रक्षा सूत्र सिर्फ बहन की रक्षा के लिए ही नहीं बल्कि ज्ञान, परंपरा, धर्म और प्रजा की रक्षा के लिए भी बांधे जाते थे। पहले शिक्षक, सूत्र के सहारे देश की ज्ञान, परंपरा की रक्षा का संकल्प समाज से करते थे। राजपुरोहित राजा को रक्षा सूत्र बाँध कर धर्म, सत्य और प्रजा की रक्षा का संकल्प कराते थे और सांस्कृतिक और धार्मिक पुरोहित रक्षा सूत्र से समाज से रक्षा का संकल्प कराते थे। आज भी आपने कहीं न कहीं यह जरूर देखा होगा कि अनुष्ठान के बाद लोगों को रक्षा सूत्र बांधकर रक्षा का संकल्प कराया जाता है।
सनातन काल से ही रक्षा बंधन लोगों में सौहार्द और आपसी विश्वास बढ़ाता रहा, लेकिन पराधीनता काल में असुरक्षा की भावना बढ़ी और लोगों को इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि कब हिन्दू समाज में सामञ्जस्य और समरसता के धागे कमजोर होने लगे। लोगों में असुरक्षा, स्वार्थ और अविश्वास बढ्ने लगा।
जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिन्दू समाज की इस दुर्दशा को महसूस किया, तो संघ ने इन हालातों को बदलने का संकल्प लिया। हिन्दू समाज मिलकर पूरे हिन्दू समाज की रक्षा करे और आपस में सौहार्द बढे इस उद्देश्य से संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवार ने रक्षा बंधन को संघ में स्थापित किया। संघ के उत्सवों के कारण इसके अर्थ का विस्तार हुआ। संघ चाहता था कि समाज का एक भी अंग अपने आपको अलग थलग या असुरक्षित न महसूस करे और सबको साथ लेकर चलना व एकात्मता का भाव जागृत करना ही संघ का उद्देश्य है।
हजारों स्वयंसेवकों के माध्यम से संघ ने यही विश्वास समाज में एक बार फिर स्थापित करने का काम किया। रक्षा बंधन पर स्वयंसेवक परम पवित्र भगवा ध्वज को रक्षा सूत्र बांध कर धर्मो रक्षति रक्षित के संकल्प का स्मरण करते हैं। जिसका मतलब है कि हम सब मिलकर धर्म की रक्षा करें। हमारा जो लोकमंगलकारी व्यवहार है, वही धर्म है। हम समाज में मूल्यों का रक्षण करें और अपनी परम्पराओं की भी रक्षा करें। संघ जाति, धर्म, भाषा, धनसंपत्ति, शिक्षा या सामाजिक ऊंच नीच के भेद को अर्थहीन मानता है।
रक्षा बंधन उत्सव के बाद स्वयंसेवक अपने समाज की उन बस्तियों में चले जाते हैं जो सदियों से वंचित एवं उपेक्षित हैं। वंचित व उपेक्षित भाइयों के बीच बैठकर उन्हें रक्षा सूत्र बांधते हैं व रक्षा सूत्र बंधवाते हैं। बीते कई सालों से रक्षा बंधन कार्यक्रमों से हिंदू समाज के अंदर एकता और समरसता बढ़ी है और इससे एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है।
संघ द्वारा रक्षा बंधन मनाने के पीछे सशक्त, समरस और संस्कार संपन्न समाज निर्माण का भाव है।