मध्यप्रदेश स्थापना दिवस

01 Nov 2024 15:41:46

Mp sthapna diwas
 
 
 
रमेश शर्मा - 
 
 
68 वर्ष पूर्व वर्तमान मध्यप्रदेश की यात्रा एक अविकसित और बीमारू प्रदेश से आरंभ हुई थी। अब वही बीमारू प्रदेश अपनी समस्याओं उभरकर प्रगति का इतिहास रच रहा है। यह प्रदेश और प्रदेश वासियों की संकल्प शक्ति ही है कि अनेक उतार-चढ़ाव के बाद भी मध्यप्रदेश की गणना अब भारत के विकसित राज्यों में होने लगी है।
 
 
मध्यप्रदेश की धरती संसार के प्राचीनतम भूभागों में से एक है। ऐसा कोई युग नहीं जिसमें इस भूभाग का उल्लेख न हो। अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य और संपदा ने हर युग के मानव को इस ओर आकर्षित किया है। मध्यप्रदेश के लगभग हर क्षेत्र में आदि मानव की सक्रियता के प्रमाण मिलते हैं। इसमें प्रवाहित नर्मदा, चंबल, बेतवा जैसी सदानीरा नदियाँ तब भी थीं जब हिमालय पर्वत और गंगा नदी धरती पर नहीं थे। अरावली, विन्ध्याचल और सतपुड़ा के मध्य की इस धरती का अस्तित्व सृष्टि के आरंभिक काल में ही उभर आया था। संसार के प्राचीनतम जीव डायनासोर के जीवाश्म भी मध्यप्रदेश के मंडला जिले में मिले हैं। मंडला से लेकर ग्वालियर तक और रीवा से लेकर मंदसौर तक वैदिककालीन ऋषियों की तपोस्थली होने के चिन्ह मिलते हैं।
 
 
नारायण के छठे अवतार भगवान परशुराम जी का अवतार मध्यप्रदेश के जानापाव में हुआ था। जानापाव इंदौर जिले की महू तहसील के अंतर्गत है। लंका पति रावण की राजमहीषि मंदोदरी मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की थीं। रामजी भी अपने वनवासकाल में मध्यप्रदेश आये थे तो योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण का विद्या अध्ययन हेतु उज्जैन स्थित संदीपनी आश्रम आये थे। सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत् वाकणकर जी ने मध्यप्रदेश में आदिम युग सहित रामायण काल और महाभारत काल के प्रमाण खोजे हैं। ये उज्जैन के वाकणकर शोध संस्थान में सुरक्षित हैं। संसार की पहली वैज्ञानिक गणना "विक्रम संवत" का आरंभ भी मध्यप्रदेश के उज्जैन से हुआ था। विक्रम संवत पंचाग केवल तिथि और दिन बताने का कैलेण्डर भर नहीं है। इसमें अंतरिक्ष में स्थित ग्रहों की गणना भी समाई है जिससे कब सूर्यग्रहण होगा, कब चन्द्र ग्रहण होगा यह गणना भी हो सकती है। पौराणिक काल के बाद नंदवंश, मौर्यकाल, शुंग काल गुप्त काल के भी प्रतीक चिन्ह मध्यप्रदेश की धरती पर मिलते हैं।
 
 
प्रकृति ने भी इस भूभाग अपने संपूर्ण वैभव से परिपूर्ण किया है। पन्ना में हीरे की खदाने, सतपुड़ा के घने जंगल और सागौन वृक्षों, बैतूल की कोल खदानों, बासोदा का साधारण पत्थर, चूने में चूना पत्थर, नर्मदा पट्टी की तुअर दाल, विदिशा सीहोर जिले के शरवती गेहूँ की प्रसिद्धि विश्व भर में है। लेकिन समय की गति से मध्यप्रदेश का यह वैभव धूल धूसरित हो गया। मध्यप्रदेश पर दोनों ओर से आक्रमण हुये, गुजरात के सुल्तानों के भी और दिल्ली सल्तनत से भी। मेहमूद गजवनी से औरंगजेब तक प्रत्येक हमला झेला है इस धरती ने। सल्तनतकाल का पतन हुआ तो अंग्रेजीकाल प्रभावी हुआ और अंग्रेजीकाल में भी शोषण की कोई सीमा न थी। सल्तनतकाल की लूट और अंग्रेजीकाल के शोषण से यह उन्नत प्रदेश एक बीमारू राज्य में बदल गया।
 
 
मध्यप्रदेश में स्वतंत्रता संग्राम
 
मध्यप्रदेश ने अपने स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा का संघर्ष प्रत्येक युग में किया है। अलाउद्दीन खिलजी का ग्वालियर और बुन्देलखण्ड पर हमला, लोदी सल्तनतकाल का ग्वालियर पर हमला, बाबर, अकबर और औरंगजेब का चंदेरी पर हमला, गुजरात के शेरशाह और बहादुरशाह का रायसेन पर हमला इतिहास प्रसिद्ध है। गौंडवाना की रानी दुर्गावती और बुन्देलखण्ड के राजा छत्रसाल की वीरता और इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा मानविन्दुओं का जीर्णोद्धार करके चलाया गया देश भर चलाया साँस्कृतिक पुनर्जागरण अभियान भी इतिहास प्रसिद्ध है।
 
 
अंग्रेजों से मुक्ति के संघर्ष में भी मध्यप्रदेश ने बढ़ चढ़ कर योगदान दिया। मध्यप्रदेश के वनवासी क्षेत्रों यह संघर्ष 1822 के आसपास आरंभ हो गया था। नागपुर के शासक भोंसले को मध्यप्रदेश के वनवासियों ने ही संरक्षण दिया था। छिंदवाड़ा, बालाघाट से लेकर पचमढ़ी तक हुये इस संघर्ष का विवरण इतिहास के पन्नों में है। 1924 में नरसिंहगढ़ के कुँअर चैन सिंह का सशस्त्र संघर्ष और सीहोर में उनका बलिदान हुआ तो वहीँ मालवा के वनवासी क्षेत्र में भी 1840 से संघर्ष का विवरण मिलता है। मध्यप्रदेश का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहाँ 1857 की क्राँति की ज्वाला विकराल न बनी हो। महू इन्दौर, सीहोर बैरसिया, राहतगढ़, सागर, जबलपुर, ग्वालियर, नीमच आदि सभी स्थानों पर बलिदान हुये। नाना साहब पेशवा और तात्या टोपे की सर्वाधिक सक्रियता इसी क्षेत्र में रही। मध्यप्रदेश में 1857 की क्रांति का दमन करने केलिये अंग्रेजों ने कितनी शक्ति लगाई थी इसकी झलक अंग्रेज अधिकारियों के पत्र व्यवहार से मिलती है। यह पत्राचार भोपाल स्थित स्वराज संस्थान संचालनालय की "मध्यभारत में विद्रोह" नामक पुस्तक में दिया है।
 
 
1884 में वनवासी संघर्ष कर्ता टंट्या भील का बलिदान हुआ और इसके बाद आरंभ हुये क्राँतिकारी और अहिसंक दोनों प्रकार के आँदोलन में मध्यप्रदेश की सक्रिय भूमिका रही है। क्राँतिकारी आँदोलन के लिये गठित अनुशीलन समिति का केन्द्र ग्वालियर रहा। क्राँतिकारी दास गुप्ता बाबू ने ग्वालियर आकर क्रांतिकारी दल गठित किया जो बाद में मध्यप्रदेश के अन्य भागों में भी फैला। जनकगंज के एक मकान में बम और हथियार बनाने का गुप्त कार्य होता था। क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल की बहन शास्त्री देवी कपड़ों में हथियार छिपाकर ग्वालियर से ही शाहजहांपुर ले गईं थीं, वहीँ काॅकोरी काँड में प्रयुक्त हथियार ग्वालियर में बने थे। सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी चंद्रशेखर, भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, भगवानदास माहौर, भाई परमानंद, गेंदालाल दीक्षित आदि की गतिविधियों का केन्द्र भी मध्यप्रदेश का मध्यभारत क्षेत्र रहा है।
 
 
स्वाधीनता के लिये अहिसंक आँदोलन के लिये मध्यप्रदेश का जबलपुर एक बड़ा केन्द्र बना। 1921 के असहयोग आँदोलन के साथ ही पूरे मध्यप्रदेश में प्रभात फेरियों, स्वदेशी खादी और चरखा अभियान चला वह फिर कभी थमा नहीं। जिस त्रिपुरी अधिवेशन में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये थे। वह त्रिपुरी मध्यप्रदेश में जबलपुर के समीप ही है। 1942 के भारत छोड़ो आँदोलन में सिवनी, छिदवाड़ा, जबलपुर सहित अनेक स्थानों पर गोलियाँ चलीं थीं। 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ों आँदोलन इस आँदोलन में बंदी बनाये जाने वालों में सबसे कम आयु के श्री अटल बिहारी बाजपेई थे।
 
  
मध्यप्रदेश का वर्तमान स्वरूप
 
अंग्रेजीकाल में भारत के अन्य भागों की तरह मध्यप्रदेश की शासन व्यवस्था दो प्रकार की थी। एक वे जो अंग्रेजों के सीधे आधीन थे और दूसरे वे जहाँ रियासतें थीं। मध्यप्रदेश का महाकौशल क्षेत्र अंग्रेजों के सीधे आधीन था, यह विदर्भ के अंतर्गत आता था। इसके अतिरिक्त ग्वालियर, इंदौर, भोपाल, रीवा सहित छोटी बड़ी कुल तेरह रियासतें थीं और स्वतंत्रता के साथ सबका विलय हुआ। इनमें बारह रियासतों ने तो स्वयं को भारतीय गणराज्य में विलीन कर लिया था, लेकिन भोपाल रियासत के प्रमुख नबाब हमीदुल्ला खान ने अपनी रियासत को पाकिस्तान में मिलने का प्रयास किया था। इसके लिये पृथक से विलीनीकरण आँदोलन आरंभ हुआ जिसमें सीहोर ,बरेली और उदयपुरा में गोलियाँ चलीं आँदोलन कारी बलिदान हुये। अंत में 1 जून 1949 को भोपाल भी भारतीय गणतंत्र का अंग बन गया। तब कुल चार राज्य बने मध्यभारत, विन्ध्य प्रदेश, भोपाल राज्य, मध्यप्रदेश का महाकौशल क्षेत्र को विदर्भ से जोड़ा गया। इसे सीपी एण्ड बरार नाम मिला।
 
 
1 नवंबर 1956 में राज्यों का पुनर्गठन हुआ और मध्यप्रदेश का जन्म हूआ। इसमें मध्यभारत, विन्ध्य, भोपाल राज्य, सीपी एण्ड बरार से महाकौशल क्षेत्र तथा राजस्थान से सिरीज जिला लेकर मध्यप्रदेश अस्तित्व में आया। आगे चलकर 1 नवंबर 2000 विभाजन हुआ और इसके एक भाग को अलग करके छत्तीसगढ प्राँत बना। वर्तमान मध्यप्रदेश का क्षेत्रफल लगभग 3,08,245 वर्ग किलोमीटर है और इसकी राजधानी भोपाल है। वहीँ प्रदेश का उच्च न्यायालय जबलपुर में है। मध्य प्रदेश की सीमा पाँच राज्यों की सीमाओं से मिलती है, इनमें उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, तथा उड़ीसा हैं।
 
 
विकसित मध्यप्रदेश की यात्रा -
 
वर्तमान मध्यप्रदेश 1 नवंबर 1956 को अस्तित्व में आया। मध्यप्रदेश निर्माण के इन 68 वर्षों की यात्रा अविकसित और बीमारू प्रदेश से उभरकर स्वर्णिम स्वरूप की ओर बढ़ने की यात्रा है। यह प्रदेश और प्रदेश वासियों की संकल्प शक्ति ही है कि अनेक उतार-चढ़ाव के बाद भी मध्यप्रदेश की गणना भारत के अग्रणी राज्यों में होने लगी है। जब मध्यप्रदेश ने आकार लिया था तब अनेक आधारभूत चुनौतियाँ थीं।
 
 
अशिक्षा, कुपोषण और अनेक क्षेत्रों में भुखमरी जैसी स्थिति थी। विकास की नीतियाँ बनी और काम आगे बढ़ा और धीरे धीरे विकास की ओर कदम बढ़े। औद्योगिकीकरण एवं बड़े बाधों की नीव रखी गई, अब मध्यप्रदेश कृषि उत्पादन में न केवल आत्मनिर्भर है अपितु निर्यातक भी बना। प्रदेश की इस प्रगति यात्रा को वर्तमान मुख्यमंत्री डा मोहन यादव के नेतृत्व में क्राँतिकारी आयाम मिले। उनके नेतृत्व में अनेक ऐसे निर्णय हुये जिससे मध्यप्रदेश की विकास गति तीव्र हुई और मध्यप्रदेश ने अन्य प्राँतों की तुलना में अपना अग्रणी स्थान बनाया। इसमें सबसे अनूठा निर्णय औद्योगिकीकरण के लिये क्षेत्रीय इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन करना। वे पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने उज्जैन, ग्वालियर, जबलपुर जैसे क्षेत्रीय स्थानों पर इन्वेस्टर्स समिट की इससे स्थानीय उत्पाद के आधार पर औद्योगिकीकरण की नींव पड़ी। दूसरा नदी जोड़ो अभियान के अंतर्गत केन बेतवा-केन लिंक योजना पर काम तेज हुआ। प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में देशभर के सभी प्राँतों से इस दिशा में काम करने की अपेक्षा की थी, योजनाएँ भी बनी लेकिन काम में गति न आ सकी थी। मध्यप्रदेश पहला राज्य है जहाँ यह काम निर्णायक दिशा में आगे बढ़ा। और केन्द्र सरकार से प्रशंसा भी मिली।
 
 
मुख्यमंत्री डा मोहन यादव ने अपने क्राँतिकारी निर्णयों की शुरुआत पद संभालने के पहले दिन से ही कर दी थी। उन्होंने अपने मंत्रीमंडल की पहली बैठक में ही दो बड़े निर्णय लिये । पहला सायवर तहसील की व्यवस्था पूरे प्रदेश में लागू की, इसके अंतर्गत संपत्ति की रजिस्ट्री होते ही अपने आप नामांतरण की सुविधा उपलब्ध कराना है। दूसरा ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये लाउड स्पीकर सीमित करने के आदेश दिये और इसमें धार्मिक स्थल भी शामिल किये गये। इसके साथ ही सरकार ने खुले में मांस की बिक्री पर भी रोक लगाने के भी आदेश दिये। इसके अतिरिक्त वर्तमान सरकार ने जो बड़े क्राँतिकारी निर्णय लिये उनमें इंदौर की हुकुमचंद मिल के 4 हजार 800 मजदूरों को उनके अधिकार दिलाना, प्रदेश के छोटे-छोटे शहरों को एयर कनेक्टिविटी से जोड़ने के लिए पीएम श्री वायुसेवा शुरू करना, गंभीर बीमारी के मरीजों को एयर एंबुलेंस सेवा आरंभ करना ताकि उन्हें देश के किसी अन्य अस्पताल में भेजा जा सके। आयुष्मान कार्ड धारकों के लिए यह सेवा नि:शुल्क रहेगी। युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिये 46000 से अधिक नए पद सृजित करना आदि निर्णय हैं।
 
 
यह डा मोहन यादव की वर्तमान सरकार का कुशल प्रशासन ही है कि मध्यप्रदेश का जीएसटी संग्रहण भी बढा है। मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली बार 26 प्रतिशत जीएसटी संग्रहण की वृद्धि दर्ज की गई है। साथ ही मध्य प्रदेश पर दो फीसदी कर्ज का भार भी कम हुआ है। निसंदेह इस सरकार की नीतियाँ, निर्णय और प्रशासन शैली मध्यप्रदेश को न केवल आत्मनिर्भर अपितु स्वर्णिम प्रदेश बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं।
 
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