भगवा धवज को ही गुरू क्यों 4

12 Jul 2022 20:30:39
rss
 
गुरुपूर्णिमा के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में स्वयंसेवक उत्साह के साथ पहुँचते हैं। शाखा में पहुंचकर स्वयंसेवक ध्वज-पूजन करते हैं, संघ के स्वयंसेवक ध्वज को ही गुरु मानते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि संघ में भगवा को ही गुरु क्यों मना जाता है
 
सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह ने जब हिंदू धर्म की रक्षा के लिए हजारों सिख योद्धाओं की फौज का नेतृत्व किया, तब उन्होंने केसरिया झंडे का उपयोग किया। यह ध्वज हिंदुत्व के पुनर्जागरण का प्रतीक है। इस झंडे से प्रेरणा लेते हुए महाराजा रणजीत सिंह के शासन काल में सिख सैनिकों ने अफगानिस्तान के काबुल-कंधार तक को फतह कर लिया था। उस समय सेनापति हरि सिंह नलवा ने सैनिकों का नेतृत्व किया था।
 
पालकर ने लिखा है कि जब राजस्थान पर मुगलों का हमला हुआ, तब राणा साँगा और महाराणा प्रताप के सेनापतित्व में राजपूत योद्धाओं ने भी भगवा ध्वज से वीरता की प्रेरणा लेकर आक्रमणकारियों को रोकने के लिए ऐतिहासिक युद्ध किए। छत्रपति शिवाजी और उनके साथियों ने मुगल शासन से मुक्ति और हिंदू राज्य की स्थापना के लिए भगवा ध्वज की छत्रछाया में ही निर्णायक लड़ाईयाँ लड़ीं।
 
पालकर मुगलों के आक्रमण को विफल करने के लिए दक्षिण भारतीय राज्य विजयनगरम् के राजाओं की सेना का भी उल्लेख करते हैं, जिसमें भगवा ध्वज को शौर्य और बलिदान की प्रेरणा देनेवाले झंडे के रूप में फहराया जाता था। मध्यकाल के प्रसिद्ध भक्ति आंदोलन और हिंदू धर्म में युगानुरूप सुधार के साथ इसके पुनर्जागरण में भी भगवा या संन्यासी रंग की प्रेरक भूमिका थी। भारत के अनेक मठ-मंदिरों पर भगवा झंडा फहराया जाता है, क्योंकि इस रंग को शौर्य और त्याग जैसे गुणों का प्रतीक माना जाता है।
 
अंग्रेजी राज के विरुद्ध सन् 1857 में भारत के पहले स्वाधीनता संग्राम के दौरान केसरिया झंडे के तले सारे क्रांतिकारी एकजुट हुए थे।'' उन्होंने पुस्तक के अंत में निष्कर्ष के तौर पर लिखा है कि भगवा ध्वज के संपूर्ण इतिहास का अध्ययन करने से स्पष्ट है कि इसे हिंदू समाज से अलग करना संभव नहीं है। यह ध्वज हिंदू समाज और हिंदू राष्ट्र का सहज स्वाभाविक प्रतीक है।
 
हिंदू राष्ट्र, हिंदू समाज, हिंदू संस्कृति, हिंदू जीवन-शैली और दर्शन–सबको भगवा ध्वज से अभिन्न रूप से जोड़कर देखा है। वे मानते हैं कि यह ध्वज हिंदुओं को त्याग, बलिदान, शौर्य, देशभक्ति आदि की प्रेरणा देने में सदैव सक्षम रहा है।
 
यह ध्वज हिंदू समाज के सतत संघर्षों और विजश्री का साक्षी रहा है। हिंदू संस्कृति और हिंदू राष्ट्र ‘भगवा ध्वज’ के बिना हम हिंदू धर्म की कल्पना नहीं कर सकते। ('धर्म' शब्द का प्रयोग हिंदुत्व के विद्वानों के अनुसार किया गया है, अर्थात् धर्म जीवन जीने का मार्ग है तथा इसे कुछ रीति-रिवाजों, कर्म-कांडों तक सीमित ‘धर्म' की रूढ़िवादिता के समतुल्य नहीं माना जा सकता) संस्कृति किसी भी देश की जीवनरेखा होती है। हिंदू संस्कृति हमारे देश की जीवन-रेखा है तथा ‘भगवा ध्वज' हिंदू संस्कृति का प्रतीक है।
 
पालकर का यह बयान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि भगवा ध्वज के अस्तित्व पर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि इसे कोई शासकीय मान्यता दी गई या नहीं। यही कारण है कि आज भी अनेक सामाजिक - राजनीतिक संगठनों, जातियों और उपजातियों के लिए भगवा ध्वज आदरणीय है।
 
यह हिंदू समाज की आकांक्षाओं का प्रतीक है और इसमें वह ऊर्जा भी है, जो उन आकांक्षाओं को साकार करने के लिए समाज को प्रेरित कर सकती है। यह ऊर्जा भले ही प्रकट न हो, लेकिन इसे हम संगठित हिंदू समाज के रूप में अवश्य देख सकते हैं।
 
भगवा ध्वज को गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने के पीछे संघ का दर्शन यह है कि किसी व्यक्ति को गुरु बनाने पर उसमें पहले से कुछ कमजोरियाँ हो सकती हैं या कालांतर में उसके सद्गुणों का क्षय भी हो सकता है; लेकिन ध्वज स्थायी रूप से श्रेष्ठ गुणों की प्रेरणा देता रह सकता है।
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मुख्यत: तीन कारणों से भगवा ध्वज को गुरु के रूप में स्वीकार किया-
 
एक, ध्वज के साथ ऐतिहासिकता जुड़ी है और यह किसी संगठन को एकजुट रखते हुए उसके विकास में सहायक होता है।
 
दो, भगवा ध्वज में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की वह विचारधारा सर्वाधिक प्रखर रूप में प्रतिबिंबित होती है, जो संघ की स्थापना का प्रबल आधार है।
 
तीन, किसी व्यक्ति की जगह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रतीक भगवा ध्वज को सर्वोच्च स्थान देकर संघ यह सुनिश्चित करने में सफल रहा कि वह व्यक्ति-केंद्रित संगठन नहीं बनेगा। यह सोच बहुत सफल रही। फलस्वरूप पिछले 95 वर्षों के दौरान जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में संगठन का आधार व्यापक हुआ और संघ में सर्वोच्च पद को लेकर कभी कोई विवाद नहीं हुआ। इस तरह के संगठन में शीर्ष नेतृत्व के उत्तराधिकार को लेकर संघर्ष न होना आश्चर्यजनक है और बहुत हद तक इसका श्रेय भगवा ध्वज को गुरु मानने के डॉ. हेडगेवार के निर्णय को दिया जा सकता है।
 
संघ के सर्वोच्च पदाधिकारी (सरसंघचालक) सहित सभी स्वयंसेवक भगवा ध्वज को सादर नमन करते हैं। संघ की अनेक शाखाओं में वर्ष-पर्यंत प्रतिदिन फहराया जाने वाला भगवा ध्वज कई दशकों से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की प्रेरणा देता रहा है। यही कारण है कि संघ के स्वयंसेवक अपनी विचारधारा के साथ बड़ी गहराई से जुड़े रहते हैं।
Powered By Sangraha 9.0