मंदसौर जिले के गरोठ में एक प्राचीन और विशालकाय धर्मराजेश्वर मंदिर है। इस शिव मंदिर की खासियत यह है कि यह मंदिर जमीन के अंदर एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है। धर्मराजेश्वर मंदिर भले ही जमीन के अंदर बना है, लेकिन सूर्य की पहली किरण मंदिर के गर्भ ग्रह तक जाती है। ऐसा लगता है मानो स्वयं भास्कर देव अपने साथ घोड़ों पर सवार होकर भगवान शिव और विष्णु के दर्शन के लिए आए हो।
"इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना है धर्मराजेश्वर मंदिर"
सामान्य तौर पर किसी भी बिल्डिंग का निर्माण किया जाता है, तो उसकी नींव पहले बनाई जाती है। लेकिन धर्मराजेश्वर मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसका निर्माण ऊपर से नीचे की ओर हुआ है, जो आधुनिक इंजीनियरिंग को चुनौती देता है।
"विभिन्न कलाकृतियों से निर्मित यह मंदिर"
इस मंदिर में विभिन्न कलाकृतियों बनी हुई है। 1415 मीटर में बना यह विशालकाय मंदिर में सात छोटे मंदिर और एक बड़ा मंदिर है। 9 मीटर गहरा खोदकर 200 छोटी-बड़ी गुफाएं इस मंदिर में बनाई गई है। इस मंदिर की गुफाएं अजंता एलोरा गुफाओं से मिलती है। अजंता एलोरा की गुफाओं में कैलाश मंदिर की तुलना धर्मराजेश्वर मंदिर से की जा सकती है। यह मंदिर एकात्मक शैली से बना हुआ है। यहां भीम बाजार भी बना हुआ है जिसे ओहरिया बाजार के नाम से जाना जाता है।
"ऐसी है धार्मिक मान्यताएं"
महाशिवरात्रि पर यहां तीन दिवसीय मेले का आयोजन होता है। जहां लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए धर्मराजेश्वर मंदिर आते हैं। मान्यता है कि यहां एक रात ठहरने से एक भोह तर जाता जाता है। अर्थात मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इसलिए कई यात्री यहां रात रुकते हैं और कीर्तन भजन करते हैं।
साभार -: दैनिक भास्कर