संस्कृति और शौर्य की प्रेरक गाथा : विक्रम संवत्सर

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    02-Apr-2022
Total Views |
hindunavvash
 
 

राज किशोर वाजपेयी"अभय"
 
चैत शुक्लपक्ष की प्रतिपदा का दिन काल-गणना के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योकि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की। सूर्य और पृथ्वी की गति के आधार पर दिन, माह और बर्ष का निर्धारण हुआ, जो हमारे महान ऋषियों की अनुपम मेधा के द्वारा 27 नक्षत्रों और उनसे बनी 12 राशियों की गति गणना से ही संक्राति गणना आदि संभव हुई, जिसके आधार पर सुर्य, चंद्र -ग्रहण और सूर्य, चंद्र उदय और उनके अस्त काल की सटीक गणना संभव हो सकी। फलस्वरुप तिथि आधारित त्यौहारौं का स्थिर मौसम ऋतुकाल तय हुआ और कृषि खाद्यान्नों तथा फसलों के सापेक्ष त्यौहार स्वयंमेव उत्सव में रुपायित हो गये।
 
चैत्र प्रतिपदा और लोक-मान्यता:
लोक मान्यता है कि लंका विजय के पश्चात् अयोध्या लौटने पर श्रीराम का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था, इसी दिन महाभारत युद्ध में विजयी होने के पश्चात युधिष्ठिर का भी राज्याभिषेक हुआ था। आक्रमणकारी शकों को मालव गणराज्य द्वारा पराजित कर महान भारतीय चंद्रगुप्त विक्रमादित्य भी गद्दी पर बैठे थे|
 
विक्रम संवत का अभिर्भाव:
भारत की पुण्य-भूमि पर विदेशी आक्रमण उत्तर-पश्चिम सीमा से बहुत हुये हैं| शकों द्वारा भी इसी रास्ते भारत पर आक्रमण कर आर्यावर्त और मध्य-भारत को भी आक्रांत कर दिया था, तब मालव गणराज्य के महापराक्रमी राजा चंद्रगुप्त ने भारतीय शौर्यकी अपने नेतृत्व में सफल स्थापना करते हुये शकों को पूर्ण पराजित कर हिन्दुस्तान से खदेड़ दिया था और जनता ने पूर्ण हर्षोल्लास के साथ चंद्र गुप्त का राज्याभिषेक कराया और चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की उपाधि धारण कर "चंद्रगुप्त विक्रमादित्य" कहलाये। इसी दिन से प्रारंभ हुआ " विक्रम संवत" जो भारतीय शौर्य की शकों पर विजय का स्मृति-घोष भी है।
 
संस्कृति की प्रतीक गुड़ी पडवा -
2078 वर्ष बीत चुके हैं, भारत की विदेशी आक्रांताओं (शको) पर हुई उस विराट विजय को हुये, लेकिन यह विजय लोक-चेतना में अमर हो गई और आज भी द्वार-द्वार गुड़ी बाँधने की परंपरा से उत्सव मनाया जाता है। पकवान बनते है, शुभकामनाएं देकर नव संवत का स्वागत किया जाता है।
 
प्रकृति भी मनाती है नव संवत का पर्व:
यह ग्रीष्म ऋत के आरंभ की प्रकृति द्वारा घोषणा भी है ,खाद्यानौं की फसलें पक जाती हैं , आम, अंगूर, संतरे , तरबूज और खरबूजा जैसे सरस फलों की बहार आ जाती है। बृक्षों में भी पतझड़ के वाद नव पर्ण आ जाते है। तभी प्रारंभ होता है "शक्ति -साधना"का नव-रात्रि पर्व जिसमें माँ की शक्ति की विभिन्न रुपों में आराधना कर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का विकास किया जाता है व साथ ही साथ आध्यात्मिक लाभ भी लिया जाता है, नवरात्रि उत्सव की भव्य पूर्णता नवमी तिथि को राम जन्मोत्सव पर्व के साथ होती है। कन्या पूजन और कन्या-भोज को समर्पित नवरात्रिउत्सव भारतीय संस्कृति का अनुपम सोपान है।
 
नवसंवत का सांस्कृतिक महत्व :
विदेशी आक्रमणकारियों (मुस्लिम और अंग्रेजी) ने हमारी मानवता को समर्पित संस्कृति पर निरंतर प्रहार किये, उसी के फलस्वरुप आज हमारी शिक्षा, न्याय और चिकित्सा प्रणाली के साथ-साथ हमारी नयी पीढी़ भी अंग्रेजी माध्यम के षडयंत्र का शिकार हुयी है जिससे हम अपनी गौरवशाली संस्कृति को जानने में कठिनाइयों का अनुभव कर रहे हैं| आज हमारे ननिहाल बर्ष के जनवरी से दिसम्बर माह तक के नाम जानते है और हैप्पी न्यू इयर 31 दिसम्बर की आधी रात को भौतिकता से भरपूर भाव-भंगिमाऔं से मना खुश हो रहे है ,तब उन्हें भारतीय ऋतु और परिवेश से युक्त "संवत" के चैत मास के प्रथम सूर्योदय से प्रारंभ होकर वैशाख, जेठ, आषाढ़, सावन, भादों, क्वार, कार्तिक, अगहन, पूष, माघ, फाल्गुन सहित 12 माह के नाम और उसमें पड़ने बाले उत्सवों और उनके सांस्कृतिक, आध्यात्मिक महत्त्व को बताने की सामयिक आवश्यकता है।
 
मनायें गुड़ी पडवा:जगाये राष्ट्र :
राष्ट्र की पहचान उसकी संस्कृति से होती है और संस्कृति की रक्षा का दायित्व राष्ट्र के नागरिक का है। सनातन संस्कृति का अमर सक्षम पुण्य- प्रवाह रखने वाले हिन्दुस्तान के मनस्वी नागरिक जब गुड़ी पड़वा (चैत्र-प्रतिपदा) की बह् -वेला में जाग कर बाल -भास्कर की स्वर्णिम राशियों को जल का अर्द्ध दे नव वर्ष का स्वागत संवत्सर के रूप में करेंगें तो संस्कृति के प्रवाह से राष्ट्र जागेगा और साकार करेगा मानवता का वह सपना, जिसकी बाट भारत माता लम्बे समय से देख रही है।
 
स्वागत "नल संवतसर2079:
जा रहा है 2077का प्रमादी नामक संवत्सर व 2078 का आनंद नामक संवत जिसने कोरोना जैसी महामारी व यूक्रेन-रूस युद्ध से मानवता को खूब पीड़ित किया लेकिन 02 अप्रैल से प्रारंभ हो रहे "नल" नामक नव संवत्सर से जिसके राजा शनि वह मंत्री गुरू होंगें से, यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह करोना जैसी महामारी से मानव-जाति को मुक्ति देकर सुख-संपत्ति और समरसता से युक्त रखेगा। नवसंवतसर सभी को मंगलकारक हो, इस बेला में यही सभी की कामना|