गाँव के विद्यालयों से पढ़ाई पूरी कर इसरो तक पहुंचे मध्यप्रदेश के ये वैज्ञानिक हैं : चंद्रयान 3 की सफलता के नायक

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    24-Aug-2023
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 चंद्रयान 3
  
रिपोर्ट- सौरभ तामेश्वरी 
 
भारत के मिशन चंद्रयान 3 में लैंडर और रोबर का चाँद पर उतरना दुनिया के सामने ISRO (Indian Space Research Organisation) के वैज्ञानिकों की मेहनत का सुखद परिणाम है. ISRO के इस ऐतहासिक मिशन की सफलता ने दुनिया भर में भारत के वैज्ञानिकों के सामर्थ्य का डंका बजाया है. वैज्ञानिकों ने कम बजट में वह कार्य कर दिया जो दुनिया के बड़े-बड़े देश हजारों करोड़ रूपये खर्च करने के बाद भी नहीं कर पाए. चंद्रयान 3 के लैंडर और रोबर के चाँद पर पहुँचने की यह सफलता इसलिए भी विशेष है क्योंकि ये चन्द्रमा में दक्षिणी ध्रुव पर उतरे हैं. दक्षिणी ध्रुव चन्द्रमा का वो हिस्सा है जहाँ पर अब तक दुनिया के किसी भी देश की स्पेस एजेंसी नहीं पहुँच सकी थी लेकिन अब भारत यह करने वाला पहला देश बन गया है. बुधवार शाम चाँद पर लैंडर के उतरते ही चंद्रयान-3 में मिली इस सफलता ने अंतरिक्ष में भारत की मजबूती सुनिश्चित कर दी.
 
देशवासियों ने इस अभूतपूर्व लम्हे को सीधा प्रसारण के माध्यम से देखा. लैंडर के चाँद पर उतरते ही जो खुशी अनुसंधान केंद्र में देखी गयी, वही खुशी देश भर के नागरिकों में थी. ISRO (Indian Space Research Organisation) को मिली की इस सफलता का नागरिकों ने जश्न मनाया. मिशन में मिली साफलता ने नागरिकों के उत्साह और जूनून को बढ़ा दिया. जगह-जगह भारत माता की जय के घोष सुनाई दिए. किसी ने मिठाई बांटी तो किसी ने फटाके फोड़े. 
 
चंद्रयान 3 मिशन के लैंडर के चाँद पर उतरने की यह दिनांक इतिहास में दर्ज हो गयी. वैज्ञानिकों की मानें तो आने वाले वर्षों में भारत की अन्तरिक्ष में सफलता के लिए यह सुखद कदम है.
 
चंद्रयान की सफलता में देश के अलग-अलग हिस्सों से वैज्ञानिकों की भूमिका रही. इस टीम में मध्यप्रदेश के वैज्ञानिकों के भी नाम हैं, जिनकी इस मिशन में सहभागिता है. इसमें बालाघाट के महेंद्र ठाकरे, सतना के ओम प्रकाश पांडे एवं रीवा के तरुण सिंह और उमरिया के प्रियांशु मिश्रा की भूमिका रही. महेंद्र ठाकरे चंद्रयान-3 मिशन में प्रोजेक्ट मैनेजर रहे. ओम प्रकाश पांडे ने चंद्रयान के परिक्रमा पथ की निगरानी की. रीवा के तरुण सिंह चंद्रयान से भेजी तस्वीरों को देखेंगे. वहीं प्रियांशु मिश्रा ने चंद्रयान 3 की लांचिंग के लिए लांच व्हीकल निर्माण में अहम भूमिका निभाई.
 
मध्यप्रदेश के छोटे स्थानों से निकले इन वैज्ञानिकों की कहानी बेहद सराहनीय है.
 
महेंद्र ठाकरे  
 
महेंद्र ठाकरे बालाघाट जिले की बिरसा तहसील अंतर्गत आने वाले ग्राम कैंडाटोला के रहने वाले हैं. उनका अध्ययन ग्राम के शासकीय विद्यालय से हुई. फिर आगे अध्ययन के लिए वह रायपुर के साइंस कॉलेज में पढ़े और वहां से ग्रेजुएशन पूर्ण किया. इसके बाद दिल्ली आईआईटी से उच्च शिक्षा हासिल करके उनका कैंपस प्लेसमेंट दिल्ली आईआईटी से ही इसरो के लिए हो गया. वे चंद्रयान 3 के अंतर्गत एक प्रोजेक्ट के मैनेजर की भूमिका में थे.  

ॐ पण्डेय
 
ओम पाण्डेय सतना जिले के छोटे से गांव करसरा के रहने वाले हैं. इंदौर से उनकी मास्टर्स पूरी होने के बाद विगत 5 वर्ष पहले ही उन्होंने इसरो को ज्वाइन किया है. मिशन चंद्रयान 3 में वे जिस टीम का हिस्सा थे उसका काम चंद्रमा के परिक्रमा पथ को बड़ा करने के साथ उसकी निगरानी करने का था.
 
तरुण सिंह 
 
तरुण सिंह बघेल रीवा के एक ग्राम इटौरागढ़ से हैं, उनकी प्रारंभिक शिक्षा ग्राम में ही हुई. इसके बाद वे रीवा के सैनिक स्कूल में 12 वीं तक पढ़े. तत्पश्चात उन्होंने एसजीएसआइटीएस इंदौर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और फिर वहीं से भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो से जुड़ गए. चंद्रयान-3 मिशन में तरुण ने पेलोड क्वालिटी इंश्योरेंस की जिम्मेदारी देखी. यह सैटेलाइट का कैमरा है जो चंद्रमा की तस्वीरें लेकर डाटा कोड में भेजता है. 
 
प्रियांशु मिश्रा  
 
प्रियांशु मिश्रा उमरिया जिले के चंदिया के निवासी हैं. उन्होंने यहीं के विद्यालय से हाईस्कूल तक की पढाई की. इसके बाद उन्होंने हायर सेकेंडरी की शिक्षा भोपाल से पूरी की. देहरादून में उन्होंने बीटेक की फिर रांची से एमई (मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग) की. इस दौरान उन्हें गोल्ड मैडल भी मिला. प्रियांशु ISRO में जॉइनिंग के बाद वर्तमान में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र विक्रम साराभाई सेंटर तिरुवंतपुरम में बतौर साइंटिस्त कार्यरत हैं. वे चंद्रयान 3 मिशन में डिजाइनिंग टीम का हिस्सा रहे.