विदिशा जिला मुख्यालय से लगभग 70 किमी की दूरी पर गंजबासौदा तहसील के ग्राम उदयपुर में यह मंदिर स्थित है। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार इसका निर्माण लगभग 10वीं-11वीं सदी में महान परमार राजा भोज के बेटे उदयादित्य ने कराया था। वास्तुकला, शिल्पकला की दृष्टि से इस पूरे मंदिर पर एक वृहद ग्रंथ लिखा जा सकता है। इस मंदिर के प्रत्येक पत्थर पर इतनी उत्कृष्ट नक्काशी की गई है, इतनी कलाकृतियां उकेरी गई हैं कि स्थानीय भाषा में इसे देहरा भी कहा जाता है देहरा अर्थात देहधारी क्योंकि इसमें उकेरी गई मूर्तियों की अबतक कोई स्पष्ट संख्या उपलब्ध नहीं है। बहरहाल.... कल यानी वैशाख शुक्ल सप्तमी को इस मंदिर लोकार्पण के 943 वर्ष पूर्ण हुए हैं।
यहां पाए गए एक शिलालेख के अनुसार महाराज उदयादित्य जी ने वैशाख सुदी सप्तमी विक्रमी संवत 1137 को इस नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर पर ध्वजारोहण और महादेव की प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी। ईसवी संवत अनुसार वह दिन 30 मार्च सन 1080 दिन सोमवार था। उस शिलालेख के लेखक का नाम भी उक्त शिलालेख में अंकित है जिसके अनुसार इसे पंडित महिपाल आत्मज पंडित श्रृंगवास जी ने लिखा था। इस अनुसार कल इस मंदिर का स्थापना दिवस था। लोगों ने कागज पर इतिहास लिखे हैं, लेकिन हमारे पूर्वजों ने पेड़ों और पत्थरों पर इतिहास लिखा है। यहां की हवाएं उसके किस्से कहानी कहती हैं...... कहावतों, कहानियों, नृत्यों, किवदंतियों में और भी न जाने किन किन विधाओं में उन्होंने इतिहास को समेटा है।
बुत शिकन, मूर्तिभंजकों से अपने इतिहास को बचाने के लिए नित नए परिवर्तन किए गए, कहीं लिखने की बजाय कंठस्थिकरण किया गया, तो कहीं मंदिरों के विग्रहों को एक से दूजे स्थान शिफ्ट किया गया। श्रीनाथ जी, जगन्नाथ जी इसके जीवंत उदाहरण हैं. लेकिन काल साक्षी है कभी किसी शिवालय में यह घटित नहीं हुआ। अब भला जो रावण के हिलाने से न हिले हों, उन्हें यह दुनिया क्या खाक हिलाती....?? वैसे एक मत यह भी है कि शिवलिंग कभी खंडित नहीं होता उसका अंतिम अंश भी होगा तो भी वह सम्पूर्ण होगा। आखिर यूँही महाशिव को आदि और अनंत नहीं कहा गया। गत वर्षों में उसी आक्रान्ता मानसिकता के शिकार लोगों ने पुनः इस मंदिर और उससे जुड़े कुछ भागों पर कब्जे के कुत्सित प्रयास किए परन्तु स्थानीय लोगों के संगठित प्रयासों से यह षड़यंत्र पुनः असफल हो गए, लेकिन सनद रहे ऐसे प्रयास सदियों से होते रहे हैं होते हैं और आगे भी होंगे इसलिए हमारी जागृति और प्रतिकार आवश्यक है. शेष "हरि अनंत हरि कथा अनंता"...... शुभरात्रि......हर हर महादेव।।