यह बातें भी नववर्ष को बनती हैं विशेष

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    22-Mar-2023
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rajyaabhishekh
 
भारत में अनेक समुदाय निवास करते हैं अतः नव वर्ष के नाम भी अलग-अलग पाए जाते हैं एवं नव वर्ष को मनाने की परम्परा भी भिन्न-भिन्न है। भारत में सनातन हिंदू परम्परा में नव वर्ष का एतिहासिक महत्व है। भारतीय इतिहास में दरअसल नव वर्ष मनाने के कई महत्वपूर्ण शुभ कारण मिलते हैं। शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि इसी दिन के सूर्योदय से श्रद्धेय ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी।
 
इसी शुभ दिन को प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक हुआ था। युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी शुभ दिन हुआ था। सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन शकों को पराजित कर एक नए युग का सूत्रपात किया था एवं 2080 वर्ष पूर्व अपना राज्य स्थापित किया था एवं आपके के नाम पर ही विक्रमी शक संवत् (संवत्सर) का पहला दिन भी इसी दिन प्रारंभ होता है।
 
आज भारत राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान विक्रमी संवत के साथ ही जुड़ी हुई है और भारत के सांस्कृतिक पर्व-उत्सव तथा राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरु नानक आदि महापुरुषों की जयंतियां भी इसी भारतीय काल गणना के हिसाब से ही मनाई जाती हैं।
 
राजा विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु भी यही दिन चुना था। सिंध प्रांत के समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल भी इसी दिन प्रकट हुये थे अतः यह दिन सिंधी समाज बड़े ही उत्साह के साथ मनाता है। पूरे देशभर में सांस्कृतिक समारोहों का आयोजन किया जाता है एवं झांकियां आदि निकाली जाती है।
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक, प्रखर देशभक्त डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी का जन्मदिवस, आर्य समाज का स्थापना दिवस भी इसी दिन पड़ते हैं। साथ ही, शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्रि का पहला दिन भी इसी दिन से प्रारम्भ होता है। इतनी विशेषताओं को समेटे हुए भारत में हिंदू नव वर्ष वास्तव में कुछ नया करने की प्रेरणा देता है। यह वर्ष का सबसे श्रेष्ठ दिवस भी माना जाता है।