क्या शिवाजी से बड़ा कोई नायक, संत, भक्त और राजा है- स्वामी विवेकानंद

राज व्यवहार में भ्रष्टाचार, चाहे वह आचरण में हो या अर्थतंत्र में बिल्कुल अस्वीकार्य करते थे महाराज

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    13-Jun-2022
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ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था और हिंदू साम्राज्य स्थापित हुआ। भगवा के अनन्य उपासक शिवाजी रणनीति, कूटनीति में माहिर होने के साथ भ्रष्टाचार निषेधक और हिंदुओं की घर वापसी के समर्थक थे। प्रस्तुत है पाञ्चजन्य के अभिलेखागार से शिवाजी महाराज पर एक आलेख
 
स्वामी विवेकानंद ने कहा था- ‘क्या शिवाजी से बड़ा कोई नायक, संत, भक्त और राजा है? हमारे महान ग्रंथों में मनुष्यों के जन्मजात शासक के जो गुण हैं, शिवाजी उन्हीं के अवतार थे। वह भारत के असली पुत्र की तरह थे जो देश की वास्तविक चेतना का प्रतिनिधित्व करते थे। उन्होंने दिखाया था कि भारत का भविष्य अभी या बाद में क्या होने वाला है। एक छतरी के नीचे स्वतंत्र इकाइयों का एक समूह, जो एक सर्वोच्च अधिराज्य के अधीन हो।’
 
एक सच्चा राजा जानता है कि कैसे हारे हुए युद्ध को भी जीतना है। एक सच्चा राजा जानता है कि जब उसका जीवन समाप्त हो जाता है, तो भी उसे कैसे जीना चाहिए। शिवाजी महाराज जन-जन के नायक हैं। लेकिन स्वयं शिवाजी का नायक कौन है?
 
शिवाजी महाराज ने न कभी विदुर को देखा-पढ़ा था, न चाणक्य को। न उनके दौर में कोई ऐसा शूरवीर था, जो उन्हें प्रेरित कर सकता होता। लेकिन शिवाजी महाराज ने विदुर, कृष्ण, चाणक्य, शुक्राचार्य, हनुमान और राम-सभी को आत्मसात किया हुआ था।
 
उनकी पहली नायक उनकी माता जीजाबाई हैं। जिन्होंने बचपन से ही उनको रामायण और महाभारत की शिक्षा दी। महात्मा विदुर ने कहा था-
 
कृते प्रतिकृतिं कुर्याद्विंसिते प्रतिहिंसितम्।
तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेत्॥
(महाभारत विदुरनीति)
 
अर्थात् जो (आपके प्रति) जैसा व्यवहार करे उसके साथ वैसा ही व्यवहार करो। जो तुम पर हिंसा करता है, उसके प्रतिकार में तुम भी उस पर हिंसा करो! मैं इसमें कोई दोष नहीं मानता, क्योंकि शठ के साथ शठता करना ही उचित है।और जब शिवाजी ने अफजल खां का वध किया, तो जाहिर तौर पर उनकी यही शिक्षा उनकी प्रेरणा थी। जबकि उनके अधिकांश मंत्रियों की समझ से यह सारी बातें परे थीं। शिवाजी महाराज ने घुड़सवारी, तलवारबाजी और निशानेबाजी दादोजी कोंडदेव से सीखी थी।
 
भ्रष्टाचार और शिवाजी :शिवाजी ने राजदरबारों और शासन प्रणाली में निहित भ्रष्टाचार को देख-समझ लिया था। साधारण बुद्धि का राजा होता, तो अपने दरबार में या अपने शासन में निहित भ्रष्टाचार को समाप्त करवा कर ही स्वयं को महान समझ लेता। लेकिन शिवादअजी महाराज एक कदम और आगे गए। उन्होंने अपने राज्यक्षेत्र में तो भ्रष्टाचार को समाप्त किया ही, इसी हथियार का प्रयोग अपने राज्य के विस्तार में किया।
 
अनिल माधव दवे ने अपनी पुस्तक ‘शिवाजी एंड सुराज’ में लिखा है, ‘‘महाराज को राज व्यवहार में भ्रष्टाचार, चाहे वह आचरण में हो या अर्थतंत्र में, बिल्कुल अस्वीकार्य था।’’
 
अपने अधिकारियों को लिखे 13 मई, 1671 के एक पत्र में शिवाजी लिखते हैं, ‘‘अगर आप जनता को तकलीफ देंगे और कार्य संपादन हेतु रिश्वत मांगेंगे तो लोगों को लगेगा कि इससे तो मुगलों का शासन ही अच्छा था और लोग परेशानी का अनुभव करेंगे।’’
 
मनोवैज्ञानिक युद्ध कौशल : औरंगजेब ने शिवाजी की चुनौती का सामना करने के लिए बीजापुर की बड़ी बेगम के आग्रह पर अपने मामा शाइस्ता खान को दक्षिण भारत का सूबेदार बना दिया। शाइस्ता खान ने डेढ़ लाख सेना लेकर पुणे में 3 साल तक लूटपाट की। शिवाजी ने 350 मावलों के साथ उस पर छापामार हमला कर दिया। शाइस्ता खान अपनी जान बचाकर भागा। शाइस्ता खान को इस हमले में अपनी 3 उंगलियां गंवानी पड़ी। औरंगजेब ने शाइस्ता खान को दक्षिण भारत से हटाकर बंगाल भेज दिया। लेकिन शाइस्ता खान अपने 15,000 सैनिकों के साथ फिर आया और शिवाजी के कई क्षेत्रों में आगजनी करने लगा। जवाब में शिवाजी ने मुगलों के क्षेत्रों में लूटपाट शुरू कर दी। शिवाजी ने 4 हजार सैनिकों के साथ सूरत के व्यापारियों को लूटने का आदेश दिया। उस समय हिन्दू मुसलमानों के लिए हज पर जाने का द्वार सूरत ही था।
 
सामाजिक चुनौतियों का सामना : शिवाजी ने अपने धर्म की रक्षा और संवर्धन के लिए ब्राह्मणों, गायों और मंदिरों की रक्षा को अपनी राज्यनीति का लक्ष्य घोषित किया था। लेकिन उस समय प्रचलित छुआछूत एक बड़ी बाधा थी। सन् 1674 तक पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बावजूद शिवाजी का राज्याभिषेक नहीं हो सका था। ब्राहमणों ने उनका घोर विरोध किया था, क्योंकि उनके अनुसार शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे। राज्याभिषेक के लिए उन्हें क्षत्रियता का प्रमाण चाहिए था। बालाजी राव जी ने शिवाजी के मेवाड़ के सिसोदिया वंश से संबंध के प्रमाण भेजे, जिसके बाद रायगढ़ में उन्होंने शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया।
 
युद्ध नीति : शिवाजी महाराज ने अपना साम्राज्य बाहुबल के साथ-साथ बुद्धिबल से स्थापित किया था। उन्होंने स्थापित साम्राज्यों और सल्तनतों की युद्ध-मशीनरी में एक प्रमुख दोष खोज निकाला। और अपनी मराठा सेना में चेन-आफ-कमांड को सर्वोच्च शक्तियां दीं। चाणक्य की नीति पर चलते हुए उन्होंने अपने अद्वितीय गुप्तचरों और कार्यकर्ताओं का तानाबाना पूरे देश में फैला दिया था। उस दौर में राजा के मर जाने पर सैनिक भी युद्ध से भाग खड़े होते थे, लेकिन शिवाजी के सशक्त योद्धा उनकी मृत्यु के 27 साल बाद भी उनके सपने को जीवित रखने के लिए लड़ते रहे थे। क्योंकि शिवाजी अपनी जागीर बचाने के लिए नहीं लड़े। वे स्वराज्य की स्थापना के लिए लड़े। उनका लक्ष्य एक स्वतंत्र साम्राज्य स्थापित करना था लेकिन उनके सैनिकों को स्पष्ट आदेश था कि भारत के लिए लड़ो, किसी राजा विशेष के लिए नहीं।
 
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