कैलेण्डरों का इतिहास.

31 Dec 2024 15:27:22

celendor
 
 
रमेश शर्मा - 
 
 
 
एक जनवरी से नया साल आरंभ हो रहा है और इसके साथ ही पूरी दुनियाँ वर्ष 2025 में प्रवेश करेगी। समय नापने की यह पद्धति ग्रेगोरियन कैलेण्डर कहलाती है। यह ग्रेगोरियन कैलेण्डर 2024 वर्ष पुराना नहीं है बल्कि यह केवल 443 वर्ष पुराना है और भारत में इसे लागू हुये केवल 272 वर्ष ही हुये हैं।
 
दुनियाँ में काल गणना का इतिहास बहुत उतार-चढ़ाव से भरा है। दुनिया के विभिन्न देशों में सात हजार वर्ष में बीस से अधिक कैलेण्डरों का इतिहास उपलब्ध है। जिस ग्रेगेरियन कैलेण्डर के अनुसार आज की दुनियाँ चल रही है, यह 1582 ईस्वी सन् में आरंभ हुआ था और भारत में अंग्रेजों ने इसे 1753 में लागू किया था। आरंभ में इसका उपयोग केवल यूरोपीय-ब्रिटिश समुदाय ही करता था। भारतीय जन जीवन में कहीं विक्रम संवत और कहीं हिजरी सन् प्रचलित था। जब अंग्रेजों ने इस कैलेण्डर को भारतीय शासन व्यवस्था का अंग बनाया तब से समाज जीवन में घुलने लगा और अब पूरे भारत की जीवनचर्या इसी कैलेण्डर से निर्धारित होती है।
 
आज भारत की आधुनिक पीढ़ी भले अपना अतीत भूल गयी हो पर यह गर्व की बात है कि यूरोप को काल गणना से परिचित कराने वाले भारतीय शोधकर्ता ही रहे हैं। यूरोप के प्राचीन इतिहास में वर्णन मिलता है कि दो सौ नावों से आर्यों का एक दल यूरोप गया था जिसने रोम की स्थापना की थी वे अपने साथ समय की गणना पद्धति लेकर गये थे। दूसरा विवरण सुप्रसिद्ध यूनानी सम्राट सिकन्दर के समय का है। सिकन्दर आक्रमणकारी के रूप में भारत आया था और जब लौटा तो वह भारत से विभिन्न विषय के विद्वानों का दल साथ ले गया था। उनमें पंचांग पद्धति विशेषज्ञ भी थे। इन विशेषज्ञों ने यूरोप जाकर यूरोपीय काल गणना पद्धति में संशोधन किये और जूलियन कैलेण्डर आरंभ किया। इसमें पोप ग्रेगरी अष्टम ने 1582 में कुछ संशोधन किये और वर्तमान कैलेण्डर का यह स्वरूप सामने आया। इसलिए पोप अष्टम के नाम से इसका नाम "ग्रेगोरियन कैलेण्डर" हुआ।
 
पोप ग्रेगरी अष्टम ने डेढ़ हजार वर्ष पूर्व ईसा मसीह की अनुमानित जन्मतिथि की गणना करके 1582 वर्ष पूर्व की तिथि 1 जनवरी से लागू किया गया था। ईसा मसीह की अनुमानित जन्मतिथि से लागू करने के कारण इसे "ईस्वी सन्" और लागू करने वाले पोप ग्रेगरी के नाम पर कैलेण्डर का नाम गेग्रेरियन दिया गया। इस कैलेण्डर को वैश्विक बनाने का श्रेय अंग्रेजों को है। अंग्रेज जिस देश में व्यापार करने गये अथवा शासक बने, उन्होने वहां अपनी परंपराएँ लागू कीं और यह ग्रेगेरियन ईस्वी सन् कैलेण्डर पद्धति भी। अंग्रेज अपनी जड़ों और परंपराओं से इतने गहरे जुड़े रहे कि उन्होंने पूरी दुनियाँ को अपने ही परिवेश में ढाला। पता नहीं अंग्रेजों के पास क्या जादू था कि दुनिया से उनके शासन का अंत भले हो गया हो पर उनके द्वारा शासित रहे अधिकांश देश आज भी अंग्रेजी परंपराएँ और उनके इस ग्रेगोरियन कैलेंडर से ही अपनी सरकार और समाज चलाते हैं। कुछ देशों में भीतर अपनी निजी काल गणना पद्धति प्रचलित तो है, पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरी दुनियाँ अंग्रेजी महीनों और तिथियों के अनुसार ही संचालित होती है ।
 
संसार में कैलेण्डर लागू होने की तिथियाँ -
 
ग्रेगोरियन कैलेण्डर उपयोग किये गये महीनों और दिनों के नाम भी अंग्रेजों के अपने नहीं हैं। वे दुनियाँ की विभिन्न भाषाओं से लेकर रूपान्तरित किये गये है। इसमें सबसे पहले इसका नाम "कैलेण्डर" ही देखें, कैलेण्डर शब्द अंग्रेजी भाषा का नहीं है अपितु लैटिन भाषा का है। लैटिन भाषा में "कैलेण्ड" शब्द का अर्थ हिसाब किताब होता है। वहीँ चीन में "केलैण्ड" का अर्थ चिल्लाना होता है और वहाँ ढोल बजाकर तिथि/दिन और समय की सूचना दी जाती थी। इस तरह कैलेण्ड शब्द से इस पद्धति का नाम कैलेण्डर पड़ा। इसे संसार में अलग-अलग देशों में अलग अलग तिथियों में लागू किया गया। यह ग्रेगोरियन कैलेंडर इटली, फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल ने सन् 1582 ईस्वी में, परशिया, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, हॉलैंड और फ़्लैंडर्स ने 1583 ईस्वी में, पोलैंड ने 1586 ईस्वी में, हंगरी ने 1587 ईस्वी में, जर्मनी, नीदरलैंड, डेनमार्क ने 1700 ईस्वी में, ब्रिटेन और उनके द्वारा शासित लगभग सभी देशों में 1752 ईस्वी, जापान ने 1972 ईस्वी, चीन ने 1912 ईस्वी, बुल्गारिया ने 1915 ईस्वी, तुर्की और सोवियत रूस ने 1917 ईस्वी, युगोस्लाविया और रोमानिया ने 1919 ईस्वी में लागू हुआ।
 
 
संसार के ज्ञात इतिहास में जितने भी सन् संवत् या न्यू ईयर परंपराएँ मिलतीं हैं उनमें सबसे प्राचीन काल गणना पद्धति भारत में है। भारत की सबसे पुरानी पुरानी काल गणना पद्धति को "युगाब्ध संवत् " कहा जाता है जो लगभग 5127 वर्ष पुराना है। इसका संबंध महाभारत काल से है क्योंकि यह संवत् युधिष्ठिर के राज्याभिषेक तिथि से आरंभ हुआ था। इसका सत्यापन द्वारिका के किनारे समुद्र की पुरातत्व खुदाई में मिली विभिन्न सामग्री से होता है। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने इस उपलब्घ सामग्री के समय लगभग पाँच हजार से पाँच हजार दो सौ वर्ष के बीच का माना है। संवत् आरंभ होने का दूसरा प्राचीन उल्लेख बेबीलोनिया से मिलता है। इस संवत् का इतिहास लगभग चार हजार वर्ष पुराना है। तब वहां नववर्ष का आरंभ बसंत ऋतु से होता था और यह तिथि लगभग एक मार्च के आसपास ठहरती है।
 
ग्रेगोरियन कैलेण्डर लागू होने से पहले समूचे यूरोप में यही कैलेण्डर लागू था। इसलिये आज भी मार्च का महीना हिसाब-किताब का वर्षांत माना जाता है। जिन अंग्रेजों ने एक जनवरी से नववर्ष का आरंभ माना वे भी अपना हिसाब किताब मार्च माह से ही करते थे। तीसरा प्राचीन नववर्ष पारसी नौरोज है और इसका आरंभ लगभग तीन हजार वर्ष पहले हुआ था। पारसी नौरोज 19 अगस्त से आरंभ होता है। चौथा प्राचीन संवत् भारत का विक्रम संवत है जो महाराज विक्रमादित्य के राज्याभिषेक से आरंभ हुआ था, इसे भी प्रारंभ हुए 2081 वर्ष बीत चुके हैं। विक्रम संवत् के अतिरिक्त भारत में शक संवत् और वीर निर्वाण संवत् की भी मान्यता रही है। शक संवत् का संबंध भारत को शक आक्रमण से मुक्ति की स्मृति में आरंभ हुआ था तो वीर निर्वाण संवत् का संबंध भगवान महावीर स्वामी की निर्वाण तिथि से है। इसका आरंभ 7 अक्टूबर 528 ईसा पूर्व माना जाता है ।
 
यूरोप में कैलेण्डर की शुरुआत -
 
यूरोपियन कैलेण्डर का आरंभ रोम से हुआ था, क्योंकि इसे आरंभ करने वाले रोमन सम्राट जूलियन सीजर थे। इसलिये उसका पुराना जूलियन कैलेण्डर था। उन्होने वहां पूर्व से प्रचलित कैलेण्डर में कुछ परिवर्तन किये, जो उनसे पूर्व राजा न्यूमा पोपेलियस ने आरंभ किया था। तब इसमें केवल दस माह और 354 दिन ही हुआ करते थे। कहते हैं शोधकर्ता तो बारह मास का ही कैलेण्डर तैयार करना चाहते थे पर राजा बारह माह का कैलेण्डर बनाने तैयार न हुआ था। राजा की जिद के चलते बारह के बजाय दस माह का कैलेण्डर तैयार हुआ था। बाद में जूलियट सीजर ने उस कैलेण्डर में परिवर्तन करने के आदेश दिये और तब यह कैलेण्डर बारह महीने का तैयार हुआ। अब कुछ विद्वानों का मत है कि इसमें ईसा मसीह की जन्मतिथि में चार वर्ष का अंतर आ गया है।
इसमें समय के साथ अनेक परिवर्तन हुये और जब यह कैलेण्डर आरंभ हुआ था तब इसमें लीप एयर या हर चौथे साल फरवरी 29 दिन का प्रावधान नहीं था। यह प्रावधान खगोल अनुसंधान के बाद अमेरिकी वैज्ञानिकों ने सूर्य और पृथ्वी परिक्रमा की गणना करके जोड़ा। जबकि भारत में पाँच हजार वर्ष पुरानी गणना भी बारह माह की थी, जो ऋतु परिवर्तन का अध्ययन करके निर्धारित किया गया था। भारत में इसे कैलेण्डर नहीं अपितु "पंचांग" कहा जाता है। शब्द "पंचांग" भी गहन अर्थ लिए हुए है, पंचांग अर्थात पाँच अंग। भारतीय पंचांग में कुल पाँच आधार होते हैं। ये तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण हैं । इन पाँच अंगों से ही भारतीय पंचांग में तिथि दिन की गणना होती है जबकि वर्ष और माह की जानकारी इन पाँच अंगों से अलग होती है। जबकि ग्रेगोरियन कैलेण्डर में केवल दो जानकारी होती है, दिन \तारीख और माह/वर्ष। इस प्रकार पाँच हजार वर्ष पुरानी भारतीय कालगणना पद्धति "पंचांग" पश्चिम की आधुनिक कैलेण्डर पद्धति से अपेक्षाकृत अधिक उन्नत रही है।
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