भगवान श्री कृष्ण से सीखना वर्तमान की आवश्यकता

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    07-Sep-2023
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भगवान कृष्ण
  
सौरभ तामेश्वरी- 
 
अपने ग्रंथों में ईश्वर की महिमा का बताई गई है। यहां बताया गया है कि ईश्वर ने समय-समय पर पृथ्वी पर जन्म लेकर मानव जीवन जिया है। भगवान विष्णु अलग-अलग युगों में जन्म लेकर पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं। वे द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण के रूप में आये। श्री कृष्ण के जीवन से सीखने को कई बातें हैं। आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर प्रभु से मिली सीखों को समझते हैं।
 
भगवान श्रीकृष्ण के जन्म को जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन को गोकुलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। श्रावण या भाद्रपद में कृष्ण पक्ष के आठवें दिन (अष्टमी) को मनाया जाता है। भागवत पुराण में भगवान श्रीकृष्ण की जीवन कथा वर्णित है। कथा में उनके जन्म के बारे में बताया है।
 
भगवान श्री कृष्ण का जीवन हमें हमेशा ही ऊर्जा से भरा रहना सिखाता है। वे सभी कार्य बड़े ही ध्यान से करते थे। बचपन से लेकर युद्ध के मैदान तक उनमें ऊर्जा और एकाग्रता देखी गयी। समाजवादी विचारक राम मनोहर लोहिया जी अपनी पुस्तक भारतमाता धरतीमाता में श्रीकृष्ण के इस गुण पर लिखते हैं, कृष्ण का चरित्र अद्वितीय है - उन्होंने जो कुछ भी किया, अपनी पूरी ऊर्जा और ध्यान के साथ पूरे मन से किया; उन्होंने बाद की जरूरतों के लिए कुछ भी नहीं बचाया। उन्होंने लोगों को भगवान बनने का मंत्र दिया, लेकिन लोग इसलिए दु:खी हैं क्योंकि वे कुल बलिदान के महत्व को भूल गए हैं। बलिदान अपने शरीर को दूसरों को देने के लिए नहीं कहता है, बल्कि यह पूरी तरह से उसके द्वारा किए जाने वाले कार्यों के लिए समर्पित करने का कार्य है।
 
लोहिया जी ने कुल के बलिदान की बात भी की।
 
वर्तमान में हम अपने कुलों के बलिदान को भूल गए हैं। जिस सनातन संस्कृति के लिए हमारे कुल के लोगों ने स्वयं को बलिदान कर दिया, लेकिन आज उच्च पदों पर आसीन लोग उस सनातन पर सवाल खड़े करते हैं। और दुर्भाग्य है कि ऐसा सवाल खड़ा करने वालों का विरोध करने वाले लोगों की संख्या काफी कम है। वर्तमान की आवश्यकता के अनुरूप अपने धर्म अपने मूल को सहेजना हम सभी का कर्तव्य है। हर नागरिक को सनातन के विरोधियों को जवाब देना चाहिए।
 
भगवान श्री कृष्ण ने भी यही किया था। उन्होंने अपने आप को सत्य का पर्याय रखा। वह हमेशा धर्म के पक्ष में खड़े मिले। इस बात को समझने के लिए इस संदर्भ को देखना अवश्य है। कौरव ने साम्राज्य का आधा हिस्सा पांडवों को नहीं दिया, जिसके वे वैधानिक अधिकारी थे। दुर्योधन सम्पूर्ण राज्य पर अपना प्रभुत्व चाहता था। कृष्ण ने पांडवों का पक्ष लिया और हर तरह से उनका साथ दिया । उन्हें अपने पक्ष को सुदृढ़ करने और बढ़ाने में सहायता की। श्री कृष्ण सही के साथ खड़े मिले।
 
सनातन अटल सत्य है। लाखों करोड़ों वर्षों पूर्व से सनातन कर होने के प्रमाण हैं। ऐसे में अगर कोई उस पर सवाल खड़ा कर रहा है तो उसको जवाब देना प्रत्येक आम नागरिक का कर्तव्य है।
 
सनातन पर प्रश्न उठाने वाले लोग बड़े ही जटिल हैं, इनसे निपटने की कला भी हमें अपने अंदर धारण करनी चाहिए। महाभारत के युद्ध के आरंभ से पहले अर्जुन और दुर्योधन दोनों कृष्ण से अनुरोध करते हैं कि वे उनके पक्ष में रहें। दुर्योधन पहले आता है। कृष्ण तब विश्राम ले रहे थे। जागने के बाद, कृष्ण अर्जुन और दुर्योधन दोनों को देखते हैं और पांडवों के पक्ष में चुनकर धर्म का पक्ष का पक्ष लेते हैं।
 
इस पर दुर्योधन ने कहा, "आप यह कैसे कर सकते हैं ? सबसे पहले मैं आपके पास मिलने के लिए आया था। आपको मेरी तरफ होना चाहिए" तब श्री कृष्ण ने कहा, "आप पहले आए लेकिन मैंने अर्जुन को पहले देखा"। कुछ कहने में निरुत्तर होने के कारण दुर्योधन वहाँ से चला जाता है।
 
हमें भगवान श्री कृष्ण की तरह कठिन परिस्थितियों को समझदारी से निपटाना सीखना चाहिए। हमें सत्य के साथ खड़े रहना चाहिए। कभी-कभी एक छोटा विचार एक बड़ी समस्या को हल कर सकता है। वर्तमान में उस विचार को प्रस्तुत करने की आवश्यता है। यह विचार हर सनातनी को प्रस्तुत करना चाहिए, ताकि सनातन पर प्रश्न खड़ा कर अनर्गल टिप्पणी करने वाले सोचकर बोलें।