राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला कार्यालय का हुआ उद्घाटन

07 May 2023 13:00:28
rashtriya swayamsevak sangh  
 
शिवपुरी 3 मई। हम विराट भगवत स्वरुप की आराधना करते हैं। विराट में से विशेषण "वि" निकाल दिया जाए तो "राट" बचता है, जो राष्ट्र का प्रतीक है। हम प्रभु को सुमन अर्पित करते हैं, इसमें भी विशेषण "सु" हटा दें तो मन बचता है। तो इस प्रकार प्रतीकों से हम राष्ट्रदेव के चरणों में अपना मन समर्पित करते हैं, यही अभिप्राय है। हम भगवान की किसी मूर्ति के सम्मुख खड़े होते हैं तब भी यात्रा मूर्त से अमूर्त तक जाने की है। इस यात्रा के मार्गदर्शक होते हैं कुछ विज्ञपुरुष। मेरा आशय भगवा वस्त्र से नहीं है।
 
यह बात साध्वी ऋतम्भरा जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पिछोर जिला कार्यालय के भूमि पूजन के अवसर पर उपस्थित विशाल जन समूह को सम्बोधित करते हुए कही। इस दौरान मंच पर उनके साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत संघ चालक अशोक पांडे जी कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में उपस्थित रहे।
 
साध्वी जी ने कहा कि, 
 
सब पुतले हैं हाड मांस के, अंतर केवल भावों का है
कुछ उज्वल आलोकित रवि से, कुछ में कुछ दुराव होता है
कोई रस्ता नेच नहीं है, इसको परिभाषित करने में
संत व्यक्ति या बस्त्र नहीं है, बो तो बस स्वभाव होता है।
 
जिसके स्वभाव में सज्जनता होती है, जिनके स्वभाव में करुणा होती है, उनमें क्रांति के बीज छुपे होते हैं। जब कचरा बहुत हो जाए, तब उसे चिंगारी दिखाकर विभूति में बदलना पड़ता है। यही क्रांति जब हमारे अंदर घटित होती है, तब उसे धर्म क्रांति बोलते हैं। और जब धर्म क्रांति होती है, तब हमारे आतंरिक विकारों के कचरे जलते हैं। जब यह समिधा के साथ जलता है तब राख नहीं विभूति बनता है, जो शिव शंकर के भी शीश पर चढ़ता है।
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक जानते हैं कि सेवा है यज्ञ कुंड समिधा सम हम जलें। हम किसी योग्य हैं यह हमारा अधिकार नहीं सौभाग्य है, हम नहीं होंगे तो कोई और होगा। जब इस भाव के साथ जब हम अपने पथ पर अग्रसर रहते हैं तो न निराशा होती है न विषाद होता है। मुझ में जो विकार हैं, उन्हें दूर करूंगा, और जो देने योग्य है उसे समाज को दूंगा, जैसे बादलों ने नदियों को दिया, नदियों ने सागर को दिया और सागर ने पुनः बादलों को दे दिया। आज राजनैतिक व्यवस्था ऐसे लोगों के हाथ में है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की टकसाल में से निकले हैं, अतः उनसे राष्ट्र हित ही होगा, क्योंकि उन्होंने सीखा है - राष्ट्र हित ही सर्वोपरि है। यहाँ व्यक्ति व्यक्ति को जोड़कर समष्टि के कल्याण की साधना का पथ अंगीकार किया जाता है।
 
उन्होंने संघ प्रचारकों की प्रशंसा करते हुए कहा कि हमारा बिस्तर एक दिन बदल जाए तो नींद नहीं आती है, जबकि संघ प्रचारक तो सतत प्रवास पर ही रहता है। एक थैला ही उसकी गृहस्थी होता है। ऊपर से आदेश आते ही अपना कार्य क्षेत्र बदलते भी उसे देर नहीं लगती। जिनकी अपनी कोई संपत्ति नहीं होती उनके लिए तो सवै भूमि गोपाल की, जामें अटक कहा। उन्होंने उपस्थित जनों से संघ कार्यालय निर्माण हेतु आर्थिक सहायता देने का भी आग्रह करते हुए एक रोचक उद्धरण सुनाया।
 
एक बुजुर्ग घर के बाहर चबूतरे पर बैठे हुए दलिया खा रहे थे। तभी एक भिखारी ने आकर उनसे याचना की। किन्तु बुजुर्ग अनसुना कर खाते रहे उसकी तरफ देखा भी नहीं। भिखारी लगातार याचना करता रहा और बुजुर्ग ने उसकी तरफ देखा भी नहीं। यह दृश्य देखकर घर की बहू से न रहा गयाऔर वह आकर भिखारी से बोली - जाओ बाबा आगे जाओ। कोई और दरबाजा देखो। यहां मेरे श्वसुर तो खुद ही बासा खा रहे हैं।
 
अब श्वसुर को गुस्सा आ गया की बहू यह गलत बात कैसे कह रही है। इसने मुझे खुद बनाकर गरम गरम ताजा दलिया दिया है, यह उसे बासा कैसे कह रही है। उन्होंने कहा - बहू तुझ जैसी झूठी बहू मेरे घर में नहीं रह सकती। जा अपने पिता के घर। बहू ने भी पहली बार पलट कर अपने श्वसुर को जबाब दिया कि आप अपने बेटे की बरात लेकर मेरे पिता के घर गए थे, और मुझे लाये थे। अब घर से बाहर अकेले अकेले कैसे निकाल सकते हो। पहले सब समाज को बुलाओ और उनके सामने मेरा दोष प्रमाणित करो तब घर से निकालो।
 
श्वसुर महोदय ने सब नाते रिस्तेदार बुलाये और सबके सामने बात रखी। तो बहू ने भी अपना पक्ष रखा और कहा-
 
मुझे इस घर में आये बीस वर्ष हो गए लेकिन मैंने कभी अपने श्वसुर को कोई दान पुण्य करते नहीं देखा, किसी की मदद करते नहीं देखा। अतः मैं कई बार सोचती थी कि जरूर इन्होने अपने पूर्व जन्म में कोई बड़ा दान किया होगा, जिसके बदले इस जन्म में इनको सब सुख हैं। इसलिए मैंने कहा कि ये बासा खा रहे हैं। पिछले जन्म की पुण्याई का फल पा रहे हैं। क्योंकि इस जन्म में तो कोई पुण्य कार्य किया नहीं है।
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