रमेश शर्मा.
पूरी दूनियाँ मानवीय मूल्यों की गिरावट और आचरण हीन होती युवा पीढ़ी और परिवार के बुजुर्गों की देखभाल की समस्या से परेशान है। अब माना जा रहा है कि परिवार परंपरा का विघटन ही वुजुर्ग पीढ़ी के तिरस्कार कारण है इसलिए पूरी दुनियाँ ने एक मत से समाज में बुजुर्गों का सम्मान स्थापित करने का निर्णय लिया है और इसके लिये 1 अक्टूबर की तिथि निर्धारित की।
एक ओर मानवीय विकास चन्द्रमा के पार पहुँच गया है। समृद्धि और साधनों का भी अंबार लग रहा है, पर इसके साथ एक बड़ी समस्या उन लोगों के सामने आ रही है जिन्होंने आसमान की ऊँचाइयों तक उड़ने की नींव रखी थी वर्तमान की इस पीढ़ी को उंगली पकड़कर आगे बढ़ना सिखाया था, जिस पीढ़ी ने रात दिन परिश्रम करके अपनी आने वाली संतानों के लिये स्वर्णिम भविष्य की इबारत लिखी थी, वह पीढ़ी अब उपेक्षित और असहाय हो रही है। समय के साथ शरीर थकता है, आय घटती है, बीमारियाँ बढ़तीं हैं और अपनी बात कहने, सुनने, और हँसने बोलने की इच्छा होती है, जब लगता है कोई पास हो। जब इस पीढ़ी को सहयोग और साथ की सर्वाधिक आवश्यकता थी तब असहाय हो रही है।
समय की तेज रफ्तार से आगे बढ़ता समाज अपने ही बुजुर्गों से कन्नी काटने लगा है। यह समस्या किसी एक देश की नहीं पूरे विश्व की है। इससे वह भारत भी अछूता नहीं रहा जहाँ कुटुम्ब परंपरा रही है। ऋग्वेद से लेकर सभी ग्रंथों में पितरों केलिये प्रार्थना है। एक ओर पूरी दुनियाँ के समाज शास्त्री भारत कुटुम्ब परंपरा पर शोध करके वृद्ध जनों के सम्मान का सूत्र ढूँढ रहे हैं, लेकिन अब भारत में भी संस्कृति के ह्रास के कारण बुज़ुर्ग पीढ़ी अब वृद्धाश्रमों में अपना भविष्य ढूंढ रही है। एक ओर पूरे विश्व में बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी ओर उनकी उपेक्षा भी। 2006 के आकड़ों के अनुसार विश्व में वृद्ध जनों की संख्या 11% थी जो 2016 में बढ़कर 14% हो गई। अनुमान है 2050 तक यह अनुपात 22% हो जायेगा। यह भी अनुमान है कि 2030 तक वैश्विक स्तर पर वृद्ध व्यक्तियों की संख्या युवाओं से अधिक हो जाएगी और यह वृद्धि विकासशील देशों में सबसे तेज़ होगी।
इस परिदृश्य ने आने वाले समय के लिये अनेक प्रकार की चुनौतियों का संकेत दे दिया है। यदि समाज में चेतना नहीं आई तो स्थिति भयावह होगी। इस स्थिति पर 1982 से राष्ट्र संघ ने विश्व स्तर पर अध्ययन आरंभ किया। दुनियाँ भर के वृद्धजनों के सामने मुख्य रूप से छः प्रकार की समस्याएँ देखीं गईं। इनमें आयु बढ़ने के साथ शारीरिक रूप से दुर्बलता आना, ऊर्जा घटने और शारीरिक रोगों का कारण अतिरिक्त देखभाल की जरूरत पड़ती है। दूसरी समस्या मानसिक रोगों की है, शरीरिक क्षीणता के कारण जब शारीरिक रोग होने पर उचित देखभाल न हो तो मानसिक हीनता उत्पन्न होती है और यह मानसिक हीनता अनेक मानसिक रोगों को जन्म देती है। तीसरी समस्या अकेलेपन की होती है, वृद्धजन चाहते हैं कि कोई उनके पास बैठें जिससे वे अपने जीवन के अनुभव साँझा कर सकें। चौथी समस्या आर्थिक असुरक्षा की होती है, आय घटती है और बढ़ते रोगों के कारण व्यय बढ़ता है, तो आर्थिक असुरक्षा का भाव उत्पन्न होता है। पाँचवी समस्या संयुक्त परिवार के अभाव की होती है, बच्चे अपने केरियर के लिये घर से दूर पढ़ते हैं, जाॅव करते हैं तो उन्हे अपने बुजुर्गों से लगाव नहीं रहता। इसलिये वृद्धजनों को जब सबसे अधिक आवश्यकता होती है तब वे अकेले रह जाते हैं। और छठी समस्या सामूहिकता और मनोरंजन की समस्या भी देखी गई है। बुजुर्गों का भी मन होता है हँसने बोलने और घूमने फिरने का, पर समय के साथ वे अकेले हो जाते हैं। अनेक तो ऐसे उनके सामने रहने और, खाने तक की समस्या उत्पन्न हो जाती है ।
इन समस्याओं के समाधान केलिये संयुक्त राष्ट्र महासभा ने समाज में जागरूकता लाने केलिये यह मार्ग निकाला। संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने 14 दिसंबर 1990 को इन विन्दुओं पर विचार किया और एक संकल्प पारित किया, ताकि दुनियाँ भर में वृद्धों के साथ अपमान और तिरस्कार की बढ़ती घटनाएँ बंद हों एवं उन्हें समाज में उन्हें उचित सम्मान मिल सके। इस प्रस्ताव के माध्यम से प्रति वर्ष 1 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस का आयोजन होने लगा। पहली बार 1 अक्टूबर 1991 को वृद्धजन दिवस मनाया गया। इस दिवस के माध्यम से वुजुर्गों के प्रति समाज को दायित्वबोध कराने का अभियान आरंभ किया गया है और इसके लिये प्रतिवर्ष एक विशेष थीम होती है।
इस वर्ष की थीम : गरिमा के साथ वृद्धावस्था
इस वर्ष 1 अक्टूबर 2024 को आयोजन होने वाले वृद्धजन दिवस की थीम "गरिमा के साथ वृद्धावस्था" है। जैसा कि इस वाक्य से ही स्पष्ट है कि इस वर्ष इस थीम के अंतर्गत दुनियाँ भर में बुजुर्गों के जीवन और उनके अनुभव के महत्व के प्रति जन जागरण अभियान चलाया जायेगा। वृद्ध व्यक्तियों की देखभाल और सहायता प्रणालियों को मजबूत करने का महत्व समझाया जायेगा। पिछले वर्ष की थीम समाज और परिवारों में वृद्धजनों के प्रति होरहे बुरे बर्ताव के विरुद्ध आवाज उठाना थी। वर्ष 2021 की थीम ‘सभी उम्र के लिये डिजिटल इक्विटी’ थी और वर्ष 2022 की थीम ‘बदलते विश्व में वृद्धजनों का समावेशन’ थी।
इस वर्ष के आयोजन में सभी बुजुर्ग के रहने की स्थिति, सुविधा, देखभाल केलिये समाज जागरण किरा जायेगा। विशेषकर बुजुर्ग महिलाओं पर अतिरिक्त ध्यान देने का प्रयास किया जायेगा। चूँकि वृद्धावस्था में महिलाओं को शारीरिक बीमारियाँ अपेक्षाकृत अधिक होती हैं इसलिए इस वर्ष परिवार और समाज के विकास में महिलाओं के योगदान और वृद्धावस्था उनकी देखभाल की आवश्यकता समझाई जायेगी। इस वर्ष के कार्यक्रम में समाज के बीज समाजशास्त्री और प्रबुद्धजन मिलकर नीतियों, कानूनों और प्रथाओं पर चर्चा करेंगे तथा वृद्ध व्यक्तियों के लिए देखभाल और सहायता प्रणालियों को सशक्त और सुगम बनाने पर चर्चा करेंगे। आवश्यक चिकित्सा सहायता और व्यवहारिक चिकित्सा प्रशिक्षण देने वृद्धाश्रमों सुविधा का विस्तार करने, देखभाल को व्यवहारिक बनाने पर जोर दिया जायेगा। इसके साथ संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व स्तर पर आयु और लिंग आधारित डेटा भी तैयार किया है ताकि इन आँकड़ों के आधार पर भविष्य की योजनाओं का प्रारूप तैयार किया जा सके। इस अभियान में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों, संस्थाओं और सहयोगी संगठनों को भी जोड़ा गया है। इन आँकड़ों के आधार पर समाज में लैंगिक असमानता को दूर करने एवं बुजुर्ग महिलाओं के प्रति अतिरिक्त जाग्रति लायी जायेगी।
वृद्धजनों की सुरक्षा और देखभाल की योजनाएँ
भारत में यद्यपि वृद्धजनों की स्थिति में उतनी गिरावट नहीं है जितनी विश्व के पश्चिमी देशों में है। फिर भी यहाँ दोनों प्रकार के आँकड़े बढ़ रहे हैं। वृद्धजनों की संख्या भी और उनके साथ उपेक्षा अपमान के व्यवहार के भी। 2001 के अनुसार भारत में वृद्धजनों की कुल जनसंख्या 7.7 करोड़ थी। इनमें 3.8 करोड़ पुरुष और 3.9 करोड़ महिलाएँ थीं की जनसंख्या क्रमशः 3.8 करोड़ और 3.9 करोड़ थी। जो कुल आबादी में लगभग 7% थी जो अब बढ़कर 11% प्रतिशत हो गई है। इसमें लगभग चार प्रतिशत वृद्धजन अकेलेपन के शिकार हैं। इनमें वह संख्या भी है जिन्हें आर्थिक समस्या उतनी नहीं है जितनी अकेलेपन की है, फिर भी दो करोड़ वृद्धजन ऐसे हैं जिन्हें स्वास्थ्य और अकेलेपन के साथ आर्थिक समस्या भी है। इनके लिये भारत सरकार ने तीनों प्रकार के कदम उठाये हैं। एक सेल्टर होम भी तैयार किये, दूसरा स्वास्थ्य योजना लागू की और तीसरा मासिक पेंशन देना भी आरंभ किया। पेंशन की यह योजना 1992 में हुई थी जिसमें 1997 में सुधार हुआ और 2017 में इसे बहुउद्देशीय बनाया गया।
भारत सरकार की योजनाएँ दोनों प्रकार की हैं एक तो वृद्धजनों को सीधे सहायता करने की और दूसरी उन संस्थाओं को सहायता करने की भी जो वृद्धजनों की सेवा सुरक्षा में लगीं हैं। भारत सरकार ने "राष्ट्रीय वृद्धजन परिषद" का भी गठन किया है जिसकी स्थापना 1999 में गई थी। भारत सरकार ने चिकित्सा सहायता के अतिरिक्त गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले वृद्धजनों को वृद्धावस्था 600 रुपये प्रतिमाह पेंशन आरंभ की है। इसके साथ वरिष्ठ जनों को यात्रा केलिये रेल्वे के किराये में पच्चीस प्रतिशत रियायत का प्रावधान है जो करोना काल में बंद हो गया था लेकिन अब पुनः प्रारंभ हो गया।
वृद्धजनों को सामाजिक और कानूनी सहायता
2017 में आरंभ प्रधानमंत्री वय वंदना योजना के अंतर्गत वृद्धजनों को सामाजिक और कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई है। यह वरिष्ठ नागरिकों के लिये एक पेंशन योजना है। इस स्कीम के तहत 10 वर्षों की अवधि तक गारंटीड रिटर्न दर के आधार पर एक निश्चित या आश्वासित पेंशन दी जाती है और इसमें मासिक, तिमाही, छमाही अथवा वार्षिक आधार पर अपनी पेंशन का चयन करने का विकल्प दिया गया है। इसके साथ वृद्धजनों को संरक्षण देने के लिये कुछ कानूनी प्रावधान भी किये हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण तो यही है कि वृद्धजन अपनी संपत्ति किसे देना चाहते हैं इसका निर्णय वे स्वयं कर सकते हैं। चाहें तो अपनी संतान को अपनी संपत्ति से बेदखल भी कर सकते हैं। दूसरा महत्वपूर्ण प्रावधान है कि वृद्धजन यदि चाहें तो उनके मकान से संतान को निकालकर बाहर कर सकते हैं पुलिस प्राथमिकता से सहायता करेगी। तीसरी वे अपनी संतान से अपना गुजारा भत्ता ले सकते हैं।