डॉ. मयंक चतुर्वेदी.
भारत में स्वाधीनता के बाद लगा था कि विभाजन का दर्द जल्द दूर होगा और देश में अब स्थायी शांति हो जाएगी, किंतु जो सोचा गया, मत-मजहब आधार पर भारत के दो भाग करने के बाद भी वह दर्द आज भी वैसा का वैसा है। शिकार पहले भी अविभाजित भारत की बहुसंख्यक हिन्दू जनसंख्या थी और आज भी यही विभाजित भारत की बहुसंख्यक हिन्दू जनसंख्या ही है। बहराइच में जो हुआ, उसने बहुत गहरी पीढ़ा दी है। ‘राम गोपाल मिश्रा’ को जिस बेदर्दी से मारा गया गया, वह बता रहा है कि इस्लाम को मानने वालों में एक बड़ी तादात ऐसी है, जिनमें हिन्दू नफरत इस सीमा तक भरी है कि वह किसी भी हद तक जा सकते हैं।
क्या हुआ था, उस दिन..?
हरदी इलाके में रहने वाले स्थानीय लोग बता रहे हैं कि यहां महाराजगंज कस्बे में मूर्ति विसर्जन के दौरान डीजे बजाने को लेकर मुसलमानों ने आपत्ति जताई, जिसका कि यह कहकर हिन्दुओं ने जोकि जुलूस में शामिल रहे, विरोध किया कि भारत में सभी को अपने त्यौहार मनाने का पूरा हक है, हम मां का विसर्जन धूम-धाम के साथ ही करेंगे। तभी सामने से उन पर पत्थरबाजी होने लगी। इस बीच एक युवक (इस्लामिक) ने मां भगवती की मूर्ति से बगल में लगे ध्वज को खींचकर फाड़ दिया। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप राम गोपाल मिश्रा (22 वर्ष) पुत्र कैलाश नाथ मिश्रा ने एक छत पर चढ़कर वहां लगे हरे झंडे को हटाने का प्रयास किया। इसी दौरान पुलिस का लाठीचार्ज शुरू हुआ, जिससे कि दोनों ओर की भीड़ को हटाया जा सके। लेकिन जब भीड़ में शामिल लोग इधर-उधर भाग रहे थे, तभी अकेला पाकर रामगोपाल को सलमान, हमीद व अन्य उसे अपने घर में खींचकर ले गए। पहले प्लास से उसके पैरों के अंगूठे के नाखूनों को नोंचा। उसके बाद सलमान ने 12 बोर की बंदूक से रामगोपाल के सीने को बुरी तरह से छलनी कर दिया। पुलिस किसी तरह रामगोपाल को जिला अस्पताल पहुंचा पाती तब तक उसकी मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक रामगोलपाल के सीने में गोली ही नहीं मारी गई बल्कि बहुत बुरी तरह से उसे पीटा गया था। उनके गर्दन, हाथ, पैर, पीठ, सीना समेत शरीर पर अनेक निशान मिले हैं। कहा यहां तक जा रहा है कि पोस्टमार्टम के दौरान उसके शरीर से 2-4 नहीं बल्कि 35 से ज्यादा गोली के छर्रे पाए गए।
अब देखने में आ रहा है कि कई मीडिया संस्थान रामगोपाल पर ही प्रश्न उठा रही हैं, कि वह क्यों किसी का झंडा उतार रहा था, जबकि हकीकत यह है कि सबसे पहले शुरूआत ध्वज के साथ खिलवाड़ करने की इस्लामवादियों की रही, जिसकी प्रतिक्रिया में रामगोपाल आगे आया, लेकिन क्या आप इसके लिए किसी को बेरहमी से मौत दे देंगे। ये भारत है या कोई आतंकवाद को बढ़ावा देनेवाला मुल्क? क्या यहां के बहुसंख्यक समाज को अपने उत्सव उत्साह के साथ मनाने का भी अधिकार नहीं है? ऐसे अनेक प्रश्न आज कोंध रहे हैं!
वस्तुत: जो लोग भावनाओं का हवाला देकर सोशल मीडिया में यह कह रहे हैं कि , भावना आहत हुईं, इसलिए ऐसा हुआ, तब फिर यही उनसे पूछा जाएगा कि क्या आप किसी की भी भावनाओं के नाम पर हत्या करेंगे? वो भगवा झंडा ही लगा रहा था तो उसकी हत्या मुस्लिमों ने कर दी, तब तो फिर भारत में पाकिस्तानी, फिलिस्तीनी, आईएसआई एवं अन्य आतंकवादी संगठनों व भारत विरोधियों के झण्डे कई बार, कई लोगों द्वारा फहराए जाते रहे हैं, जिनका कि बहुसंख्यक हिन्दू समाज हमेशा से विरोध करता आया है, तब क्या यही कार्य उन सभी के साथ जिसमें कि शतप्रतिशत ये सभी मुसलमान ही रहे, हिन्दुओं को करना चाहिए था या है ?
अरे, भावना आहत हुई है, तो संविधानिक व्यवस्था है न ! अब यह जानते हुए भी कि अपराधी फंला है, उसके घर पर बुलडोजर चलना चाहिए, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने जब व्यवस्था दी कि पहले कोर्ट से अनुमति लेनी होगी, तब किसी अपराधी के घर पर बुलडोजर कार्रवाई होगी, तो उसकी बात राज्य सरकारों ने मानी कि नहीं? या पहले की तरह ही बुलडोजर कार्रवाइयां हो रही हैं? जब राज्य सरकारों समेत सभी से यह अपेक्षा रहती है कि वह कानूनों का शतप्रतिशत पालन करेंगे, तब इन इस्लामवादियों को किसने छूट दी है कि वह किसी की जान ले लेंगे? इतना ही था तो कानून में भावना आहत होने पर तीन साल तक की सजा का प्रावधान है, इसलिए कोई अपराधी है, तो इसका निर्णय न्यायालय को करना है - जैसे हिमाचल प्रदेश के मंडी में अवैध मस्जिद के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आरम्भ होने पर पहले मुस्लिम पक्ष ने स्वयं ही मस्जिद तोड़ना आरम्भ कर दिया था। फिर मुस्लिम पक्ष ने प्रधान सचिव शहरी निकाय एवं नगर नियोजन के न्यायालय में मस्जिद गिराने के आदेश के खिलाफ याचिका दायर कर दी। आगे मुस्लिम पक्ष ने इस मामले में मस्जिद तोड़ने के आदेश के खिलाफ स्थगन (स्टे) ले लिया। जब वे यह जानते हुए भी कि वह इस आधार पर गलत हैं कि उन्होंने बिना अनुमति के इतना बड़ा अवैध निर्माण मस्जिद का किया, इसके लिए वो (इस्लामवादी मुसलमान) संविधान का सहारा ले सकते हैं, ?
ऐसे ही अनेक मामलों में अपराधियों को बचाने के लिए ये इस्लामवादी मुसलमान कानून का सहारा लेते हैं, इतना ही नहीं, भारत में अल्पसंख्यक विशेषकर मुसलमान खतरे में हैं यह कह कर उनके नेता नारा लगवाते हैं, विरोध प्रदर्शन करते हैं, तब फिर यहां उन्हें किसने यह अनुपति दे दी कि वे किसी की जान ले सकते हैं ? उन्हें तकलीफ थी तो मुकदमा दायर करते! लेकिन नहीं, उन्हें तो रामगोपाल को मारना था, क्योंकि वह हिन्दू था! पिता कैलाश, मां मुन्नी देवी और पत्नी रोली आज बिलख रहे हैं। रामगोपाल अपनी पत्नि के साथ सिर्फ, 85 दिन ही साथ रह पाया था । बहुत सामान्य और वर्तमान परिभाषा में कहें तो बहुत ही गरीब परिवार है राम गोपाल का, इसलिए वह लखनऊ में रहकर पहले खाना बनाता रहा, फिर अपने गांव में ही रहकर छोटी-छोटी पार्टियों में खाना बनाने का काम करने लग गया था।
पत्नि रोली ने पूरी घटना मीडिया के सामने बताई है, अन्य लोगों की भी जो आंखो देखी रही, वह इस पूरी घटना के बारे में बता रहे हैं, जोकि अपने आप में बहुत भयानक एवं दर्दभरी है। पत्नि रोली अब न्याय मांग रही है, वह कह रही है कि ‘‘मेरे पति को बहुत बेरहमी से मारा गया है, उनके शरीर पर कई जगह घाव थे, गर्दन पर चाकू के बड़े-बड़े निशान थे। पैर के सारे नाखूनों को प्लास से खींच लिया गया था। हाथ और पेट में गोलियों के कई निशान थे। अब मुझे सिर्फ न्याय चाहिए,मुझे न्याय दो’’ पिछले दिनों में आप देखेंगे तो रोली जैसी अनेक पत्नियां हैं, बेटियां हैं, माताएं हैं, जिन्होंने अपनों को इस्लामिक आतंक के चलते खोया है। सभी को भारतीय संविधान से न्याय की आस है। लेकिन यह हो क्यों रहा है, इस पर बेहद गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। इस समय देश के छह राज्यों के अलग-अलग शहर हिंसा की आग में सबसे ज्यादा झुलस रहे हैं। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश शामिल हैं। अधिकांश जगह दुर्गा पूजन के दौरान विसर्जन जुलूस में पथराव की है। क्रूरता, वहशीपन, दरिंदगी, बर्बरता या पशुवत बर्ताव की सभी हदें पार करते हुए इस्लामिक भीड़ को इन सभी हिंसाओं में देखा जा सकता है।
क्या यह इस बार ही हो रहा है? तो ऐसा बिल्कुल नहीं है, अब तो यह हर बार का हो गया है, दुर्गा पूजन हो, राम नवमी यात्रा या गणेश विसर्जन हो अथवा अन्य हिन्दू चल समारोह, देश में कहीं न कहीं मुस्लिम दंगाई इन्हें लेकर हिन्दुओं पर पत्थर बरसा रहे होते हैं। जैसे ये मुल्क हिन्दुओं का नहीं, उन्हें अपने त्योहार बनाने का कोई हक नहीं और भारत कोई ऐसा इस्लामिक मुल्क है, जहां शरिया कानून लगा है? यह सभी के लिए सोचने का विषय है कि अकेले रामगोपाल मिश्रा नहीं हैं, जोकि हाल ही में इस्लामिक हिंसा का शिकार बनाए गए हैं। आप नाम गिनेंगे तो गितनी कम पड़ जाएगी, याद करें; दिल्ली के विकासपुरी में रह रहे डॉ. पंकज नारंग को, मेरठ वाले दीपक त्यागी को, महाराष्ट्र के अमरावती में मारे गए वेटरनरी केमिस्ट उमेश प्रह्लादराव कोल्हे को, कासगंज के चंदन गुप्ता को, फिर मंगलुरु के गौरक्षक प्रशांत पुजारी को, राजस्थान के उदयपुर वाले कन्हैया लाल टेलर को, लखनऊ के हिंदू समाज पार्टी के नेता कमलेश तिवारी को और इन जैसे अन्य हिन्दू भक्तों को। ये सभी इसलिए मार दिए गए, क्योंकि इन्होंने इस्लाम की वो सच्चाई बताने की कोशिश की थी, जो उनके अनुसार उन्हीं की किताबों में लिखी है, लेकिन उल्टे इन्हें इस्लामवादियों द्वारा मार दिया गया। तो ये हिन्दू होने के कारण से मार दिए गए!
देखें; इनका आखिर कसूर क्या था ? तब यही कि ये सभी स्वयं सनातन हिन्दू धर्म का पालन करते थे और अपने हिन्दू भाइयों से इस सनातन परंपरा के निर्वाह का आग्रह करते थे। इसलिए ये सभी इस्लाम के अतिवादियों द्वारा मार दिए गए। इतिहास गवाह है कि ऐसे प्रखर हिन्दुओं का मारने का इस्लाम का इतिहास बेहद पुराना है। जोकि इन्होंने भारत जैसे लोकतंत्रात्मक देश में भी पूरी तरह से चला रखा है। आखिर स्वाधीन भारत में ये अतिवादी मुसलमान यह क्या कर रहे हैं? तो बहुत गंभीरता के साथ कहना होगा कि ये सभी अपनी-अपनी योजना से भारत को गजबा-ए-हिंद की ओर ले जाने का प्रयास कर रहे हैं। जिसमें कि सबसे अहम रोल कोई निभा रहा है तो वह मदरसों में दी जा रही जिहादी शिक्षा दीनी तालीम है, जिसके आगोश में कोई बालक समदर्शी नहीं रह जाता, वह विशेष रूप से सभी गैर मुसलमानों को अपना शत्रू देखता है। अब आगे जरूरत इस बात की है कि भारत सरकार एवं सभी राज्य सरकारें मदरसा बोर्ड में दी जा रही शिक्षा की गहराई से छानबीन करें। देश भर में चल रहे मदरसों में क्या पढ़ाया जा रहा है, गहराई से उसकी पड़ताल करें। जो तत्काल हटाया जाना चाहिए, वह तुरंत ही हटाएं । अन्यथा ये नफरत की आग आगे कितनी ओर लोगों की जान लेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता है!