सनातनी ज्ञान परंपरा का अनुपम त्यौहार: गणेश चतुर्थी

19 Sep 2023 15:39:06
bhgawan ganesh ji
 
राज किशोर वाजपेयी "अभय"-
 
यह विश्व विख्यात तत्व है कि भारतीय सनातनी धर्म परंपरा न केवल वैज्ञानिक है अपित इसमें मनोवैज्ञानिक सार्थक मानवीय कल्याण के तथ्य भी छुपे हुए हैं। भारत के सभी त्योहार इसी मनोवैज्ञानिक सत्य को उद्घाटित करते हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण बात है कि व्यक्ति के मन पर मनोवैज्ञानिक तथ्यों का शाश्वत परिणाम प्रदर्शित होता है। गणेश चतुर्थी भी ऐसा ही एक सनातन धर्म का महत्वपूर्ण समाज सिद्ध त्यौहार है यहां ज्ञान के देवता के रूप में भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश उत्सव का प्रारंभ होता है भारत में अनादि-काल से गणेश जी की पूजा, ध्यान की परंपरा रही है।
 
गणों के ईश है गणेश: भारत गणतंत्र की जननी रहा है इसका इतिहास इस बात की प्रमाणिक पुष्टि करता है यहाँ जिनके प्रतिनिधि के रूप में गण की परंपरा प्रारंभिक काल से ही मिलती है‌। गण और गणाधिपति शब्द भारतीय पुरा-साहित्य संपदा का उल्लेखनीय अध्याय है।
 
गणपति की उपस्थित भारतीय साहित्य में भी प्राचीन काल से ही देखने को मिलती है, फिर वह चाहे रामायण हो महाभारत हो पुराणों में हो अथवा भारत के मंदिरों में गणपति के विग्रह की स्थापन की बात ही क्यों न हो? कई मंदिरों में तो गणेश द्वार पर भी विराजित हैं कई दुर्गों के द्वारों के नाम गणेश द्वार अथवा गणेश पोल के रूप में भी पाए जाते है।
 
लोक मान्यता है कि गणेश‌ माँ पार्वती के पुत्र हैं जो माँ पार्वती के स्नान के समय अपने पुत्र गणेश को यह आज्ञा देने पर कि जब तक वह नहाती हैं तब तक किसी को निवास में प्रवेश न करने दे गणेश द्वार पर आज्ञा पालन में खड़े हैं। इस समय पिता शंकर वहां पर आते हैं और गणेश उन्हें निवास में प्रवेश से रोक देते हैं, तब गणेश से शंकर जी का युद्ध होता है और शंकर जी मां पार्वती के पुत्र गणेश को गणेश के सर को त्रिशूल से काट देते हैं मां पार्वती जब स्नान से बाहर निकलते हैं और यह दृश्य देखते हैं तो बहुत क्रोधित होती हैं और जब शंकर जी को भी यह पता लगता है कि गणेश तो उनका ही पुत्र है तब वह रुद्र से कहकर गणेश की संत चिकित्सा करने के लिए प्रयासरत होते हैं और पहले पाए जाने वाले जीव हाथी का सिर काटकर गणेश के धड़ पर लगा दिया जाता है और गणेश गजानन हो जाते हैं।
 
शिव और पार्वती के विवाह के अवसर पर भी होती है गणपति की पूजा: मां पार्वती शिव के विवाह के अवसर के प्रसंग में गणपति स्थापना और पूजा का उल्लेख मिलता है इससे पता लगता है सनातन धर्म गणपति अनाड़ी देवता है जो भारत की लोक चेतना के रूप में प्रारंभ से विद्यमान है ऐसा प्रतीत होता है यह सनातनी परंपरा से प्रभावित होकर ही मां पार्वती और शंकर जी ने अपने पुत्र का नाम भी गणित रखा हो।
 
अद्भुत प्रतीक है गणेश: ज्ञान के देवता गणेश मूर्ति के रूप में विज्ञान और सामाजिक मनोविज्ञान के उत्कृष्ट उदाहरण है, जो बताता है के सनातनी परंपरा जटिल विषयों को किस प्रकार से लोक-चेतना का विषय सरलता से बना देती है। ज्ञान को समझने के लिए गणेश की मूर्ति के प्रतीक को समझना सामायिक होगा।
 
ज्ञान के प्रतीक के रूप में गणेश की मूर्ति बताती है की बड़े कान ज्ञान को अधिक सुनने अतीक सुनने के गन के प्रतीक हैं बड़ा पेट सुनकर बात को पचाने का प्रतीक है हाथी की सूँड ज्ञान के संवेदन-शील होने की जरूरत को बताता है। वहीं एकदंत होना ज्ञान के एकनिष्ठ और ध्येयवादी होने का संदेश देता है।
 
गणेश जी का वाहन चूहा कल का प्रतीक है जिस प्रकार कल निरंतर समय को काटता रहता है इस प्रकार चूहा भी निरंतर कुछ ना कुछ उतरता रहता है यह प्रतीक बताता है की ज्ञान को काल-सापेक्ष होना चाहिए बीते समय की तकनीकी आज के समय में उपयोगी नहीं होती इस बात का संदेश भी मूषक वहां के रूप में गणेश प्रतिमा से मिलता है।
 
गणेश -परिवार का अर्थ: गणेश विद्या और बुद्धि, समृद्धि के देवता हैं। गणेश जी की दो पत्नियों हैं रिद्धि और सिद्धि के रूप में जिन्हें जाना जाता है। गणेश जी के दो पुत्र भी हैं शुभ और लाभ।
 
प्रतीक के रूप में गणेश परिवार बताता है कि सनातन धर्म की परंपरा में यह सुस्पष्ट किया गया हैं की जो लाभकारी है जरूरी नहीं वह शुभकारी भी हो। पर जो शुभकारी है वह लाभकारी होगा ही। इसीलिए पहले शुभ और फिर लाभ लिखने की सनातनी परंपरा है। गणेश परिवार सनातनी मानवीय उत्कृष्ट परंपराओं को निर्मित करने, बनाए रखनें और भविष्य के लिए समृद्ध करने की महत्वपूर्ण आयोजना भी है।
 
गणेशोत्सव और लोकमान्य बालगंगाधर तिलक : बीसवीं सदी के प्रारंभ में जब साम्राज्यवादी ब्रिटिश सरकार ने भारतीय चेतना को नष्ट करने के कुटिल पैंतरें चलने प्रारंभ किये तब महाराष्ट्र में लोकमान्य तिलक ने लोक चेतना को जगाने के लिए गणपति-उत्सव का प्रारंभ किया। जन-चेतना को जगाने के लिए सामाजिक कार्यक्रम गणेश उत्सव के साथ जोड़े गए‌। धार्मिक शक्ति के रूप में भारतीय जन चेतना अपराजेय होती है इस बात को युगों से जाना जाता है।
 
लोकमान्य तिलक ने इस अपराजेय चेतना को जगाने का सत्- प्रयास किया और उनके द्वारा लोक चेतना के जागरण का उद्योग प्रारंभ किया गया। इसी से प्रेरित होकर स्वातंत्र- वीर सावरकर ने सनातनी हिंदू शब्दावली गढ़ शौर्य पूर्ण चमक दी। यह कहना थी ना होगी यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की इस लोक जागरण के कारण ही गांधी जी का भारतीय स्वतंत्रता अभियान भी सफलता की ओर बढ़ चला था।
 
गणेशोत्सव का महत्वपूर्ण प्रभाव : यह गणेश उत्सव की ही अनुपम परिणीति थी की सोया सनातन जाग उठा और यही वह सनातन है जिसने न केवल जिहादियों का सफलतापूर्वक मुकाबला किया बल्कि साम्राज्यवादी अंग्रेजों के भी मंसूवों को घुटनों पर ला दिया। आज गणेश उत्सव केवल महाराष्ट्र का ही नहीं देशभर का एक प्रमुख लोक -जागरण का त्योहार बन गया है, जिसमें गणेश जी की 11 दिन की आराधना के माध्यम से लोगों के संगठन और लोक चेतना की जागरण का कार्य सहज रूप से होता जाता है।
 
गणेश उत्सव का महत्व: गणेशोत्सव से भारत में भारतीय शिक्षा के प्रसार में बृद्धि हुई। राष्ट्रीय गौरव भाव में बृद्धि होने से ही न केवल आज भारत विश्व की तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था हो गया है बल्कि वह विश्व मंच पर विश्व गुरु के रूप में अपना स्थान बनाने के लिए अपनी तकनीकी और सृजन शक्ति के कारण मान्य हो उठा है। चंद्रयान-मिशन और आदित्य मिशन की कहानी भारतीय भविष्य की झाँकी प्रस्तुत कर रही है। भारतीय सनातन शक्ति की सफलता अंतरराष्ट्रीय बाजारवाद, कट्टर इस्लामी आतंकवाद, ईसाईयत के साम्राज्य वाद को समय रहते समझना और उसका निदान करने में जुड़ी हुई है। सनातन अपनी शक्ति से इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्षम है और विजय- सूतक इस विजय यात्रा का प्रतीक गणेशोत्सव सनातनी ध्वज बनाकर लहरा रहा है।
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