बालक वीर हकीकत राय ने अपने धर्म को अपने जीवन से बड़ा माना और धर्मरक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। हकीकत राय का जन्म पंजाब के स्यालकोट में एक समृद्ध परिवार में हुआ। अल्प आयु में ही उन्होंने इतिहास और संस्कृत का पर्याप्त अध्ययन कर लिया था।
उन्हें 10 वर्ष की आयु में फारसी की पढ़ाई के लिए मदरसे में भेजा गया। मदरसे में पढ़ाई के दौरान कक्षा की बागडोर उन्हें सम्हालने को दी गई, जिससे चिड़े हुए मदरसे के दूसरे छात्रों ने तंज करते हुए उनके धर्म का मजाक उड़ाया। जिस पर हकीकत राय ने उन बच्चों से कहा यदि कोई ऐसा ही तुम्हारे धर्म को लेकर कहे तो इससे वहां मौजूद अन्य लोग चिड गए व हकीकत राय पर ईशनिंदा का आरोप लगाते हुए उन्हें मृत्युदंड देने की मांग करने लगे।
मदरसे के जिम्मेदार लोगों ने भी वीर हकीकत राय का पक्ष जानने के बजाए दूसरे बच्चों का पक्ष लिया। यह मामला नगर शासक के पास पहुंचा तो निर्णय सुनाया गया कि बालक अपना धर्म परिवर्तन कर ले अन्यथा उसे मौत की सजा दी जाएगी। समस्त प्रकार के प्रलोभनों से लेकर विभिन्न हथकंडे अपने गए परन्तु वीर हकीकत राय ने धर्म परिवर्तन के बजाए अपना सिर देना स्वीकार कर लिया।
वर्ष 1742 में बसंत पंचमी के दिन 14 वर्षीय हकीकत राय को कमर तक जमीन में गाड़कर उनपर पत्थर बरसाए गए , जब वह अचेत हो गए तो उनक सर काट कर उन्हें मृत्युदंड दिया गया।
"धर्म के लिए जिएं,
समाज के लिए जिएं।
यह धड़कनें, यह श्वांस हो।
पुण्यभूमि के लिए" इन पंक्तियों के चरितार्थ करते हुए वीर बालक हकीकत राय जी ने अपना जीवन होम कर दिया। बलिदान दिवस पर कोटिशः नमन।