संगीत एक योग कैसे है ?

गायन, वादन और नृत्य का समन्वय ही संगीत है

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    21-Jun-2022
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vadhya yantra
 
"गीतम, वाद्यम तथा नृत्य त्रयं संगीतमुच्यते।"  
 
दीपक विश्वकर्मा-
 
यह भी अद्भुद संयोग है कि आज दुनिया के 2 योगों के महायोग का संयोग है। जिस तरह भारत ने अपने इस योग की अगुवाई की वहीं इस परम योग (संगीत) की अगुवाई एक यूरोपीय देश फ्रांस ने शुरू की, और 21 जून 1982 को पहला अंतरराष्ट्रीय संगीत दिवस मनाया गया। शायद 2016 की सर्दियों की बात होगी कि भोपाल में घूमते गके भैया ने बताया कि आज भारत भवन में पंडित शिवकुमार शर्मा जी प्रस्तुति देंगे। प्रवेश निःशुल्क भी था, फिर क्या था हम झट पट तैयार हुए और शाम को पहुंच गए.... उस कार्यक्रम का आयोजक मध्यप्रदेश सरकार का ही एक विभाग था और कार्यक्रम को नाम दिया गया था "निरामय:" । जहां पर तत्कालीन मुख्य सचिव जी ने संगीत और स्वास्थ्य के रिश्ते पर कुछ प्रकाश डाला। बस उसी रोज से हमारी संगीत और स्वास्थ्य की खोज प्रारम्भ हो गई।
 
योग का मतलब केवल शारीरिक क्रिया ही नही इसका मतलब मन को शांत करना और परमेश्वर के साथ संयुक्त होना भी है। संगीत जैसा योग साधना के बेहतर माध्यम है ही नही। मीरा जी, स्वामी सूरदास जी, स्वामी हरिदास जी सब संगीत रचना और गायन को आधार बनाकर ही भगवत् मार्ग पर आगे बड़े। आज भी गौरीय वैष्णव जन कीर्तन एवं संगीत द्वारा जीवन का आनंद को अनुभव कर रहे है।
 
संगीत एक योग कैसे है ?
 
पहले तो संगीत श्वास-प्रश्वास के नियंत्रण के उपर आधारित एक अभ्यास है जो रोगो का निरामय करने में सक्षम है। आज भी आप देखेंगे भारतीय संगीत के जितने भी प्रकांड पंडित हुए सभी 80-90-100 साल आसानी से जिए। रियाज अपने आप में योग है। कहा जाता है मानव शरीर में प्राण-वायु इड़ा नाड़ी से प्रवेश करते है और 72000 रास्तो से शरीर के हर तरफ उर्जा बांट कर पिंगला नाम के नाड़ी से देह से बाहर निकल जाती है।
 
संगीत के हर राग एक एक नाड़ी तंत्र से संयुक्त है। अलग अलग समय पर अलग अलग राग का गायन एक स्वस्थ जीवन शैली का पालन है। इस से फेफड़े और गले के रोगो से मुक्त रह सकते है। शरीर के हर अंग में प्राण-वायु का संचालन करते हुए शारिरिक और मानसिक उर्जा प्रदान करने का सबसे सरल और आनंदमय माध्यम है संगीत। वेदो में भर भर कर इसकी व्याखा की गई है।
 
यह दुर्भाग्य नहीं कहा जाए तो क्या मानें। जिस देश की धरा पर संगीत की देवी का प्रादुर्भाव हुआ। जहां हजारों वर्ष पूर्व संगीत पर ग्रंथ लिखे गए, आज उस देश के बहुसंख्य आबादी को यह भी पता नहीं होगा कि ऐसा कोई दिवस भी होता है। जबकि आज की रात सम्पूर्ण पश्चिमी देशों में रात्रि जागरण जैसा माहौल होता है, बड़े बड़े संगीत दिग्गज अपने प्रसंशकों के समक्ष निःशुल्क प्रस्तुतियां देते हैं।
 
भारतीय तारतम्य में स्वयं ब्रम्हाजी ने उनके पुत्र नारद को यह वरदान स्वरूप दिया, कालांतर में भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र की रचना कर इसे लिपिबद्ध किया। उन्ही के अनुशरण करते हुए आगे चल मतंग मुनि, शारंगदेव इत्यादि मुनियों ने संगीत ग्रंथों की रचनाएं की । हालांकि यह काफी बाद कि बात है। क्योंकि जैसा कि नारद जी से संगीत प्रारंभ हो चुका था, सामवेद को संगीत प्रधान माना जाता है। और एक तरह से इसे संगीत वेद कहना भी उचित है। भारतीय संगीत एक अथाह सागर की भांति है । जिसका कोई छोर नहीं है, यह आदि भी है और अनंत भी।
 
आज हम जो अपने आसपास सुनते हैं, पार्श्व (फ़िल्मी) संगीत, भजन, गजल, लोकसंगीत इत्यादि यह इसके तीन भुजाओं में से एक भुजा का भी मात्र 1 अंश है। इससे आप भारतीय संगीत के अनंत की कल्पना कर सकते हैं। भारतीय संगीत 3 भागों में बंटा हुआ है- शास्त्रीय संगीत, कर्नाटक संगीत और सुगम संगीत। जिसमें भारतीय संगीत के साथ मुगल काल में कुछ छेड़छाड़ भी हुई हैं, नतीजतन उसमें उनका भी प्रभाव दिखता है। इसमें श्रृंगार रस की प्रधानता नजर आती है।
 
कर्नाटक संगीत बिल्कुल दक्षिणी भूभाग की ही तरह मुगलों से अछूता रहा नतीजतन उसकी शुद्धता बरकरार रही। कर्नाटक संगीत में भक्ति रस प्रधान होता है, क्योंकि जहां भारतीय शास्त्रीय संगीत को राजाओं तथा राज दरबारों का संरक्षण प्राप्त हुआ अतैव उस पर उनका प्रभाव पड़ा। वहीं कर्नाटक संगीत को मंदिरों, मठों का संरक्षण मिला... जिससे उसकी शुद्धता बाकी रही। तीसरा सुगम संगीत, जिसे आज हम व्यापक रूप से देखते हैं । भजन, गजल, सूफी, लोकगीत, फिल्मी गीत इत्यादि के रूप में। कोई भी व्यक्ति रसिक, श्रोता इन्ही सीढ़ियों से चढ़कर भारतीय संगीत की ओर जाता है।
 
मुनि शारंगदेव लिखित "संगीत रत्नाकर" के अनुसार "गीतम, वाद्यम तथा नृत्य त्रयं संगीतमुच्यते।" अर्थात गायन, वादन और नृत्य का समन्वय ही संगीत है। इनके प्रमुख वाद्यों में वीणा, सितार, सरोद, तानपुरा, संतूर, बांसुरी, शहनाई, पखवाज, तबला, वॉयलिन, सारंगी, मृदंग इत्यादि होते हैं। हमारे यहां जहां तबला अधिकतम वादन किया जाता है वहीं दक्षिण भारत में मृदंग का वादन किया जाता है।
 
मृदंग भगवान शिव के तांडव करने के दौरान निर्मित हुई । भगवान शिव ने तांडव नृत्य मृदंग की थाप पर ही किया था। अतैव मृदंग को ही विश्व का पहला वाद्य होने का गौरव प्राप्त है। जिस तरह योग आपको शारीरिक रूप से चुस्त, दुरुस्त रखता है उसी प्रकार संगीत आपको मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है। यहां पर आपसे 2 महत्वपूर्ण बातें शेयर करता चलूं, गत वर्ष जब कोविड-19 उफान पर आया और दुनियाभर में इस पर विभिन्न दृष्टिकोणों से रिसर्च शुरू हुआ तो इटली ने इसी दौरान संगीत थैरेपी भी प्रयोग की गई जिसके परिणाम भी सुखद निकले । उसी दौरान भारत में भी कुछ लोगों ने राग शिवरंजनी का प्रयोग किया जो सफल रहा । इसने वायरस प्रभावित लोगों को पैनिक होने से बचाया। इसलिए सिर्फ संगीत ही नहीं बल्कि अच्छा संगीत सुनना चाहिए।
 
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