मध्य प्रदेश की राजनीति में अजातशत्रु थे ठाकरे जी- मोघे

कुशल संगठक कुशाभाऊ ठाकरे जी को श्रद्धा सुमन अर्पित

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    19-Aug-2022
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अरविन्द मोघे
अरविन्द मोघे
 
अरविन्द मोघे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक, भोपाल (मध्यप्रदेश) 
 
राजनीति में छींटाकशी तो बहुत चलती है, लेकिन कुशाभाऊ ठाकरे जी के ऊपर किसी ने भी छींटे नहीं डाले. राजनीति में रहकर भी वे उसमें डूबे नहीं थे. राजनीति में प्रत्यक्ष काम करने वाले रहकर भी वह अपने आप को विरक्त रखते थे. उनका जीवन राष्ट्र के नाम समर्पित रहा. उन्होंने कभी व्यक्तिगत निष्ठा को बढ़ावा नहीं दिया. जमीन तक उनका जुड़ाव था, प्रदेश के गाँवों में व्यक्ति-व्यक्ति से उनका परिचय था. वे छोटे से छोटे कार्यकर्ता को उनके नाम से जानते थे. ठाकरे जी संघ दृष्टि से कार्य करते थे. भाषणबाजी या नेतागिरी से नहीं अपितु व्यवहार से व्यक्ति को जीतना, इस बात को वह प्राथमिकता देते थे.
 
राजनैतिक पार्टी जनसंघ में रहने के बाद भी विविध कार्यक्षेत्र के लोगों से उनका संपर्क बहुत अच्छा था. विपक्ष के लोगों के साथ भी बड़े सहज रूप से उनके सम्बन्ध थे. उनके घरों में जाना, मिलना, उनसे पारिवारिक सम्बन्ध बनाए रखना आदि उनके स्वाभाव में था. इसलिए व्यक्तिगत रूप से उनका कोई विरोधी नहीं था, सभी जगह उनका बहुत ही आदर था. ठाकरे जी अजातशत्रु थे. राजनीति में काम करते हुए वे प्रदेश में सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित हुए.
 
कुशाभाऊ ठाकरे जी रतलाम में प्रचारक भी रहे. सभी से बड़े प्रेम से मिलते थे. वे बड़े ही कुशल संगठक थे. बाद में जब वो राजनीति में आये तो यहाँ भी उन्होंने अपनी संगठन कुशलता से काम को आगे बढ़ाया. मेरे ध्यान में है कि वे सामान्य कार्यकर्ताओं की भी बहुत चिंता करते थे. अपने सहज व्यवहार के कारण वे लोगों का ह्रदय जीत लेते थे. वे सबके चहेते थे.
 
कुशाभाऊ ठाकरे जी संघ के स्वयंसेवक थे और राष्ट्र के लिए संघ की दृष्टि से ही सोचा करते थे. वे एक साधारण स्वयंसेवक की तरह ही सोचा करते थे. संघ की जो सोच है उसी के अनुसार वह चलते थे और माँ भारती की सेवा के मार्ग में ही उन्होंने स्वयं को समर्पित कर रखा था.
 
जब वे राजनीति में थे तो समाजवादी लोग भी सक्रीय थे. वे सभी खुदको ठाकरे जी की तरह समझते थे. परन्तु उनका काम समाचार पत्रों में ही अधिक दिखता था, जमीन पर कार्य कम करते थे. जबकि ठाकरे जी का संघ से जुड़ाव व राजनीति के कारण दूर दराज के गाँवों में भी परिचय था. वे गाँव-गाँव जाकर लोगों से संपर्क एवं संवाद करते थे. इसलिए व्यक्तिगत रूप से लोगों को जानते थे. पूरे प्रदेश में उनकी मान्यता थी. सभी जगह उनका बहुत आदर था. आपातकाल में हम सभी प्रचारक साथ रहते थे. सभी भूमिगत होकर कार्य करते थे. संघ के थे तो सभी तालमेल में रहते थे.
 
ठाकरे जी को भी आपातकाल में जेल जाना पड़ा था. वे महीनों तक जेल में रहे और फिर बाहर आकार देश सेवा में लग गए. ठाकरे जी के मन में देश के प्रति, माँ भारती के प्रति उनकी सच्ची श्रद्दा थी. अपने बाल्यकाल से लेकर अंत तक उनका सम्पूर्ण जीवन माँ भारती के लिये समर्पित रहा. एक और बात मैंने उनके बारे में अनुभव की, अपनी माता जी के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा थी. वह हमेशा अपने साथ उनका एक छोटा सा चित्र रखते थे.