जिसका अधिकाँश जीवन जेल में बीता सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे सरदार अजीत सिंह

भारत विभाजन से दुखी, प्राण दिये

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    24-Feb-2023
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सरदार अजीत सिंह जी
 
रमेश शर्मा-  
 
सुप्रसिद्ध स्वाधीनता संग्राम सेनानी सरदार अजीत सिंह का जन्म पंजाब के जालंधर जिले के खटकड़ कड़ा गाँव में हुआ था । वे सुप्रसिद्ध राष्ट्रभक्त और क्राँतिकारी सरदार भगत सिंह के चाचा थे। उन्होने भारत में अंग्रेजी शासन को चुनौती दी और अपने जीवन का अधिकाँश हिस्सा जेल में बिताया । अंग्रेज सरकार ने उन्हें राजनीतिक 'विद्रोही' घोषित करके जेल में डाल दिया । बाद में लाला लाजपत राय जी के साथ साथ देश निकाले का दण्ड मिला।
 
उनके बारे कभी बाल गंगाधर तिलक जी ने कहा था कि उनमें नेतृत्व की अद्भुत क्षमता है और उन्हें जो दायित्व मिलेगा उसका वे सफलता पूर्वक संचालन कर सकते हैं। यह बात 1906 की है तब सरदार अजीत सिंह की उम्र २५ वर्ष की थी । वे १९०९ में अपना घर बार छोड़ कर विदेश यात्रा पर निकल पड़े जहाँ उन्होंने भारतीय जनों को संगठित करके क्रांति की शुरुआत की।
 
उन्होंने ईरान तुर्की, जर्मनी, ब्राजील, स्विट्जरलैंड, इटली, जापान आदि देशों की यात्रा की और उन सभी देशों के प्रमुखों से संपर्क साधा जो अंग्रेजों के विरुद्ध रहे या जो अंग्रेजों से पीड़ित रहे। सरदार अजीत सिंह आजाद हिन्द फौज के संस्थापकों में से एक थे। उन्होंने ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस हिटलर, मुसोलिनी आदि उन नेताओं से भेंट कराई जो अंग्रेजों के विरुद्ध थे । उन्होंने विभिन्न भाषायें सीखी। उन्हें विश्व की ४० भाषाओं पर अधिकार प्राप्त हो गया था । रोम रेडियो को तो उन्होंने नया नाम दे दिया था, 'आजाद हिन्द रेडियो' तथा इसके माध्यम से क्रांति का प्रचार प्रसार किया।
 
वे भारत विभाजन के विरुद्ध थ। 1947 के आरंभ में ही भारत विभाजन की रूपरेखा बन गयी थी। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर सख्ती कम हो गयी थी। सरदार अजीत सिंह मार्च १९४७ में भारत वापस लौटे । वे छत्तीस वर्ष तक भारत से बाहर रहे । इस बीच पत्नी हरनाम कौर उनका चेहरा ही भूल गयीं थीं।
 
उन्हें पहचानने में बड़ी कठिनाई हुई । बड़ी मुश्किल से परिवार में सम्मलित हुये और अपना नावास हिमाचल प्रदेश के चंबा जिलेमें बनाया । यह स्थान डलहौजी हिल स्टेशन क्षेत्र में पड़ता है । यहां इनकी स्मृति में स्मारक भी बन गया है । भारत लौटकर वे भारत विभाजन के विरूद्ध अभियान में लग गये । लेकिन चारों ओर हिँसा और तनाव का वातावरण था । इससे बहुत दुःखी रहने लगे । समय की अपनी गति होती है।
 
15 अगस्त 1947 आ गया। भारत का विभाजन हो गया।
 
भारत के हिस्से पर पाकिस्तान नाम से नये देश का उदय हो गया । उनके बलिदान के बारे में दो अलग-अलग विवरण मिलता है एक विवरण में कहा जाता है कि वे भारत विभाजन से इतने व्यथित हुये कि उन्हें हृदयाघात हुआ और उन्होंने शरीर त्याग दिया था जबकि दूसरे विवरण में कहा जाता है कि इससे दुःखी उन्होंने १५ अगस्त १९४७ के प्रातः पूरे परिवार को एकत्र किया, और जय हिन्द कह कर अपनी कनपटी पर गोली मार ली । इसके साथ ही राष्ट्र की अस्मिता पर अपना बलिदान दे दिया।
 
कोटिशः नमन ऐसे बलिदानी वीर को।