बसंत पंचमी, प्रतिमा और भोजशाला

१२०० साधकों के सम्मुख तलवार और कुरान में से किसी एक को चुनने का रखा था विकल्प

विश्व संवाद केंद्र, भोपाल    05-Feb-2022
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 प्रतिमा
 
प्रतिमा का इतिहास
 
भोजशाला धार स्तिथ वही स्थान है जहां राजा भोज ने संस्कृत शिक्षा केंद्र और माता सरस्वती के मंदिर का सृजन करवाया था. माता सरस्वती की यह प्रतिमा भोजशाला की ही है, प्रतिमा अभी भारत में नहीं है. यह प्रतिमा ब्रिटेन में है, जिसे म्यूजियम में रखा गया है।  वसंत पंचमी के दिन इस प्रतिमा को लाने के प्रयास करने की आवश्यकता है.
 
भोजशाला का वर्णन बहुत दीर्घ है यह कालिदास, माघ, बाणभट्ट, भवभूति, मानतुंग, भास्कर भट, धनपाल जैसे १४०० विख्यात, प्रकाण्ड विद्वानों, धर्मशास्त्रियों, कवियों की साधनास्थली रही है।
 
इस भोजशाला का एक विशाल सभामंडप था, जिसकी छत सैकड़ों नक्काशीदार स्तम्भों (पिल्लरों) पर टिकी हुई थी। भवन में हजारों कक्ष थे। वास्तविकता में भोजशाला संस्कृत अकादमी थी। यहाँ संस्कृत के विद्यार्थी ही नहीं, अध्यापक भी अध्यापन करने आते थे।
 
प्रतिमा ले जाने तक की कहानी- 
 
१२३९ में अरब से कमाल मौलाना आकर धार में बसा। जादू-टोने के नाम पर धर्मांतरण करने लगा, इस्लाम का प्रचार करने लगा। १३०५ में इस्लामी आक्रान्ता अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा को हराने के उद्देश्य से आक्रमण किया। मौलाना हिंदुत्व की जड़ को पिछले कई वर्षों से मालवा में बलहीन कर ही रहा था। खिलजी का कार्य सहज हो गया, उसने हिन्दुओं के मानबिन्दुओं को ध्वस्त करना प्रारम्भ किया।
 
भोजशाला हिन्दू मानबिन्दुओं में प्रमुख थी तो स्वाभाविक ही उसे भी ध्वस्त करने का कार्य धूर्त खिलजी ने किया। खिलजी के बाद भी भारत में आक्रान्ता आते गए और भोजशाला ध्वस्त होती रही।
 
जब १४०४ में दिलावर खां ने आक्रमण किया तो उसने भोजशाला के सूर्यमार्तण्ड मन्दिर को ध्वस्त कर दिया और भोजशाला के कुछ हिस्से को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया। फिर महमूदशाह ने पूरी भोजशाला को ही मस्जिद में परिवर्तित करने का प्रयत्न किया। कमाल मौलाना की मृत्यु के २५० वर्षों बाद भोजशाला में उसका मकबरा बनाया, जबकि कमाल मौलाना की मृत्यु अहमदाबाद में हुई थी और वहीं उसे दफनाया गया था, फिर भी यह षड्यंत्र रचा गया।
 
लेकिन इस्लामी आक्रान्ता अपने षड्यन्त्रों में सफल यूँ ही हो गए हों ऐसा कतई नही है। पग-पग पर हिन्दुओं ने अपनी माँ के धाम की रक्षा के लिए कितने ही संघर्ष किये, बलिदान दिए। जब खिलजी ने आक्रमण किया तो वीर गोगादेव और राजा महलकदेव ने हजारों वनवासी शूरवीरों के साथ युद्ध किया, अपने जीते-जी उस आक्रान्ता को भोजशाला में प्रवेश नहीं करने दिया।
 
जब माँ के इन बेटों ने लड़ते-लड़ते अपना जीवन बलिदान कर दिया, तब जाकर खिलजी कहीं भोजशाला में प्रवेश पा सका। लेकिन उसका यह मार्ग भी निष्कंटक नहीं था। भोजशाला के आचार्यों और विद्यार्थियों ने कड़ा संघर्ष किया। पराजित होने पर खिलजी ने उन्हें बंदी बना लिया।
 
१२०० साधकों के सम्मुख तलवार और कुरान में से किसी एक को चुनने का विकल्प रखा गया। धर्मरक्षकों ने मुक्ति को चुना, सुन्नत को नहीं और इन सब विद्वानों को भोजशाला में वर्षों से अविरत चल रहे यज्ञ में डाल दिया गया, जो किसी कारण से जीवित बच गये उन्हें नारकीय यातनाएं दी गईं।
 
भोजशाला को ध्वस्त करने का और उसके संरक्षण के लिए होने वाले संघर्षों और बलिदान का क्रम कभी नहीं रुका और भोजशाला के लिए इस्लामी आक्रान्ताओं से सतत होते संघर्ष और बलिदान के मध्य ही देश पर अंग्रेजों का शासन हुआ।
 
अंग्रेज़ धूर्त प्रवृत्ति के थे, वो मुगलों की तरह तलवार से नहीं वरन बुद्धि से हिन्दुओं के मानबिंदुओं को नष्ट कर रहे थे। भोजशाला में सर्वाधिक श्रद्धा का केंद्र भगवती वागेश्वरी की प्रतिमा थी उसे एतिहासिक महत्व की वस्तु बताकर अंग्रेजों ने अपने अधीन कर लिया और लन्दन ले गया और मूर्ति आज भी लन्दन में कैद है।
 
हमारी धरोहर को वापिस लाने के लिए अब पहल करने की आवश्यकता है.