विश्व मंगल कामना के " परिषद " ने संस्कार दिए
जब संकट में पड़ा विश्व सर्वस्व तो हमने वार दिये।
शालिनी वर्मा-
ज्ञान, शील, एकता की त्रि-सूत्री के साथ अपनी स्थापना के समय से कार्यरत छात्रशक्ति के लिए 'राष्ट्र पुननिर्माण' ये शब्द एक जीवन ध्येय है। भारत की स्वाधीनता (1947) के पश्चात् युवाशक्ति के समक्ष यह बात महत्वपूर्ण थी कि स्वतंत्र राष्ट्र को अपने तरीके से आगे बढाना है। दूसरों के बल पर नहीं अपितु अपने खून-पसीने से विकसित करना है। राष्ट्रीय पुननिर्माण से यह स्पष्ट है कि हम अपनी पारंपरिक बातों से जुड़े रहते हुए,आधुनिक समय में आगे बढ़ना चाहते है। यह भी ज़रूरी है कि इस विकास यात्रा में समाज के सभी वर्गो को सम्मान,अवसर एवं सहभाग प्राप्त हो इसे सुनिश्चित करना है। राष्ट्रीय पुननिर्माण जैसे महत्वपूर्ण कार्य किसी एक व्यक्ति या समूहसंगठन द्वारा संभव नहीं हो पाते है इसमें व्यापक स्तर पर युवाओं की सहभागीता विशेषत: महत्वपूर्ण है।
अधिकतर संगठन किसी एक विषय, किसी एक या परस्पर जुड़े क्षेत्रों में एक विशेष "कल्चर" में काम करते दिखाई देते है। लेकिन व्यक्ति या क्षेत्र विशेष की चमक फीकी पड़ते ही ऐसे संगठन का अस्त होने लगता है।
अधिकांश मामलों में यही होता है लेकिन बतौर संगठन जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की यात्रा देखते है तो पाते है कि हर पड़ाव, हर संघर्ष के बाद इसकी आभा और निखरती गई। अन्तर एक नहीं कई और बड़े साफ़ है,यहाँ व्यक्ति नहीं, समाज है। "कल्चर" नहीं है,संस्कारित शक्ति है। कोई एक सीमीत क्षेत्र नहीं है बल्कि छोटे से महाविद्यालय से उठती और देश, दुनिया और ब्रह्मांड तक को एक सूत्र "राष्ट्र प्रथम" से देखने वाली दृष्टि है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का बनना, चलना और इतने लंबे समय तक अपने ध्येय और स्वभाव को शाश्वत तौर पर साधे रहना कोई सामान्य बात नहीं है। आखिर कौन सी शक्ति एबीवीपी को चला रही है? यह युवाओं की सुप्त रही शक्ति है जिसे एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने जी-तोड़ प्रयासों से जगाया।
वैसे ABVP यात्रा के 7 दशक पूरे होने पर उस धुरी को समझना आवश्यक है जिस पर ABVP टिका है । जिस चिति से,जिस भाव को जीवन आधार मानक युगों से इस राष्ट्र में कार्यव्यवहार चल रहा है। वह भाव ही इसका आधार है। यह है ABVP की धुरी। यह कोई अलग से,बाहर से लाकर गाड़ा गया खूँटा नहीं है बल्कि राष्ट्रप्रेम का वटवृक्ष है।
1949 में ABVP का गठन हुआ व देश को शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुननिर्माण का स्वप्न दिया। औपचारिक रूप से विद्यालय,महाविद्यालय, विश्वविद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा की दृष्टि से विचार करें तो इस दिशा में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के द्वारा देश की शिक्षा को सही दिशा देने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक प्रकार से राष्ट्र के समक्ष संकट की हर घड़ी में, छात्रहित में, मानवता की सेवा के लिए एबीवीपी सदैव प्रतिबद्धता से खड़ी रही है व विद्यार्थी वर्ग को इस हेतु प्रेरित व सहभाग हेतु नवीन आयामों का माध्यम भी स्थापित किया है।
ब्रिटिशों द्वारा थोपी गई शिक्षा व्यवस्था को बदलने का मानस तैयार करने का सफल प्रयास भी एबीवीपी के द्वारा ही किया गया। उच्च शिक्षा के संस्थानों में भारतीयता के आधार पर परिसर संस्कृति का विकास हो एवं आज का छात्र कल का जिम्मेदार नागरिक बने, इस हेतु अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद निरंतर काम कर रही है। देश भर की छात्रशक्ति के द्वारा राष्ट्रशक्ति को सुदृढ़ करने में लगी है। परिषद् से जुड़े हुए छात्र उच्च शिक्षा में भारतीयता को स्थापित करने हेतु संगोष्ठियों और परिचर्चाओं का सहारा ले रहे हैं, साथ ही समय- समय पर केन्द्र एवं राज्य सरकारों के समक्ष देश की शिक्षा व्यवस्था व सामाजिक परिदृश्य पर भी ठोस सुझाव प्रस्तुत कर रहे है। इसके कई ठोस परिणाम भी सामने आये है।
चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व विकास, मूल आधारित शिक्षा, शिक्षा में स्वायत्वता, मातृभाषा में शिक्षा, शिक्षा में भारतीय ज्ञान परंपरा का समावेश, पाठ्यक्रम में व्यवहारिकता,रोज़गार सृजन करने वाली शिक्षा, शिक्षा व्यवसाय न होकर सेवा का माध्यम आदि के सैद्धांतिक धरातल के विकास के साथ व्यावहारिक प्रयोग करने आदर्श प्रतिमान खड़े करने की दिशा में भी ठोस कार्य अभाविप ने किया है। आज देश का विद्यार्थी देश व समाज के उत्थान में अपना योगदान दे यह संकल्प विद्यार्थी वर्ग में सृजन करने का कार्य अभाविप कर रहा है।
अभाविप के लिए सेवा समाज में समरस्ता निर्माण करने का साधन है। अभाविप के प्रारंभ से ही कार्यकर्ता सेवा कार्य करते आ रहे है। बाढ़,अकाल,भूकंप दुर्घटना या कोरोना का काल हो कार्यकर्ता त्वरित सहायता और राहत के लिए तैयार रहे है । विद्यार्थियों का विराट रूप आज सेवा भाव हेतु जागृत हुआ है।
कोरोना महामारी में प्रभावित लोगों की सहायता के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने दृढ़ संकल्प तथा इच्छाशक्ति दिखाते हुए असहाय तथा परेशान लोगों की सहायता हेतु बहूआयामी कार्य किया।
'नर सेवा ही नारायण सेवा है' को मूल मंत्र मान अभाविप कार्यकर्ताओं ने जहाँ भी कोई परेशान था पीड़ित दिखा उसकी सहायता की।
जहाँ कोरोना वायरस जैसे संक्रामक छुआछूत वाली बीमारी के सामाजिक प्रभाव के बारे में समाज विज्ञानियों ने लोगों के बीच अविश्वास बढ़ने,सहयोग कम होने जैसे आशंकाए जताई थी, इसके विपरीत भारतीय युवाओं ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेतृत्व में इस आशंका को ख़ारिज करते हुए 'मानव सेवा को ही सबसे बड़ा धर्म मान लोगों की मदद की' इतिहास में ऐसे कई उदाहरण है जब आपदाओं से प्रभावित की सहायता के लिए अभाविप कार्यकर्ताओं ने अथक परिश्रम किया।
आज 9 जुलाई 2023 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के 75 वर्ष पूर्ण हो चुके है। राष्ट्रीय पुननिर्माण की अवधारणा को अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाना और समाज के अंतिम बिंदु पर खड़ा व्यक्ति भी इस सबके लिए कार्यरत हो उसके लिए प्रयास करना आवश्यक है। विद्यार्थी परिषद ने अपनी स्थापना के साथ ही राष्ट्रीय पुननिर्माण के ध्येय को अपना लिया था। फिर उसने हर पीढ़ी के लाखों छात्रों को इस ध्येय की और प्रेरित किया। संगठन ने अपनी सारी गतिविधियाँ भी उसी परिप्रेक्ष्य में गठित की है। आज आवश्यक है कि देश का विद्यार्थी वर्ग यह संकल्प ले कि व्यक्तिगत चरित्र के साथ ही राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करना हमारा लक्ष्य हो।
लेखिका अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की केंद्रीय कार्यसमिति सदस्य हैं।