रहते थे। देश में विविधता के बाद भी एकता रही है, लेकिन आज हमें भाषा, प्रांत और जातियों को लेकर लड़ाने की कोशिश की जा रही है। इससे हमें बचने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज अपने मत पर रहते हुए भी अन्य मतों से तालमेल करने के अभ्यस्त रहे हैं। यही विविधता है। हमारे पूर्वजों ने उत्सव प्रिय समाज बनाया है। उन्होंने कहा कि भारत में इस्लाम से पहले आस्था पर मारकाट नहीं थी। उन्होंने कहा कि अयोध्या में राममंदिर निर्माण का संघर्ष इस बात को लेकर था कि देश को बाबर के रास्ते पर चलना है या श्रीराम के बताए मार्ग पर। उन्होंने कहा कि हमारा तंत्र हमारी अवधारणा के आधार पर होना चाहिए। आपकी नैतिकता की बात भी तभी प्रभावी होगी जब आप शक्तिशाली होंगे। इसलिए हमें अपने स्व को लाना है।
 
भारतीय मुस्लिम और हिंदुओं का डीएनए एक
 
श्री केतकर ने कहा कि भारतीय मुसलमानों और हिंदुओं का डीएनए एक होने से दोनों में उत्सव धर्मिता है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम धर्म में मजार की पूजा और फकीरों को मानने की मनाही है, लेकिन भारत में अरब देशों के विपरीत यहां इसे तवज्जो दी गई। 

pragya prawah
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