भारत के राष्ट्रीय ध्वज का अपना अलग ही महत्व है. इसे 22 जुलाई 1947 को देश में अपनाया गया. राष्ट्रीय ध्वज के बनने से लेकर उसे बनाने वाले की कहानी आपको जानना चाहिए.स्वाधीनता के लिए हर जगह विरोध चरम पर था, छोटे-छोटे राज्य उनसे लड़ाई कर रहे थे। अंग्रेजों के विरुद्ध देश भर में मुक्त होने की उम्मीद प्रबल हो रही थी। इस दौरान 1940 की शुरुआत में आंदोलन चरम पर पहुंच गया। जब अंग्रेजों ने भारत छोड़कर जाने का फैसला किया तो नए देश का स्वरूप तय करने संविधान सभा का गठन हुआ। एक एड-हॉक समिति बनाई गई जो राष्ट्रध्वज के डिजाइन पर सलाह देती।
इस समिति में मौलाना अबुल कलाम आजाद, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, सरोजिनी नायडू, केएम पणिक्कर, बीआर अम्बेडकर, उज्जल सिंह, फ्रैंक एंथनी और एसएन गुप्ता शामिल थे। 10 जुलाई 1947 को समिति की पहली बैठक हुई। इस बैठक की अध्यक्षता डॉ. राजेंद्र प्रसाद कर रहे थे।
इसी बैठक में राष्ट्रध्वज के डिजाइन से जुड़ी बारीकियां तय हुईं। 22 जुलाई 1947 को कॉन्स्टीट्यूशन हॉल में संविधान सभा की बैठक हुई। पंडित नेहरू ने तिरंगे को राष्ट्रध्वज के रूप में अपनाने का प्रस्ताव रखा जिसे सभा ने स्वीकार कर लिया। इस तरह, हमारा राष्ट्रीय ध्वज अस्तित्व में आया।
ऐसा है हमारा राष्ट्र ध्वज ?
ध्वज संहिता के अनुसार, 'राष्ट्रध्वज में तीन रंगों की पट्टियां हैं। सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरा रंग होता है। सफेद पट्टी के बीच में अशोक चक्र (नेवी ब्लू) होता है जिसमें 24 तीलियां होती हैं।
आमतौर पर समारोहों के लिए खादी के राष्ट्रध्वज का उपयोग किया जाता है। कागज से बने राष्ट्रध्वज को भी उपयोग करते हैं लेकिन उन्हें कार्यक्रम के बाद पूरे सम्मान के साथ रखा जाता है।
राष्ट्रध्वज को वाहन पर लगाकर चलने का अधिकार चुनिंदा लोगों को ही प्राप्त हैं। इनमें राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, राज्यपाल, उप-राज्यपालों के अलावा राजदूत, प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्य, मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सदस्य, लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं के प्रमुख, भारत के प्रधान न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के जज, हाई कोर्ट्स के मुख्य न्यायाधीश और हाई कोर्ट के जज आदि हैं।
यह बातें हैं आवश्यक
आम नागरिकों को अपने घरों या ऑफिस में आम दिनों में भी तिरंगा फहराने की अनुमति 22 दिसंबर 2002 के बाद मिली. 29 मई 1953 में भारत का राष्ट्रीय ध्वज सबसे ऊंची पर्वत की चोटी माउंट एवरेस्ट पर यूनियन जैक तथा नेपाली राष्ट्रीय ध्वज के साथ फहराता नजर आया था।
राष्ट्रध्वज और पिंगली वैन्कैय्यानंद
पिंगली वैन्कैय्यानंद वह व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के राष्ट्रीय ध्वज की परिकल्पना की। पिंगली वैंकया ने पाँच सालों तक तीस विभिन्न देशों के राष्ट्रीय ध्वजों पर शोध किया और अंत में तिरंगे के लिए सोचा। जिसके बाद उन्होंने अपना डिजाइन लाल और हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया। इसके बाद ही देश में दो रंगों वाले झंडे का प्रयोग किया जाने लगा लेकिन उस समय इस झंडे को कांग्रेस की ओर से अधिकारिक तौर पर स्वीकृति नहीं मिली थी।
इस बीच जालंधर के हंसराज ने झंडे में चक्र चिन्ह बनाने का सुझाव दिया। इस चक्र को प्रगति और आम आदमी के प्रतीक के रूप में माना गया। बाद में गांधी जी के सुझाव पर पिंगली वेंकैया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को भी राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया। 1931 में कांग्रेस ने कराची के अखिल भारतीय सम्मेलन में केसरिया, सफ़ेद और हरे तीन रंगों से बने इस ध्वज को सर्वसम्मति से स्वीकार किया। बाद में राष्ट्रीय ध्वज में इस तिरंगे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली।