रिपोर्ट-सौरभ तामेश्वरी
21 सितम्बर 2023। मध्यप्रदेश में ओम्करेश्वर के मांधाता पर्वत पर आदि गुरु शंकराचार्य को समर्पित 108 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण हुआ। यह देश में आदि शंकराचार्य सबसे बड़ी प्रतिमा है जो कि उनके 12 वर्षीय बालस्वरूप में बनकर तैयार हुई है। इसको
‘एकात्म की प्रतिमा’ नाम दिया गया है। गुरुवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज सहित हजारों संतों व विशिष्ट जनों की उपस्थिति में आदि शंकराचार्य की इस भव्य प्रतिमा का अनावरण किया गया। इस दौरान यहाँ बनने वाले ‘अद्वैत लोक’ की आधार शिला भी रखी गयी।
जैसे-जैसे प्रतिमा के अनावरण का समय पास आता जा रहा था वैसे-वैसे वेद मंत्रो का उच्चारण क्षेत्र भर गुंजायमान हो रहा था। यहाँ होने वाली सांस्कृतिक प्रस्तुतियां इस कार्यक्रम को और भी विशेष बना रही थीं। साथ ही यहाँ पर बाज रहे नगाड़े आचार्य शंकर के लिए जा रहे कार्यक्रम सफलता का बखान कर रहे थे। आदि शंकराचार्य के इस प्रतिमा अनावरण कार्यक्रम में पूरे मान्धाता पर्वत पर भारत की अद्भुत सांस्कृतिक छटा विखर रही थी।
आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊँचीं अष्टधातु की इस प्रतिमा के अनावरण के साथ ही मध्यप्रदेश की संस्कृतिक धरोहरों में इस प्रतिमा का नाम भी जुड़ गया। आदि शंकराचार्य यह प्रतिमा 16 फीट के कमल पर स्थापित हुई है, इसमें कॉपर जिंक तथा टिन आदि का मिश्रण है।
ओम्कारेश्वर में इसलिए बनायीं गयी है प्रतिमा
ओम्करेश्वर में आदि शंकराचार्य की प्रतिमा को स्थापित करने के साथ यहाँ पर बनने वाले ‘अद्वैत लोक’ बनाने के पीछे का कारण है आदि शंकराचार्य का ओम्कारेश्वर से सम्बन्ध। आदि शंकारचार्य जब 8 वर्ष के थे उस समय वे केरल के कालड़ी से 1600 किलोमीटर दूर पैदल यात्रा करते हुए मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर में आए थे। जिस पर्वत पर यह प्रतिमा स्थापित हुई है वहीं पर उन्हें गुरु गोविंद भगवत पाद जी मिले थे। चार वर्ष अध्ययन करने के बाद गुरु से शिक्षा प्राप्त करके वह अखंड भारत के भ्रमण पर निकले। इसलिए सरकार ने निर्णय लिया कि संतों के मार्गदर्शन में ओम्कारेश्वर के मान्धाता पर्वत पर आदि शंकारचार्य को समर्पित यह विशेष प्रोजेक्ट तैयार किया जाए।
वर्ष 2017 में हुई थी प्रतिमा बनाये जाने की घोषणा
वर्ष 2017 में 9 फरवरी को ओंकारेश्वर में नर्मदा सेवा यात्रा कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदि शंकराचार्य की प्रतिमा बनाने की घोषणा की थी। घोषणा के बाद से ही इसको लेकर योजनायें बनना प्रारंभ हो गयी थीं। इस प्रतिमा को बनाने के लिए पहले आदि शंकराचार्य के बाल स्वरुप की पेंटिंग तैयार की, उसके बाद उसी के अनुरूप छोटी प्रतिमा बनी। सबकुछ सही रहा तब फिर आदि शंकराचे की इस भव्य ‘एकात्म की प्रतिमा’ को आकार दिया गया। ध्यान रहे देश के प्रसिद्ध चित्रकार वासुदेव तारानाथ कामत ने पहले आदि शंकराचार्य पेंटिंग बनाई और उस पेंटिंग की तरह मूर्ति बनाने का काम शिल्पकार भगवान देवेन्द्र रामपुरे ने किया।
समाज के सहयोग से तैयार हुई है ‘एकात्म की प्रतिमा’
जब हम आदि शंकराचार्य का जीवन देखते हैं तो सामने आता है कि उन्होंने अद्वैत का प्रचार-प्रसार कर समाज को जोड़ने का कार्य किया। पूरे देश भर में भ्रमण के दौरान उन्होंने समाज को एकजुट किया। आदि शंकराचार्य की इस प्रतिमा के निर्माण में समाज का सहयोग रहे इसके लिए वर्ष 2017-18 मध्य प्रदेश के लगभग 27 हजार ग्रामों में एकात्म यात्रा निकाली गई। जनजागरण एवं धातु संग्रहण के उद्देश्य से निकाली इस यात्रा में समाज के हर वर्ग से धातुएं एकत्रित कीं। इसके बाद यात्रा में जो धातुएं प्राप्त हुईं उन धातुओं को आदि शंकराचार्य की अष्टधातु की प्रतिमा के निर्माण में उपयोग किया गया।
आईये आदि शंकराचार्य जी के बारे में जानते हैं
केरल के कलाड़ी में जन्में आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म 508-9 ईसा पूर्व हुआ था। वह एक भारतीय दार्शनिक, धर्मशास्त्री, और आध्यात्मिक गुरु थे, उन्हें भगवान् शंकर का अवतार माना जाता है। आदि शंकराचार्य एक प्रतिभाशाली छात्र थे, उन्होंने कम उम्र में ही चार वेदों को सीख लिया था। 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने संन्यास ले लिया। उन्होंने गुरु गोविंदापाद के अधीन अद्वैत वेदान्त की शिक्षा ली। आदि शंकराचार्य ने अद्वैत वेदान्त के सिद्धांतों को विकसित और प्रचारित किया, अपनी यात्रा उन्होंने अद्वैत वेदान्त के सिद्धांतों पर कई व्याख्यान दिए। उन्होंने अद्वैत वेदान्त के सिद्धांतों पर कई ग्रंथों की रचना की, जिनमें भाष्य, प्रकरण, और स्तोत्र शामिल हैं। आदि शंकारचार्य ने भारत में चरों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की, जिन्हें शंकराचार्य मठों के रूप में जाना जाता है। इन मठों ने हिंदू धर्म के प्रचार और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।